Document

आख़िर खुद को मिले चंदे को उजागर क्यों नहीं करते राजनीतिक दल ?

Why-do-political-parties-not-reveal-the-donations-they-have-received

प्रजासत्ता |
राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे को लेकर पहले प्रस्तुत किए बजट में नियम बदले गए थे| चुनावी राजनीति से काले धन को ख़त्म करने और फंडिंग को पारदर्शी बनाने के लिए जो विधेयक पारित किया गया था लेकिन वह अपने मक़सद में पूरी तरह नाकाम होता नजर आ रहा है|

kips1025

गौर हो कि चुनाव विश्लेषण संस्था एडीआर (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) ने बीते दिनों देश की पंजीकृत गैर मान्यता प्राप्त दलों से जुड़ी एक रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट के अनुसार देश में इन राजनीतिक दलों की संख्या 2010 के मुकाबले 2019 में दोगुनी हो गई। लेकिन आय के स्रोत स्पष्ट करने को लेकर आमजन को पारदर्शिता का उपदेश देने वाले हमारे राजनेता राजनीतिक दलों के धन के स्रोत को उजागर करने से बचते रहे हैं।

बता दें कि वर्ष 2017-18 के केंद्रीय बजट में राजनीतिक दलों को नकद में 2,000 रुपए तक ही चंदा लेने की छूट मिली है। उस समय यह दलों के आय के स्रोत उजागर करने की दिशा में यह बड़ा कदम माना जा रहा था लेकिन यह उपाय हाथी के दिखाने के दांतों की तरह साबित हुआ है|

गौरतलब है कि एडीआर के मुताबिक विश्लेषण से संबंधित 138 ऐसे दलों में से 50 प्रतिशत से अधिक की चंदा रिपोर्ट उक्त दोनों में से किसी वित्त वर्ष के लिए सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं है। इस रिपोर्ट के बाद सवाल उठने लगे है कि आख़िर देश के ज्यादातर राजनीतिक दलों ने खुद को मिले चंदे पर चुप्पी क्यों साध रखी है, और चुनाव आयोग ऐसे दलों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करता।

राजनीतिक दलों के चुनावी चंदे में कालेधन के प्रवाह की बातें लंबे समय से हो रही है। इसे रोकने की दिशा में सरकार ने नकद चंदे की सीमा को बीस हजार से घटाकर दो हजार रुपए कर एक छोटा कदम उठाया है। लेकिन यह काफी नहीं कहा जा सकता। वैसे भी कालाधन वही होता है जिसका हिसाब-किताब नहीं होता और न यह पता चलता कि यह कहां से आया? यह बहस का विषय जरूर है कि आखिर राजनीतिक दलों को विशेषाधिकार किस बात का दिया जाए? वैसे भी राजनीतिक दल अपने हिसाब में 70 फीसदी चंदे की रकम को अज्ञात स्रोत से बताते रहे हैं। ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि 20 हजार रुपए से घटाकर नकद चंदे की सीमा 2 हजार करने से यह प्रवृत्ति कम होगी।

फर्क यही हो सकता है कि राजनीतिक दल चंदे को ज्यादा लोगों से मिला बता सकते हैं। सवाल यह है कि चुनाव आयोग और विधि आयोग ने चुनाव सुधारों को लेकर जो सिफारिशें कर रखी हैं उनको पूरी तरह से लागू क्यों नहीं किया जाता? चुनाव चाहे लोकसभा के हों या विधानसभाओं के हर राजनीतिक दल खुद को गरीब पार्टी बताते हुए यह कहता आया है कि उसने 10-20 रुपए जनता से एकत्र कर चुनावों के लिए रकम जुटाई है। अब जो दल दो हजार रुपए से ज्यादा चंदा मिलना बताएंगे ही नहीं तो उनको कैसे रोकेंगे? लोकतंत्र में राजनीतिक दलों का अपना महत्व है, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता।

जब देने वालों के नाम उजागर नहीं होंगे तो पारदर्शिता नहीं बढ़ेगी| राजनीतिक दल पहले जो रक़म एक आदमी के नाम से दिखाते थे, अब वही रक़म 10 लोगों के नाम बता देंगे|चुनाव खर्च की सीमा तय करने के बाद भी चुनाव जीतने वाले खुलेआम कहते रहे हैं कि उन्होंने करोड़ों खर्च किए। कार्रवाई किस पर हुई? कहने को तो हमारे यहां जनप्रतिनिधित्व कानून ने चुनावों में भ्रष्ट आचरण को साफ तौर परिभाषित कर रखा है। लेकिन सजा के प्रावधान काफी लचर हैं। ऐसा लगता है कि सरकार सिर्फ़ दिखावे के लिए काले धन को ख़त्म करने या राजनीतिक फंडिंग को पारदर्शी बनाना के दावे करती है लेकिन उसका मूल मक़सद पारदर्शीता लाना नहीं है|

Tek Raj

संस्थापक, प्रजासत्ता डिजिटल मीडिया प्रजासत्ता पाठकों और शुभचिंतको के स्वैच्छिक सहयोग से हर उस मुद्दे को बिना पक्षपात के उठाने की कोशिश करता है, जो बेहद महत्वपूर्ण हैं और जिन्हें मुख्यधारा की मीडिया नज़रंदाज़ करती रही है। पिछलें 8 वर्षों से प्रजासत्ता डिजिटल मीडिया संस्थान ने लोगों के बीच में अपनी अलग छाप बनाने का काम किया है।

Latest Stories

Watch us on YouTube