प्रजासत्ता ब्यूरो|
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं चार बार के विधायक सुखविंदर सिंह सुक्खू छात्र राजनीति से उभरकर पार्टी में विभिन्न पदों पर रहते हुए आज हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पद तक पहुंचे हैं। सुक्खू को पार्टी के दिग्गज नेता पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय वीरभद्र सिंह का आलोचक माना जाता था जिन्होंने पांच दशक से अधिक समय तक हिमाचल प्रदेश की राजनीति पर अपना दबदबा कायम रखा था। वीरभद्र सिंह की करिश्माई मौजूदगी के बिना इस राज्य में पार्टी की पहली जीत के साथ, सुक्खू को इस शीर्ष पद पर विराजमान करना यह स्पष्ट करता है कि पार्टी आगे बढ़ने के लिए तैयार है।
उल्लेखनीय है कि छह बार मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह के साथ अक्सर टकराव होने के बावजूद सुक्खू 2013 से 2019 तक रिकॉर्ड छह साल तक पार्टी की राज्य इकाई के अध्यक्ष बने रहे। भाजपा के प्रेम कुमार धूमल के बाद वह हमीरपुर जिले से दूसरे मुख्यमंत्री बने। इससे पहले पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के विरुद्ध मोर्चा खोलते हुए ही सुक्खू ने अपना राजनीतिक कद बढ़ाया। वर्ष 1993 में जब वीरभद्र सिंह और पंडित सुखराम के बीच मुख्यमंत्री को लेकर जंग हुई तो उस समय सुक्खू पंडित सुखराम के साथ रहे। जब विद्या स्टोक्स ने वीरभद्र के विरुद्ध मोर्चा खोला तो सुक्खू स्टोक्स की टीम में काम करते थे। इसी दौरान उन्होंने वीरभद्र सिंह के विरुद्ध बोलना शुरू किया।
दरअसल वीरभद्र परिवार व सुक्खू में बड़ा विवाद करीब नौ साल पहले शुरू हुआ था जब सुक्खू को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था। अध्यक्ष बनते ही सुक्खू ने संगठन में फेरबदल कर वीरभद्र समर्थकों को हटाकर अपने लोगों को जिम्मेदारी दी थी। इससे वीरभद्र सिंह नाराज हो गए। लंबे समय तक वीरभद्र व सुक्खू में विवाद चलता रहा। 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान वीरभद्र सिंह ने अपना प्रभाव दिखाया और असर यह हुआ कि उनके नेतृत्व में ही चुनाव हुए। यह अलग बात है कि पार्टी इस दौरान बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाई और प्रदेश में भाजपा की सरकार बन गई। चुनाव के दौरान पार्टी के प्रयास के बावजूद वीरभद्र व सुक्खू एक मंच पर नहीं आए। 2019 में पार्टी ने सुक्खू को प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटा दिया। इससे सुक्खू समर्थक निराश हो गए। समर्थकों ने लोकसभा चुनाव से दूरी बना ली और प्रचार में भी शामिल नहीं हुए।
वर्ष 2021 में वीरभद्र सिंह के निधन के बाद भी दोनों गुटों में दूरियां नहीं मिटीं। विधानसभा चुनाव से करीब छह माह पहले पार्टी ने प्रतिभा सिंह को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया। चुनाव से पूर्व पार्टी ने सुक्खू को चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी सौंपी। टिकट वितरण के दौरान भी दोनों गुटों ने अपने-अपने समर्थकों को टिकट दिलाने की पैरवी की। हाईकमान ने दोनों की बात सुनी और जीत की क्षमता और उन नेताओं के प्रदर्शन के आधार पर टिकट दिए। दोनों गुटों के भी लगभग बराबर समर्थक जीतने में कामयाब रहे। इसके बाद प्रतिभा सिंह ने कहा था कि पार्टी को वीरभद्र सिंह के कार्यों के कारण जीत मिली है। इस कारण उनके परिवार की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए, जबकि सुक्खू ने कहा था कि मुख्यमंत्री विधायकों में से ही बनाया जाए और हाईकमान जो निर्णय लेगा, उन्हें स्वीकार होगा।