प्रजासत्ता न्यूज़ डेस्क|
हिमाचल में सांंठगांठ और राजनीतिक पहुंंच के चलते प्रतिनियुक्ति पर डटे 128 शिक्षकों और कर्मचारियों की प्रतिनियुक्तियों को बीते दिन रद्द कर सुक्खू सरकार ने खूब वाहवाही तो लुटी। लेकिन उनमें से कुछ शिक्षकों ने मात्र तीन दिन में ही, वो प्रतिनियुक्ति रद्द होने के ऑर्डर ही रद्द करवा कर, जिसकी लाठी, उसकी भैस.. व जिसकी चलती, उसकी क्या गलती… की कहावतों को एक बार फिर सही साबित कर दिया है। उच्च शिक्षा निदेशालय ने अपने फैंसले को बदलते हुए इस बारे में अधिसूचना भी जारी कर दी है।
जिन शिक्षकों के प्रतिनियुक्ति रद्द होने के ऑर्डर रद्द हुए हैं उनमे सभी राज्य परियोजना कार्यालय( समग्र शिक्षा) शिमला में लंबे समय से डेप्यूटेशन पर अपनी सेवाएँ दे रहें हैं। इनमे से अधिकतर राजनीतिक संरक्षण के चलते बीते लंबे समय से स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने की जगह कार्यालयों में बाबूगिरी ही कर रहे हैं। सरकारें कोई भी हो लेकिन ऐसे लोग अपनी जुगत लड़ा कर अपना काम निकलने में माहिर हैं।
बता दें कि लंबे समय से शिक्षा विभाग को शिकायतें मिल रही थी कि स्कूलों में सेवाएं देने और बच्चों को पढ़ाने के बजाय ये शिक्षक विभागों या ब्रांचों में डटे हैं। ऐसे में बीते दिन ही प्रतिनियुक्ति पर डटे 128 शिक्षकों और कर्मचारियों की प्रतिनियुक्तियों को प्रदेश सरकार ने रद्द कर दिया है। उच्च शिक्षा निदेशालय ने इस बारे में अधिसूचना जारी कर दी थी। लेकिन एक बार फिर प्रतिनियुक्ति रद्द होने के ऑर्डर ही रद्द कर के सरकार ने नई चर्चाओं को जन्म दे दिया है।
गौरतलब है कि सत्ता में रहीं सरकारें इन शिक्षकों को स्कूलों में भेजने की बातें तों करती आई हैं, लेकिन धरातल पर इस बाबत कुछ नहीं किया गया। अब सत्ता परिवर्तन की जगह व्यवस्था परिवर्तन की बात कहने वाली सुक्खू सरकार ने प्रतिनियुक्तियों को लेकर कड़ा संज्ञान जरुर लिया था, लेकिन जयराम सरकार को पलटू सरकार कहने वाली, कांग्रेस की ही सरकार किन वजहों से अब अपने ही फैसले को पलटने पर मजबूर हो गई , यह भी सोचने वाली बात है। कहने को यह भी कह सकते हैं कि व्यवस्था बदलने वाली सरकार अपनी ही व्यवस्था बदल रही है। वहीँ फैसला पलटवाने वाले इन शिक्षकों की तरफ से अन्यों के लिए एक ही संदेश जाता है “मेरी चलती है, इसमें क्या गलती है।”