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मोबाइल और ज़िन्दगी एक जैसी ही होती है

मोबाइल और ज़िन्दगी एक जैसी ही होती है

तृप्ता भाटिया|
अमेज़न/फ्लिपकार्ट पर मोबाइल के मॉडल देखते हुए लगता, ये सही है, ये ले लें तो मौज आए। बिल्कुल ऐसे ही सोशल मीडिया पर हम फ्रेंड बन जाते हैं, हम जोक लाइक करते हैं और संजीदा चीज़े या लिखा हुआ दर्द इग्नोर कर देते हैं।असल मे हम किसी को इंसान नहीं जोकर समझ रहे होते हैं।

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मोबाइल आता है पहले दिन मेज पर रखते समय भी इतना ध्यान रखते हैं कि जैसे तुरंत पैदा हुआ चूज़ा रख रहे हों। वैसे ही कोई नया दोस्त बना हो तो उसके टेक्स्ट पर ध्यान देते हैं और वक़्त रहते ही रिप्लाई करते हैं कहीं उसे बुरा न लग जाये ।

फिर मोबाइल पुराना होता है और स्क्रीन का कोना निकलने लगता है। कई बार रात में सोते समय बेड से गिर भी जाए तो सोचते हैं सुबह उठा लेंगे। वैसे ही फेसबुक के दोस्त पुराने हो जाते हैं, कोई नहीं आज नहीं तो कल परसों कभी रिप्लाई कर देंगे और ऐसे ही हम उसे फुर्सत के पलों का मोहताज बना देते हैं।

ऐसा हर चीज़ के साथ होता, मोबाइल के साथ और लोगों के साथ होता है। एक दिन पुराना मोबाइल और रिस्ता वेंटीलेटर पर हो जाता है। नया आ जाता है, पुराना एक्स्ट्रा सिम के काम आ जाता है कभी-कभी बिल्कुल वैसे ही इंसान। अब पुराने मोबाइल में सिम कार्ड नहीं है तो वो पूरी तरह खामोश हो चुका है ऐसे ही रिस्ता भी जब कदर नहीं है तो गूंगा हो चुका है।

एक दिन अचानक नया मोबाइल खराब हो जाये तो पुराने को ढूंढने पूरी शिद्दत से लग जाते हैं कि जब तक नया रिपेयर होकर आएगा तब तक इसे इस्तेमाल कर लिया जाए। जब पुराना मोबाइल भले ही अंतिम सांसे ले रहा हो बहुत खुश हो जाता है। कुछ लोग और मोबाइल मजबूत होते हैं वो सह लेते हैं और बने रहते हैं।

एक पुराना मोबाइल के ऐप आपको नये मोबाइल में सारी वो चीजें उपलब्ध करवा के चला जाता है जो आपके लिए जरूरी होती हैं। हम उसका बोझ कभी महसूस नहीं कर पाते जो उसने पुराना होने के बाबजूद उठा के रखा था कई बार तो हम जरूरी चीज ढूंढते भी उसी में हैं। उसी तरह पुराना इंसान भी बिन अलविदा कहे एक दिन रुकसत हो जाता है।

मिल जाने के बाद हर चीज़ अपनी वक़त खो देती।
जमाने बाद फिर कोई उस मोबाइल या इंसान का ज़िक्र करता है और उसे देखने की कसक होती है। अब वो मोबाइल कचरे वाला ले गया होता है तो मिलता नहीं है और इंसान है या नहीं पता चलता नहीं है। एक दिन फिर नया मोबाइल पुराना हो जायेगा, नये बनते रहेंगे हम खरीदते रहेंगे पर इंसान कहाँ नये बनते हैं वो तो खत्म ही हो जाते हैं। कुछ मोबाइल और लोग नाज़ुक होते हैं वो जल्दी अलविदा कह जाते हैं और कब कह गये होते हैं यह भी हमें पता नहीं होता।

Tek Raj

संस्थापक, प्रजासत्ता डिजिटल मीडिया प्रजासत्ता पाठकों और शुभचिंतको के स्वैच्छिक सहयोग से हर उस मुद्दे को बिना पक्षपात के उठाने की कोशिश करता है, जो बेहद महत्वपूर्ण हैं और जिन्हें मुख्यधारा की मीडिया नज़रंदाज़ करती रही है। पिछलें 8 वर्षों से प्रजासत्ता डिजिटल मीडिया संस्थान ने लोगों के बीच में अपनी अलग छाप बनाने का काम किया है।

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