हिंदी वैदिक संस्कृति से लौकिक संस्कृत, लौकिक संस्कृत से प्राकृत, प्राकृत से पाली, पाली से अपभ्रंश और अपभ्रंश से भाषा के अनेक रूपों में रूपांतरित होती हुई आज की आधुनिक हिंदी भाषा के रूप में परिणत हुई है l परंतु हिंदी अपभ्रंश की अवस्था से प्राचीन हिंदी अवस्था को कब पहुंची, इस विषय में विद्वानों के विभिन्न मत है l कुछ विद्वान हिंदी का श्रीगणेश बौद्ध धर्म की बजरयानी शाखा के चौरासी सिद्धों के सिद्ध साहित्य से मानते हैं l इन सिद्धो ने अपने ग्रंथों की रचना प्राकृत भाषा में की, परंतु फिर भी उनमें कही न कहीं आज की हिंदी भाषा के अंकुर दिखाई देते हैं
l इस मत के अनुसार हिंदीभाषा का प्रारंभ ईशा की सातवीं शताब्दी में हुआ था l जनश्रुति के आधार पर हम कह सकते हैं की हिंदीभाषा का आरंभ काल ईशा की आठवीं शताब्दी माना है l जैन साहित्य के अपभ्रंश रचनाओं में भी हिंदीभाषा के पूर्व रूप के दर्शन होते हैं l आज अधिकतर विद्वान हिंदीभाषा का प्रारंभ ईसा की दसवीं शताब्दी से मानते हैं l हिंदी संस्कृत से प्राकृत एवंअपभ्रंश का रूप पार करती हुई आज की हिंदी के रूप में आई है l
इसलिए संस्कृत, प्राकृत अथवा अपभ्रंश की रचनाओं में उसके पूर्व रूप के दर्शन होने तो स्वाभाविक ही है परंतु आज की हिंदी के शिशु रूप के दर्शन सबसे पहले ईशा की दसवीं शताब्दी में आरंभ होने वाले वीर गाथा काव्य में होते हैं lवीर गाथा काव्य में *श्री दलपत विजय का ‘खुमान रासो ‘और श्री चंद्ररबरदाई का ‘पृथ्वीराज रासो’ प्रसिद्ध है l चंद्रबरदाई के पृथ्वीराज रासो को हिंदी का आदि महाकाव्य माना जाता है l हिंदी भाषा के इन प्रारंभिक कल में देश छोटे-छोटे राज्य में विभाजित था l तेरवीं शताब्दी में अमीर खुसरो ने इसी बोलचाल की भाषा में साहित्य की रचना की l उनकी रचनाओं में आज की खड़ी बोली के दर्शन होते हैं l
हिंदी की खड़ी बोली का जन्म उर्दू भाषा के जन्म से पहले हो गया था l यदि हम इतिहास के पन्नों पर दृष्टिपात करें तो हम यह पाते हैं कि1206 ईस्वी में भारत में मुस्लिम राज्य की स्थापना हुई और यही से सर्वप्रथम मुगल बादशाह बना l इससे अरबी और फारसी देश की राज्य भाषाऐँ बनी l गोस्वामी तुलसी दास, कबीर , जायसी , बिहारी, देव और भूषण आदि मुगल काल में ही हुए थे l लेकिन व्यवहार में हिंदी का प्रयोग उस समय कम होता जा रहा था l जितना होता था उसमें भी अरबी और फारसी के शब्दों की भरमार थी l इस भाषा ने एक नई भाषा को जन्म दिया जो आगे चलकर के उर्दू भाषा कहलाई और एक दिन यह आया कि उर्दू ही मुगल साम्राज्य की राजभाषा के पद पर आसीन हो गई l परंतु मुगलों के साम्राज्य के पतन के बाद भारत में अंग्रेजों का आगमन हुआ l अंग्रेजी विद्वान मैकाले का विचार था कि किसी देश पर राज्य करने के लिए उसकी संस्कृति को बदलना आवश्यक होता है l
अतः उसने भारतीय संस्कृति को नष्ट करने एवं देश में पाश्चात्य संस्कृति का प्रचार- प्रसार करने हेतु भाषा परिवर्तन की आवश्यकता पर बल दिया l इसके परिणाम स्वरूप हिंदी तथा उर्दू दोनों को पीछे धकेल कर अंग्रेजी को आगे लाया जाने लगा l अंग्रेजों को इस कार्य में सफलता भी मिली l उस समय सरकारी कामकाज में उर्दू का बोल बाला बड़ॉ रहा था और साहित्यिक क्षेत्र में हिंदीभाषा पनपती जा रही थी l कालांतर से उन्हें इस क्षेत्र में सफलता मिलनी प्रारंभ हो गई l बीसवीं शताब्दी के आरंभिक काल में राष्ट्रीय जागरण का प्रभाव था l क्या राजनीतिक क्षेत्र, क्या धार्मिक क्षेत्र , क्या सामाजिक क्षेत्र सभी क्षेत्रों में राष्ट्रीय जागृति की एक लहर दौड़ गई l लोकमान्य तिलक ने सिंह गर्जना की” स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है” और इस भाव को देश के कोने-कोने तक पहुंचाने के लिए हिंदी भाषा ने अग्रणी भूमिका निभाई l
स्वामी दयानंद सरस्वती और राजमोहन राय ने हिंदी को ही धर्म प्रचार का साधन बनाया l पंडित श्रद्धा राम ने भी अपने सभी प्रचार ग्रंथ हिंदी में ही लिखे l इस प्रकार हिंदी का विकास तेजी से होने लगा परंतु सबके साथ-साथ हिंदी और उर्दू की एक नई भाषा खिचड़ी का प्रयोग भी बड़ा l लोगों ने इस खिचड़ी को हिंदुस्तानी भाषा की संज्ञा दी l कुछ राजनीतिक कारणों से अंग्रेजों ने इस हिंदुस्तानी भाषा( खिचड़ी ) को बड़ा महत्व दिया l भारतेंदु हरिश्चंद्र को यह बात अच्छी नहीं लगी और उन्होंने अनेक हिंदी साहित्यकारों के साथ जैसे प्रताप नारायण मिश्र, बालकृष्ण भट्ट तथा बद्री नारायण चौधरी आदि के साथ मिलकर के हिंदी भाषा को नया मोड़ दिया l भारतेंदु के पश्चात श्री महावीर प्रसाद द्विवेदी ने साहित्य के क्षेत्र में प्रवेश किया l यह संस्कृत गर्भीत खड़ी बोली के पक्षपाती थे l मैथिली शरण गुप्त एवं जयशंकर प्रसाद जैसे साहित्यकारों ने नई हिंदी भाषा के प्रचार- प्रसार में अपनी अग्रणी भूमिका निभाई l राष्ट्रीय जागृति के इस युग में पत्र – पत्रिकाओं के प्रकाशन ने भी बड़ा जोर पकड़ा था l इनसे हिंदी के विकास में बड़ा योगदान मिला l इन पत्र- पत्रिकाओं ने न केवल हिंदी साहित्यकारों को जन्म दिया अपितु हिंदी प्रेमियों की संख्या में भी अप्रत्याशित वृद्धि की l
हिंदी चलचित्रों ने तो हिंदी को जनसाधारण तक पहुंचाने में बड़ा ही योगदान दिया है l भारतीय फिल्में न केवल भारत में प्रसिद्ध हुई अपितु विश्व के मानचित्र पर भी प्रसिद्ध होकर के इन्होंने हिंदी के प्रचार – प्रसार में अपनी उपयोगी भूमिका निभाई l हिंदी भाषा संपर्क भाषा के रूप में व्यापारिक क्षेत्र में वस्तुओं एवं विचारों का आदान-प्रदान करने के लिए सशक्त माध्यम बनी एवं आज के सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में हिंदी संचार की भाषा बनने से पूरे विश्व मानचित्र के पटल पर अधिक प्रचारित एवं प्रसारित हुई है l
भारत के बहुत संख्या मे नागरिक अप्रवासी भारतीय के रूप में विश्व के सभी देशों में आज उन देशों के स्थाई निवासी बनाकर के वे अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी को भी विदेशों में प्रसारित एवं प्रचारित कर रहे हैं l15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ l हिंदी के महत्व को सभी ने स्वीकार किया और 14 सितंबर 1949 को भारतीय संविधान सभा ने संविधान के अनुच्छेद 343 ए के अंतर्गत केंद्र की राजभाषा के रूप में अंगीकार किया, क्योंकि उस समय संविधान सभा के सभी सदस्यों ने पूरे भारत का भ्रमण कर एवं भारत की सभी लोगों से मिलकर के यह पाया कि हिंदी पूरे भारत में सभी भारतीय भाषाओं में सबसे ज्यादा बोली और समझी जाने वाली भाषा है l इसी महत्व को समझ करके इसे मौखिक रूप से राष्ट्रभाषा का दर्ज प्रदान किया गया है l
उस समय संविधान सभा ने यह भी परिकल्पना की थी की 1965 तक यह पूरे भारत की राजकाज की भाषा हिंदी होगी और संपूर्ण भारत के स्कूलों में विद्यार्थियों को अनिवार्य रूप से पढ़ाई जाने लगेगी, इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अनेकों योजनाएं बनाई गई परंतु कुछ अपरिहार्य कारणों एवं परिस्थितियों से हमारी यह परिकल्पना अभी तक साकार नहीं हो पाई है l इसमें हमें बड़ी निराशा हुई है l मैं इस आलेख के माध्यम अपने देश की जनता और सरकार दोनों से विनम्र निवेदन करता हूं कि वे हिंदी के महत्व को समझें और उसके विकास एवं प्रचार – प्रसार में हम सभी अपनी सकारात्मक भूमिका सुनिश्चित करें lअब समय आ गया है कि हिंदी को एक दिवस विशेष ना मना करके इस भाषा को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाकर हिन्दी भाषा के प्रति अपनी कृतज्ञता एवं सम्मान व्यक्त करें l हम सभी भारतीयों को हिंदी भाषा के महत्व को समझ करके अपने क्षेत्रीय संकुचित दृष्टिकोण को त्याग करके विस्तृत दृष्टिकोण अपनाकर हिंदी का राष्ट्रभाषा के रूप में अंगीकार करना चाहिए l अंत में मैं अपने इस आलेख को इन चंद पंक्तियों के साथ विराम देना चाहूंगा l मन की भाषा, प्रेम की भाषा l. हिंदी है भारत जन की भाषा ll