प्रजासत्ता ब्यूरो |
Exclusive!: आरएलए परवाणू के तहत वर्ष 2009 से वर्ष 2010 के बीच पंजीकृत हुए वाहनों की रजिस्ट्रेशन फीस की बकाया राशी का हवाला देकर आरएलए परवाणू की ओर से 500 के करीब वाहन मालिकों को रिकवरी के नोटिस जारी किए है। नोटिस मिलने के बाद वाहन मालिक इस बात से हैरान है की इतने वर्षों बाद आखिर किस प्रकार की रिकवरी का नोटिस उन्हें मिला है, जबकि कई वाहन या बिक चुके हैं या स्क्रैप हो चुके हैं।
नोटिस में एकाउंटेंट जनरल ऑफिस शिमला की ओर से किये गए ऑडिट का पेरा-2 का हवाला दिया गया है। जिसमे बताया गया है कि वर्ष 2009 से वर्ष 2010 में पंजीकृत वाहनों की फीस की 1500 रूपए की राशी वाहन मालिकों पर बकाया है जिसे जल्द से जल्द कार्यालय में जमा करवाने के आदेश दिए गए हैं।
शुरुवाती जानकारी में पता चला है कि अभी 500 के करीब वाहन मालिकों को नोटिस जारी हुए हैं, इसके अलावा वर्ष 2009 से वर्ष 2010 के बीच पंजीकृत अन्य वाहनों के मालिकों से भी यह रिकवरी की जाएगी। हैरानी की बात यह है कि इस विषय पर आरएलए परवाणू में तैनात कर्मचारी और अधिकारी स्पष्ट रूप से कुछ जानकारी नहीं दे पा रहे हैं।
अगर इस विषय वाहन पर मालिकों द्वारा जानकारी या रिकवरी को लेकर सवाल पूछा जाता है, तो वर्ष 2009 से 2010 के बीच वाहन पंजीकरण के दौरान जमा की गई फीस की रसीद उपलब्ध करवाने की बात वाहन मालिकों से की जा रही है। ऐसे में बड़ा सवाल है कि जब वाहनों के पंजीकरण को 13 वर्षो से अधिक का समय हो गया है कुछ वाहन स्क्रैप हो गए हैं या बिक चुके हैं उनके पास फीस जमा करने की रसीद कहाँ से उपलब्ध हो पायेगी।
क्या कहते हैं अधिकारी
वहीँ इस बारे में आरएलए परवाणू के एसी महेंद्र प्रताप सिंह से जानकारी ली गई तो उन्होंने कहा कि एकाउंटेंट जनरल ऑफिस शिमला की ओर से किये गए पिछले ऑडिट की रिपोर्ट के पेरा के आधार पर उन्हें उच्च अधिकारीयों से कार्रवाई करने के निर्देश प्राप्त हुए थे जिसके बाद 500 के करीब वाहन मालिकों को यह नोटिस जारी किए हैं।
लापरवाही या बड़ा स्कैम जाँच का विषय
विभाग द्वारा इतनी लम्बी अवधि के बाद वाहन मालिकों को रिकवरी के नोटिस जारी होने से इस मामले में कई सवालिया निशान लग रहे हैं। क्योंकि वर्ष 2009 और 2010 में फीस लेने और उसे ऑनलाइन जमा करने का काम केवल विभाग के कर्मचारियों के पास ही होता था। या तो उस समय कार्यालय में तैनात कर्मचारियों की तरफ से फीस लेने में बड़ी लापरवाही हुई या फीस लेकर जमा नही कर लाखों का स्कैम किया गया। बाबजूद इसके हजारों वाहनों के नम्बर पंजीकृत हुए और उनकी रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट भी जारी हुए।
जाँच का विषय यह भी है कि विभाग द्वारा आखिर इतने सालों बाद बिना अपना रिकॉर्ड जांचे कैसे वाहन मालिकों को रिकवरी के नोटिस भेज जा रहे। जबकि रजिस्ट्रेशन के समय फीस कितनी लेनी है या फ़ाईन कितना लेना है इसका निर्णय विभाग द्वारा ही तय किया जाता था, न कि वाहन मालिकों द्वारा। यदि उस समय कोई लापरवाही कार्यालय स्तर पर हुई है तो उसकी जाँच सही से हो, उसका खम्याज़ा वाहन मालिक क्यों भुगते…
यह सभी विषय जांच के है। जिसके बाद इस मामले की सच्चाई से पर्दा उठ पाएगा। आखिर लाखों रूपए की रिकवरी विभाग इतने वर्षों बाद कर रहा है। जबकि कुछ वाहन स्क्रेप तो कुछ बिक चुके हैं। जो जांच का विषय है।