समाज का एक बड़ा तबका जिस तरह से सामाजिक संस्कारों का अंतिम संस्कार करने पर उतारू हुआ है,उसमें जान डालने के लिए वही अफसरशाही सामने आई है जो “सरकार” की वजह से कोसी जा रही है। अब कांगड़ा जिला में महामारी का शिकार हुए लोगों का अंतिम संस्कार जिला प्रशाषन करवाएगा। अगर मरीज की मौत अब अस्पताल के अलावा घर में भी होगी तो भी गांव-शहर वालों को अपने घर के दरवाजे पड़ोसियों-रिश्तेदारों के लिए बंद करने की शर्मिंदगी भरी जलालत नहीं उठाने पड़ेगी। यह सब काम वही अफसर और कर्मचारी करेंगे, जो हम सामाजिक पशुओं को करने चाहिये थे। मतलब अब वही लोग हमारे रिश्तों को बचाएंगे जिन्हें कोसने का जिम्मा फिलवक्त हम सब ने उठाया हुआ है।
डीसी कांगड़ा राकेश प्रजापति ने हम लोगों की शर्मोहया की लाश देख कर यह फैसला लिया है कि अब अंतिम विदाई के वक़्त तमाम रोल जिला प्रशाषन निभाएगा। बस अब लोगों को इतना “कष्ट” उठाना होगा कि एक फोन करके यह बताना होगा कि जनाब फलां जगह पर फलां अभागे की मौत हो गई है।बस इसके बाद एक पूरा सिस्टम समम्मान अंतिम संस्कार करवाने पहुंच जाएगा । लाश के अंतिम संस्कार के बाद यह लोग पीछे रहने वाली जिंदा लाशों के इलाकों को भी सैनिटाइज करेंगे।
पर लानत है हम पर। शुक्र मनाना चाहिए देवभूमि के कांगड़ा में बैठी जनता को कि देवी-देवताओं ने आपको प्रजापति नाम का एक ऐसा प्रजापालक दिया हुआ है जो हकीकत में प्रजापति होने के नाम को सार्थक कर रहा है। वरना जिस तरह का हमारा व्यवहार बना हुआ है,उससे के मुताबिक तो यमराज की ही चलती दिख रही है। हम तो यह भी भूल चुके हैं कि जो अकाल मृत्यु का शिकार हो रहे हैं,वो हमारे अपने हैं,अपने थे। भाईचारे की लाश लगातार जल रही है। सवाल यह भी है कि मूलतः वीरभूमि राजस्थान के प्रजापति तो देवभूमि के निवासी मुर्दों का दर्द महसूस कर सकते हैं,हम क्यों नहीं ? सरकार पिट योजना बनाने में पिटी हुई है,इसमें कोई दो राय नहीं हैं। पर समाज का इन हालात में हिट एंड फिट है ? महामारी ने लोगों की जानों को निगला है,पर क्या इंसानों की मौतों से कहीं ज्यादा हमारी अंतर आत्माओं की लाशें नहीं बिखरी हैं ? वक़्त यह भी बदल जाएगा। पर क्या हम इन मौजूदा बदले हुए अपने चेहरों के साथ उन लोगों को शक्ल दिखा पाएंगे जिनकी उतरी हुई शक्लों को देख कर हम मुंह फेर रहे हैं ?
क्या डीसी कांगड़ा के साथ-साथ उन लोगों से हमारी कोई रिश्तेदारी है जो अब हमारे अपनों को अंतिम यात्रा पर।लेकर जाएंगे ? कोई खून का रिश्ता है हमारा इन लोगों के साथ ? नहीं है। फर्क इतना है कि यह लोग इंसान हैं,हमारी तरह पत्थर दिल नहीं। इनका भी वैसा ही परिवार होगा जैसा हमारा-आपका है। आज कोई लाश को हाथ नहीं डाल रहा,कोई श्मशान घाट इस्तेमाल नहीं करने दे रहा। अच्छा किया है प्रजापति ने । उन्होंने ऑर्डर निकाल दिया है कि अब अगर किसी ने अंतिम यात्रा में परेशानियां पैदा की तो सीधे अंदर ठोंका जाएगा। समझना होगा हम सभी को, प्रजापति अगर सही मायनों में प्रजा का ख्याल रख सकते हैं तो प्रजा के भी कुछ फर्ज और कर्ज समाज के प्रति बनते हैं। प्रजापति ने अपने स्तर पर तो सामाजिक संस्कारों का अंतिम “संस्कार” होने से बखूबी रोक लिया है,पर जिम्मेदारी हमारी भी है कि हम संस्कारों में फिर से जान डालें…
–खबर इनपुट दरअसल–