Yashwant Singh Parmar Jayanti: आज पूरा हिमाचल प्रदेश अपने प्रथम मुख्यमंत्री डा. वाईएस परमार को याद कर रहा है। आज हिमाचल प्रदेश के निर्माता और पहले मुख्यमंत्री डॉ. यशवंत सिंह परमार की आज 118वीं जयंती है। तीन बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे डॉ. यशवंत सिंह परमार की ईमानदारी की चर्चा आज भी हिमाचल प्रदेश में होती है। डॉ. परमार के जिक्र के बिना हिमाचल प्रदेश का सियासी इतिहास अधूरा है। सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाली थी डॉ परमार की सादगी थी।
बताया जाता है कि डॉ. परमार ने जब मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया तो सरकारी गाड़ी छोड़ दी और पैदल ही शिमला बस स्टैंड के लिए निकल पड़े। जहाँ से डॉ. परमार ने सरकारी बस पकड़ी और सिरमौर रवाना हो गए। लंबे समय तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहने के बाद उन्होंने नए और आधुनिक हिमाचल प्रदेश की नींव रखी। देश को दिखाया कि एक ईमानदार मुख्यमंत्री अपने राज्य को कहां से कहां पहुंचा सकता है।
डा. परमार ऐसी शख्सीयत थे, जिन्होंने हिमाचल प्रदेश का इतिहास ही नहीं भूगोल भी बदल कर रख दिया था। जिसका जीता जागता प्रमाण हिमाचल प्रदेश पूर्ण राज्य के रूप में प्रदेशवासियों के सामने है। जिसमें प्रदेश की सीमाओं को और बड़ा कर दिया था, जबकि उस समय प्रदेश को पंजाब में मिलाने की पुरजोर बात चल रही थी।
अगर ऐसा न होता तो आज हम हिमाचली नहीं, पंजाबी कहलाते। आज भी जब उनकी चर्चा होती तो ये बात सामने निकल कर आती है कि यदि डा. परमार न होते तो हिमाचल, हिमाचल न होता।
यशवंत सिंह परमार का बचपन
डॉ. परमार का जन्म 4 अगस्त 1906 को चन्हालग गांव में उर्दू व फारसी के विद्धान व कला संस्कृति के संरक्षक भंडारी शिवानंद के घर हुआ था। परमार के पिता सिरमौर रियासत के दो राजाओं के दीवान रहे थे। वे शिक्षा के महत्व को समझते थे। इसलिए उन्होंने यशवंत को उच्च शिक्षा दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उनकी शिक्षा के लिए पिता ने जमीन जायदाद गिरवी रख दी थी।
यशवंत सिंह ने 1922 में मैट्रिक व 1926 में लाहौर के प्रसिद्ध सीसीएम कॉलेज से स्नातक के बाद 1928 में लखनऊ के कैनिंग कॉलेज में प्रवेश किया और वहां से एमए और एलएलबी किया। 1944 में ‘सोशियो इकोनोमिक बैकवल्र्ड ऑफ हिमालयन पोलिएंडरी’ विषय पर लखनऊ विश्वविद्यालय से पीएचडी की। इसके बाद हिमाचल विश्वविद्यालय से डॉक्टर ऑफ लॉ की डिग्री हासिल की।
सिरमौर रियासत के जज बने (Yashwant Singh Parmar)
यशवंत सिंह परमार साल 1930 में सिरमौर रियासत के न्यायाधीश बने। साल 1937 तक रियासत के न्यायाधीश के तौर पर काम किया। इसके बाद जिला व सत्र न्यायाधीश बन गए। परमार प्रजा मंडल आंदोलन के क्रांतिकारियों के हक में फैसले देने लगे। इससे रियासत के राजा नाखुश हुए। इसके बाद यशवंत सिंह परमार ने जज के पद से इस्तीफा दे दिया।
हिमाचल को दिलाया पूर्ण राज्य का दर्जा
साल 1939 में प्रजा मंडल की स्थापना की गई और शिमला हिल स्टेट्स प्रजा मंडल का गठन किया गया। 1946 में डॉ. परमार हिमाचल हिल्स स्टेटस रिजनल कॉउंसिल के प्रधान चुने गए। 1947 में ग्रुपिंग एंड अमलेमेशन कमेटी के सदस्य व प्रजामंडल सिरमौर के प्रधान रहे। उन्होंने सुकेत आंदोलन में बढ़-चढक़र हिस्सा लिया और प्रमुख कार्यों में से एक रहे। 1948 से 1950 तक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे। 1950 में हिमाचल कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने।
25 जनवरी 1948 को शिमला के गंज बाजार में प्रजा मंडल का सम्मेलन हुआ। इसमें यशवंत परमार की मुख्य भूमिका रही। अपने सक्षम नेतृत्व के बल पर 31 रियासतों को एक करने में बहुमत से पास कराया। पहाड़ी क्षेत्रों में रियासतें नहीं होनी चाहिए। इस बैठक में पहाड़ियों के लिए अलग राज्य की मांग की गई। सोलन की बैठक में पहाड़ी राज्य को हिमाचल नाम दिया गया। कुछ नेता हिमाचल को पंजाब में मिलाना चाहते थे। लेकिन यशवंत सिंह परमार ने ऐसा नहीं होने दिया।
परमार ने पंजाब के कांगड़ा और शिमला के कुछ हिस्सों को हिमाचल में शामिल करा दिया। काफी संघर्ष के बाद 25 जनवरी 1971 को तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने हिमाचल को पूर्ण राज्य का दर्ज देने का ऐलान किया। परमार ने उस समय हिमाचल राज्य की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो आज पहाड़ी राज्यों का आदर्श बनने की ओर अग्रसर है।
18 साल मुख्यमंत्री रहे यशवंत सिंह परमार
हिमाचल प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री यशवंत सिंह परमार 18 साल तक सीएम रहे। डॉ. परमार 8 मार्च 1952 को पहली बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बने से अक्टूबर 1956 तक डॉ. परमार मुख्यमंत्री बने। इसके बाद साल 1956 में हिमाचल केंद्र शासित प्रदेश बना तो परमार सांसद बन गए। इसके बाद जब विधानसभा का गठन हुआ तो साल 1963 में एक बार फिर डॉ. परमार हिमाचल के मुख्यमंत्री बने। साल 1967 में यशवंत परमार तीसरी बार मुख्यमंत्री बने इसके बाद साल 1977 तक लगातार डॉ. परमार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद डॉ. परमार ने खुद मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। इसके चार वर्ष पश्चात 2 मई, 1981 को हिमाचल के सिरमौर डॉ. परमार ने दुनिया को अलविदा कह दिया।
किताबों के शौकीन थे डॉ. परमार
डॉ. परमार किताब पढ़ने और लिखने के शौकीन थे. उन्होंने ‘द सोशल एंड इक्नॉमिक बैक ग्राउंड ऑफ हिमालयन पॉलिएड्री’ किताबी लिखी. इसके अलावा डॉ. परमार ने हिमाचल प्रदेश केस फॉर स्टेटहुड और हिमाचल प्रदेश प्रदेश एरिया एंड लेंगुएजिज नाम की शोध आधारित किताबें लिखी।
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