Himachal High Court News: हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय (Himachal High Court) ने हाल ही में एक विवाहिक विवाद में निजी टेलीफोन बातचीत की रिकॉर्डिंग (Recording Phone Conversations) को साक्ष्य के रूप में स्वीकार करने की याचिका को खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति बिपिन चंद्र ने इस बात पर बल दिया कि ऐसा करना निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा।
17 अक्टूबर को दिए गए अपने आदेश में न्यायालय ने कहा, “टेलीफोन पर बातचीत किसी व्यक्ति के निजी जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। अपने घर या कार्यालय में बिना किसी हस्तक्षेप के बातचीत करने का अधिकार निश्चित रूप से ‘निजता के अधिकार’ के अंतर्गत आता है।”
इस निर्णय के तहत, एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी और उसकी मां के बीच की बातचीत की रिकॉर्डिंग को साक्ष्य के रूप में पेश करने की कोशिश की थी, जिसे न्यायालय ने खारिज कर दिया। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि टेलीफोन टैपिंग या अवैध तरीके से साक्ष्य एकत्र करना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) का उल्लंघन है, जब तक कि इसके लिए विधि द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन न किया जाए।
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के 1997 के ऐतिहासिक पीयूसीएल बनाम भारत संघ मामले का भी उल्लेख करते हुए, उच्च न्यायालय ने कहा कि निजता के अधिकार (Rights of Privacy) को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है, जैसा कि पुट्टस्वामी मामले में देखा गया था।
न्यायालय ने कहा, “इस मामले में प्रतिवादी-पत्नी की मां के साथ रिकॉर्ड की गई बातचीत अवैध है, क्योंकि यह उसके निजता के अधिकार का उल्लंघन करती है। इसलिए इसे साक्ष्य के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता।”
याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता एनएस चंदेल और विनोद कुमार गुप्ता ने किया, जबकि प्रतिवादी का पक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता संजीव कुठियाला और अधिवक्ता अभिषेक ने रखा।