Himachal News: हिमाचल प्रदेश को एशिया के फार्मा हब के रूप में जाना जाता है। दवा निर्माण में हिमाचल प्रदेश की हिस्सेदारी देश में 40 फीसद तक है। प्रदेश में करीब 500 से अधिक फार्मा कंपनियां हैं। राज्य में फार्मा सेक्टर में निवेश करने वाले निवेशक तेजी से भारी मुनाफा कमा रहे हैं। लेकिन दवाईयों के निर्माण की गुणवत्ता में खामियां होने से यह उद्योग कई बड़े सवालों के घेरे में आ रहे हैं।
बीते दिनों में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट द्बारा हिमाचल प्रदेश के फार्मा उद्योगों में बड़े पैमाने पर नकली दवाईयों के निर्माण की जांच CBI को करने के निर्देश, तथा हिमाचल हाईकोर्ट द्वारा दवा उद्योगों में भष्टाचार के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेने, और बीते दिन पूर्व सीएम शांता कुमार दवा उद्योग से जुड़े सरकारी विभागों में भ्रष्टाचारी और अयोग्य सरकारी अधिकारियों पर सवाल उठाने से यह मामला एक बार फिर कई नए सवालों के साथ प्रदेश सरकार, और सरकारी विभागों को सवालों के कठगरे में खड़ा करता है।
जहाँ जैनरिक दवाई की दृष्टि से भारत को दुनिया की फार्मेसी कहा जाता है। वहीं एशिया के फार्मा हब कहे जाने वाले हिमाचल प्रदेश में उभरते उद्योग में पिछले 9 मास में 150 दवाईयों के सैंपल फेल होना भी बड़ी चिंता का विषय है। बता दें कि बीते दिनों विश्व के दो देशों में भारत में बनीं दवाईयों से कुछ बच्चों के मरने के समाचार भी मीडिया में आए थे। ऐसे में नकली दवा निर्माता कंपनियों के खिलाफ समय पर कार्रवाई न होना यह भी सोच से परे हैं।
पूर्व सीएम शांता कुमार ने मौजूदा सरकार को इस बारे में आईना भी दिखाया है। उन्होंने कहा कि जो अधिकारी जानबूझ कर मिलीभगत के चलते दवाओं की गुणवत्ता से समझौता कर रहे हैं, उन भ्रष्ट अधिकारीयों के खिलाफ कठोर कार्रवाई और उद्योगों में आवश्यक सुधार की मांग करना, यह भी दर्शाता है कि हिमाचल दवा नियंत्रक विभाग अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी नहीं निभा रहा है। ऐसे में हिमाचल के उद्योगों में निर्मित 150 के करीब दवाईयों का केन्द्रीय दवा मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) के मानकों पर खरा न उतरना शायद इसी का नतीजा है।
दवा उद्योग में इन रूपों में सामने आता है भ्रष्टाचार
दवा उद्योगों से जुड़े हुए कई जानकारों के मुताबिक इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार होता है। कभी-कभी कंपनियां अपने लाभ को बढ़ाने के लिए दवाओं की गुणवत्ता में समझौता करती हैं। घटिया सामग्री का उपयोग करके सस्ती दवाएं बनाई जाती हैं। कुछ दवा कंपनियां अपने उत्पादों के लिए सुरक्षा और प्रभावशीलता का सही परीक्षण नहीं करतीं। वे शोध रिपोर्टों में हेरफेर करती हैं या परीक्षणों में अनियमितताएं करती और करवाती हैं ताकि उनका उत्पाद तेजी से बाजार में आ सके।
इसके अलावा कई बड़ी दवा कंपनियां सरकारी नीतियों और कानूनों को प्रभावित करने के लिए बड़े पैमाने पर लॉबीइंग करती हैं। वे स्वास्थ्य नीतियों को अपने लाभ के हिसाब से बदलवाने के लिए सरकार पर दबाव डालती हैं। कुछ दवा कंपनियां अपने उत्पादों के विज्ञापन में अनुशासनहीन तरीके से भ्रामक जानकारी देती हैं। वे ऐसी दवाओं को “जादुई” या “सभी समस्याओं का समाधान” के रूप में प्रचारित करती हैं, जो असल में पूरी तरह से सुरक्षित या प्रभावी नहीं होतीं।
कई बार दवा कंपनियां डॉक्टरों, स्वास्थ्य अधिकारियों और सरकारी कर्मियों को रिश्वत देती हैं ताकि वे उनकी दवाओं को प्राथमिकता दें या उन्हें अपने इलाज के लिए सिफारिश करें। इसके बदले में डॉक्टरों को मुफ्त यात्रा, गिफ्ट, या अन्य लाभ दिए जाते हैं। इन सभी के चलते कई सरकारी अधिकारी और कर्मचारी लम्बे समय से हिमाचल के अधिक दवा कंपनी वाले क्षेत्रों जैसे बद्दी, नालागढ़, पांवटा साहिब, ऊना, में डटे हुए हैं और ऊपर की कमाई कर रहें हैं।
सख्त और पारदर्शी नियमों का निर्माण
ऐसे में दवा उद्योग में भ्रष्टाचार के कारणों और इसके प्रभावों को कम करने के लिए सरकार को सख्त कानूनों की जरूरत है, जिनसे कंपनियों की गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रखी जा सके। दवाओं की कीमतों, गुणवत्ता और विपणन के संदर्भ में कड़े नियम लागू किए जाएं, ताकि भ्रष्टाचार की गुंजाइश कम हो। साथ ही, दवाओं की गुणवत्ता पर निगरानी रखने के लिए प्रभावी जांच प्रणाली होनी चाहिए, ताकि नकली या घटिया दवाओं का व्यापार रोका जा सके।और आम जनता को भी जागरूक होना चाहिए ताकि वे अपने स्वास्थ्य के मामलों में बेहतर निर्णय ले सकें।
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