कविता जीवन को भाषा में भी जीती, सोचती और व्यक्त करती है। इस भाषा-संसार में अपनी भी जीवन-शक्ति है जिसे वह जीवन से ही पाती और उसे लौटाती है। जैसे,एक फूलता-फलता वृक्ष जड़ों द्वारा पृथ्वी से रसायन सोखता है पर पृथ्वी तक ही सीमित नहीं रहता, उससे आगे और उससे परे तक फैलता है उसकी शाखाओं और प्रशाखाओं का रचना-विधान। यह केवल एक उदगार नहीं,एक यथार्थ है कि भाषा की सामर्थ्य का अर्थ केवल स्थूल या भौतिक तक ही सीमित नहीं,उस सम्पूर्ण जीवन-क्षमता की अभिव्यक्ति है जो स्थान और समय की सीमाओं को भी लाँघ जाने में सक्षम है। दलित कविता दर्द से निकलती है, क्योंकि सदियों से दलितों ने दर्द ही सहा है, दर्द का ही अनुभव किया है। दर्द के अलावा उन्हें कुछ नहीं मिला है। दलित कविता में दर्द की अभिव्यक्ति प्रमुख है। दर्द के रूप में वस्तुतः दलित कवि की संवेदना ही अभिव्यक्त होती है जो पाठक को भी संवेदनशील बनाती है।
आज डॉ. हिमेन्द्र पाल काशव की समीक्षात्मक पुस्तक “आज की हिन्दी कविता में दलित-चेतना” का सोलन के बसाल स्थित विवेकानन्द पुस्कालय में प्रोफ़ेसर रामनाथ मेहता जी के कर कमलों द्वारा विमोचन किया गया। प्रोफ़ेसर रामनाथ मेहता हिन्दी साहित्य के लेखक ,कवि,आलोचक एवं बहुचर्चित व्यक्त्वि हैं और हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय सांध्यकालीन अध्ययन केंद्र शिमला से प्रोफ़ेसर हिन्दी विभाग से सेवानिवृत हुए हैं। इस अवसर पर श्रीमती तृप्ता मेहता, डॉ. सुरेन्द्र शर्मा,डॉ प्रवीण ठाकुर, डॉ. कमला और डॉ. आशा उपस्थित रहे।
प्रस्तुत समीक्षात्मक पुस्तक ‘आज की हिन्दी कविता में दलित-चेतना’ (विशेष सन्दर्भ 1970 से 2010 तक) सात अध्याय एवं उपसंहार में प्रसृत है जिसमें दलित की व्यथा,दुःख, पीड़ा,अस्मिता, शोषण आदि का आज की कविता के सन्दर्भ में विस्तृत चित्रण किया गया है। ये पुस्तक निखिल प्रकाशन आगरा से प्रकाशित हुई हैं और Amazon के माध्यम से देश के कोने-कोने में पहुँचकर सही मायने में सृजन के सरोकार को चरितार्थ कर रही है। इस सृजनात्मक उपलब्धि के लिए प्रोफ़ेसर रामनाथ मेहता जी ने डॉ हिमेन्द्र को बधाई दी और अपना आशीर्वाद प्रदान कर उज्ज्वल भविष्य के लिए मंगलकामनाएं भी प्रदान दी।