प्रजासत्ता|
एक बार की बात है। कुबेर को अपने धन-वैभव पर बहुत अभिमान हो गया था। उन्होंने सोचा कि मेरे पास इतनी समृद्धि है, तो क्यों न मैं शंकर जी को अपने घर पर भोजन का न्योता दूं और उन्हें अपना वैभव दिखाऊं। यह विचार लेकर कुबेर कैलाश पर्वत गए और वहां शंकरजी को भोजन पर पधारने का न्योता दिया। शंकरजी को कुबेर के आने का उद्देश्य समझ आ गया था। वे समझ गए थे कि कुबेर भोजन के बहाने अपना वैभव दिखाना चाहते हैं।
उन्होंने कुबेर से कहा, हम तो नहीं आ सकेंगे। आप इतने आदर से न्योता देने आए हैं तो हम गणेश को भेज देंगे। शंकरजी और माता पार्वती ने गणेश जी से कुबेर के साथ जाने को कहा। गणेशजी सहज ही राजी हो गए। गणेशजी को भी ज्ञात हो गया था कि कुबेर ने उन्हें भोजन पर क्यों बुलाया है और गणेशजी उनका अभिमान तोड़ना की युक्ति में जुट गए। वे अपना साथ मूसक को भी ले गए। कुबेर के महल में गणेश जी और उनके मूसक को भोजन परोसना शुरू किया गया। दिखावे के लिए सोने-चांदी के पात्रों में अति स्वादिष्ट पकवान परोसे गए।
गणेश ने एक-एक कर उन्हें खाना शुरू किया। कुछ ही समय में सारे पकवान समाप्त हो गए। गणेश की भूख शांत होना का नाम नहीं ले रही थी। अब उन्होंने बर्तन खाने शूरू कर दिए। हीरे-मोती, जवाहरात सब खाने के बाद भी गणेश की भूख शांत नहीं हुई। कुबेर परेशान हो गए, लेकिन उन्हें अपनी भूल का भी अहसास हो गया था। घबराकर वे शंकरजी के पास आए और हाथ जोड़कर माफी मांगते हुए बोले कि में अपने कर्म से शर्मिंदा हूं और में समझ गया हूं कि मेरा अभिमान आपके आगे कुछ नहीं। तब कहीं जाकर गणेशजी लौटे, लेकिन धन के देवता को सबक सिखाने में कामयाब रहे।