डॉ. सुरेन्द्र शर्मा।
प्रेम व सौहार्द का संदेश देता है रक्षाबंधन का यह पर्व। रक्षाबंधन भाई-बहन के बीच प्रेम और स्नेह के मजबूत बंधन को प्रदर्शित करता है। हमारी संस्कृति कालजयी सनातन संस्कृति है और, ये पर्व प्रधान संस्कृति है। रक्षाबंधन का पर्व पवित्रता, प्रेम और आत्मीयता का पर्व है। ये विशुद्ध रूप से भाई और बहन की एकात्मकता, परस्पर प्रीति और उन संवेदनाओं का पर्व है जिसमे भाई प्रण लेता है, भगिनी की रक्षा के लिए। यद्यपि नारी की सामर्थ अपार है, वह सदा से ही विद्या, बुद्धि, विवेक चातुर्य, कला, कौशल और उन सभी प्रतिभाओं की धनी रही है जो दैवीय प्रतिभा हैं। फिर भी उसकी सुकोमलता, उसकी संवेदनशीलता, उसकी सहज उन प्रवृत्तियों के लिए जिनमें वह अत्यन्त विनम्र है और समर्पित है सबके लिए, इस कारण वह दुर्बल सी प्रतीत होती है जबकि वह ऐसी नही है। आज के दिन भाई प्रण लेता है कि मैं जीवनपर्यन्त अपनी बहन की रक्षा करूँगा और उसके अधिकारों के प्रति सचेत रहूँगा। ये काल एक ऐसा काल है जब नारी उत्थान के लिए और स्त्री के सम्मान, स्वाभिमान, उसकी निजता और उसकी पवित्रता की रक्षा के लिए पूरे विश्व में चिंता दिख रही है। ऐसे में यह पर्व अत्यंत प्रासंगिक है और ना केवल नारी के लिए अपितु अपने राष्ट्र के लिए, अपने राष्ट्र की संवेदनाओं के लिए, सीमाओं के लिए और यहां के झील, जलाशय, सरोवर, सारिताओं के लिए और यहां के खेत-खलियानों के लिए हम सभी संकल्पित हों। उनकी रक्षा के लिए, यहाँ की संस्कृति की रक्षा के लिए यह एक ऐसा पर्व है जब हम न केवल बहन से राखी बंधवाते हैं और भाई उसकी रक्षा का व्रत लेता है, बल्कि एक ऐसा भी पर्व है जब परस्पर एक-दूसरे के लिए समर्पित रहते हैं और इस दिन विशेषकर श्रवणीय काल में आचार्यों के निकट और उन महापुरुषों के निकट जो वैदकीय धर्म की रक्षा कर रहें है वैदिक संवेदनाओं के प्रति समर्पित हैं, उनसे ये आशीष लेते हैं। राखी का ये त्योहार भाइयों-बहनों के प्रेम और विश्वास के अटूट बंधन का प्रतीक है। मैं कामना करता हूं कि राखी के इस पावन पर्व से हमारे समाज में भाईचारे और एकता की भावना मजबूत हो, ताकि हम लोगों की भलाई के लिए एकजुट होकर कार्य कर सकें। इस शुभ अवसर पर हम सब संकल्प लें कि हमारे समाज में पारंपरिक रूप से माताओं -बहनों को प्रदान की गई गरिमा और सम्मान की हम रक्षा करेंगे…।
शास्त्रोक्त कथन है:-
येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल
*तेन त्वाम् अनुबध्नामि, रक्षे मा चल मा चल
अर्थात :-
“जिस रक्षासूत्र को दानवों के ईंद्र महाबलशाली राजा बलि के हाथ में बाँध कर लक्ष्मी ने उनकी रक्षा सुनिश्चित की, हे रक्षासूत्र ! आज मैं तुम्हें अपने राजा/यजमान/भाई के हाथ में उसकी सुरक्षा के लिए बाँध रहा/रही हूँ। हे रक्षे (रक्षक) ! तुम यहाँ से चलायमान मत हो जाना यानि दृढ़तापूर्वक स्थिर होकर इनकी रक्षा करते रहना ।”
प्रेम ,स्नेह और सौहार्द से परिपूर्ण भाई-बहन के पवित्र रिश्तों के पावन पर्व रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएं….🌻🌸