हीरा दत्त शर्मा।
भारत की स्वतंत्रता से पूर्व हिमाचल प्रदेश के जिला सोलन में कुनिहार एक छोटी रियासत हुआ करती थी। यह रियासत सर्वे मुल्क के नाम से प्रसिद्ध थी। यदि छोटी विलायत के नाम की कान में भनक पड़े तो हम सब के मानस पटल पर कुनिहार का नक्शा उधर जाता है। चारों ओर से पर्वतीय शैल मालाओं की हरित घाटियां एवं पर्वतीय श्रृंखलाओं के ढलान पर उत्तंग शिखरों पर बने देवी देवताओं के मंदिर आज भी आस्था परक कुनिहार रियासत जनपद की धार्मिक निष्ठा की कहानी के साक्षी है।
वैसे तो कुनिहार जनपद में धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से रमणीय एवं पर्यटन स्थल काफी है। परंतु आजकल प्राचीन डयार शिव तांडव गुफा के नाम से प्रसिद्ध हासिल कर रहा है। शिव तांडव गुफा विकास समिति की देखरेख में यह विकास और आस्था के नए मील के पत्थर स्थापित कर रही है। जनश्रुतिओ एवं दंत कथाओं के आधार पर वर्तमान शिव तांडव गुफा जो पहले डयार के नाम से जानी जाती थी, कि स्थिति का सहज अनुमान पौराणिक मिथकों के आधार पर सृष्टि के निर्माण एवं निर्वाण के प्रमुख ऐतिहासिक कथा सूत्रों के आधार पर की गई पृष्ठभूमि का मंथन करके आंका जा सकता है, पौराणिक मिथकों के विश्वास पर पुराणों में स्वयंभू शिव की उपस्थिति के विषय में जो आख्यान उपलब्ध है उनके आधार पर लिंग पुराण में वर्णित कथा के आधार पर भगवान शंकर के लिंग रूप की उपासना लिंग पुराण के अध्याय 163 श्लोक संख्या 11,000 पर दो खंडों में उपलब्ध है। जहां तक शिव तांडव गुफा के भीतर शेषनाग और स्वयंभू शिव पिंडी की उत्पत्ति के पीछे लोककथा जुड़ी है।
कहते हैं जब भस्मासुर ने शिव की आराधना कर अपने आराध्य देव शिव को प्रसन्न किया तो आशुतोष भोलेनाथ ने उन्हें वरदान मांगने को कहा तो भस्मासुर ने वरदान मांगा की जिसके भी सिर पर वह हाथ रखेगा , वह उसी समय भस्म हो जाएगा। आराध्य देव शिव ने उसे यही वरदान दे दिया परंतु भस्मासुर ने वरदान की परीक्षा भोले शंकर पर ही अजमानी चाहिए तो भोले शंकर अपनी प्राण रक्षा के लिए हिमालय की कंदराओं एवं गुफाओं में अपने को छुपाते फिरते जहां जहां भी भी जाते वहीँ प्रतीक रूप में स्वयंभू शिवलिंग पिंडी स्वरूप में छोड़ जाते जब भोले शंकर भी छुपते छुपाते इस प्राचीन शिव तांडव गुफा में प्राण की रक्षा के लिए प्रवेश किया तो इस गुफा के भीतर फणीश्वर शेषनाग ने भोलेनाथ को अपने विशाल फन फैलाकर कर छुपा लिया। जब भस्मासुर ने इस गुफा में प्रवेश किया और चारों और भोले महादेव की खोज की परंतु शेषनाग के फैलाए हुए फन के नीचे बैठे भोले के पास शेषनाग के आक्रोश के कारण आगे ना बढ़ सका और क्रोधित एवं दुखी होकर के वहां से वापस चला गया। उसके उपरांत भगवान भोलेनाथ अब अपने को स्वयंभू शिवलिंग के रूप में एवं अपने परिवार माता गौरी, शेषनाग और नंदी बैल को स्मृति चिन्ह के रूप में छोड़कर भगवान शिव अपने परिवार से कैलाश के लिए प्रस्थान कर उस स्थान से अदृश्य हो गए।
परंतु आज भी भगवान शिव एवं उसके परिवार की दिव्या उपस्थिति की अनुभूति वहां पर हर शिव भक्तों को प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से होती है क्योंकि इस शिव तांडव गुफा की विशेष विशेषता यह है कि यहां विद्यमान शिवलिंग स्वयंभू प्राकृतिक शिवलिंग है ना कि पार्थिव जो कि इस शिव तांडव गुफा की विशेषता को इंगित करती है और श्रद्धालुओं को अपनी तरफ सदैव आकर्षित करती है एवं सभी के हृदय में शिव के प्रति आस्था एवं भक्ति भाव को दोगुना कर देती है।
शिव तांडव विकास समिति एवं शंभू परिवार इस प्राकृतिक गुफा के विकास को निरंतर गति प्रदान कर रही है। अब शिव तांडव गुफा के नाम से आज विश्व पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध धार्मिक एवं आस्था का केंद्र बनती जा रहा है। आज शिव तांडव गुफा कुनिहार में बिजली , पानी एवं सुलभ मार्ग की सुविधाएं यहां श्रद्धालुओं को उपलब्ध है। जैसे उन्हें ठहरने के लिए धर्मशाला, धार्मिक कार्यक्रमों के आयोजन के लिए खुला प्रांगण एवं आधुनिक सुविधाओं से युक्त भवन सभी के लिए उपलब्ध है।
इन सुविधाओं के अतिरिक्त शिव तांडव गुफा विकास समिति एवं शंभू परिवार द्वारा यहां पर प्रति जेस्ठ सोमवार को दो दिवसीय राम चरित मानस का अखंड पाठ के उपरांत नारायण सेवा के रूप में विशाल भंडारे का आयोजन भक्तजनों के लिए किया जाता है। वैसे हर सोमवार को सभी भक्तजनों को खीर प्रसाद के रूप में वितरित की जाती है। श्रावण के धार्मिक एवं शुभ मास में तो यहां हर सोमवार को भक्त जनों हजारों की संख्या में धार्मिक आस्था को संजोए हुए इस धार्मिक स्थल पर प्राकृतिक स्वयंभू शिवलिंग के दर्शन एवं जलाभिषेक को आते है। उसके उपरांत भंडारे का आयोजन एवं भजन कीर्तन का आयोजन किया जाता है।
इस शिव तांडव गुफा के विशाल प्रांगण में कथा स्थल एवं मंच बनाया गया है। जहां पर हर वर्ष महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर ग्यारह दिवसीय महा शिव पुराण की कथा का आयोजन श्रेष्ठ वक्ताओं एवं आचार्यों के मुखारविंदसे ज्ञान गंगा प्रवाहित की जाती। इन सुविधाओं के अतिरिक्त शिव तांडव गुफा विकास समिति एवं शंभू परिवार निस्वार्थ भाव से परिसर के विकास के लिए कृत संकल्प है। वैसे शिव तांडव गुफा में प्रतिदिन सुबह से शाम तक श्रद्धालु भोले शंकर के दर्शनों एवं जलाभिषेक के लिए आते हैं क्योंकि इस शिव तांडव गुफा की विशेषता यह है कि यहां जो भी प्राचीन प्रतीक चिन्ह है वे सभी प्राकृतिक है न की कृत्रिम। इस प्राकृतिक अनोखी, अलौकिक एवं अद्भुत छटा को देखने के लिए लोग दूर-दूर से भक्तजन इस स्थल पर धार्मिक आस्था के साथ इस पावन स्थल पर आते हैं। प्रति सोमवार के साथ-साथ प्रतिदिन प्रातः , दोपहर एवं शाम के समय तीनों प्रहर शिव की पूजा एवं आरती पुजारियों द्वारा विशेष रूप से की जाती है एवं विशेष त्योहारों पर शिव स्तुति में जागरण का आयोजन पूरी रात होता है।
शिव तांडव गुफा गुफा के प्रांगण में प्रतिवर्ष महा शिवरात्रि का पावन त्यौहार पर बड़ी धूमधाम एवं हर्षोल्लास के साथ से इसका आयोजन किया जाता है। महा शिवरात्रि के दिन निकटवर्ती स्थलों और दूर पार क्षेत्रों के हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ प्रातः से शाम तक तक निरंतर चलने वाले भजनों का उपक्रम और सारी रात भगवान भोले महादेव के भजन एवं दूसरे दिन विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है। यह शिव तांडव गुफा बस स्टैंड कुनिहार से केवल आधा किलोमीटर दूरी पर स्थित है। यह शिव तांडव गुफा शिमला नालागढ़ सड़क मार्ग पर शिमला से पश्चिम दिशा की ओर और शिमला से मात्र 40 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। सोलन से बिलासपुर सड़क मार्ग के मध्य केवल 40 किलोमीटर की दूरी पर एवं जुब्बड़हट्टी हवाई अड्डे से 20 किलोमीटर दूरी पर यहां आने के लिए यातायात की सुविधाएं सुगमता के साथ उपलब्ध है। शिव तांडव गुफा प्राचीन सांस्कृतिक विरासत को संजोए हुए आज भी प्रचार-प्रसार की छाया से कोसों दूर नहीं है। वह दिन दूर नहीं जब शिव तांडव गुफा कुनिहार धार्मिक आस्था का प्रतीक बनकर के ना केवल भारत में अपितु विश्व स्तर के श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करेगी एवं विश्व मानचित्र पर अपना नाम अंकित करेगी।