सुभाष गौतम|घुमारवीं
भारत वर्ष में ऐसे बहुत कम लोग हैं जिनकी जिद ने अपनी बेटियों को उनके इस दुनियां से चले जाने के बाद भी लोगों के दिलों में जिंदा रखने की अथाह कोशिश की और कामयाब भी हो गये| जिस तरह निरूपा के पिता ने इसलिए एक बहुत बड़ी वासिंगपाऊडर की कम्पनी निरमा खडी कर दी ताकि बेटी को मरने के बाद भी जिंदा रखा जाए और निरूपमा को निरमा का नाम दिया गया जिसपर निरूपमा की तस्वीर लगी थी और पिता की सोच ने बेटी को जिंदा रखने के लिए घर घर पहुंचाया ऐसा ही एक उदाहरण बिलासपुर जिला के घुमारवीं के प्रमुख व्यवसायी पवन बरूर का है|
बेटी बड़ी हुई तो करनाल में पढ़ाई के लिए भेज दिया| लेकिन एक दिन जब रात को काल आई कि सहेली के घर में कोई हादसा हो गया है तो नेहा अपनी सहेली के साथ उसके घर गाड़ी में जा रही थी कि एक ऐसा हादसा हुआ कि सड़क दुघर्टना में पवन बरूर की बेटी नेहा का निधन हो गया| बेटी का इस तरह से अचानक छोड़ कर चले जाना परिवार माता पिता के लिए किसी सदमे से कम नहीं था|
लेकिन पिता ने हिम्मत नहीं छोड़ी और नेहा मानव सेवा सोसायटी बनाई ताकि जिते जी बेटी को लोगों के दिलों में जिंदा रखा जाए व्यवसायी थे| इस लिए एक प्लान बना नेहा के नाम से लगभग दस लाख कापी बच्चों तक पहुंचाई गई और हर बच्चे जिसे बहुत पसंद करने लगे धीरे धीरे पवन बरूर ने गरीबों के लिए इस सोसायटी के नाम से मदद करना शुरू कर दिया आज लाचार गरीब परिवारों की मदद के लिए यह संस्था सबसे अग्रिणी है|
गरीबों के लिए कपड़ों का प्रबंध करना, हमेशा मदद के लिए खड़े रहना, उनकी बहुत बड़ी विशेषता है| आज एक फर्म बन चुकी नेहा मानव सेवा सोसायटी ने कई सराहनीय काम किए हैं| पवन बरूर ने एक फर्म का मालिक होने के नाते अपने साथ करने वाले मुलाजिमों को हमेशा प्यार और स्नेह दिया है| जिसका एक बड़ा उदाहरण है कि उनके पास 20/20 साल से उनके साथी इस संस्था को आगे बढ़ाने में उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहे हैं और यही कारण है कि आज पवन भी उनपर फक्र करते हैं|