प्रजासत्ता|
हिमाचल प्रदेश में 15 मई 2003 के बाद सरकारी नौकरी में आए कर्मचारियों को पुरानी पेंशन नहीं मिलेगी। हिमाचल में ऐसे लाखों कर्मचारी हैं जिन्हें पुरानी पेंशन योजना का लाभ नही मिलेगा | हिमाचल में 15 मई 2003 के पश्चात नियमित होने वाले सरकारी कर्मचारियों को केंद्र व राज्य सरकारों के मध्य एक एमओयू0 के तहत पेंशन सुविधा से वंचित कर दिया गया, जिससे इन कर्मचारियों का सेवानिवृत्ति के बाद का समय पूर्णत: अंधकारमय हो गया है।
पुरानी पेंशन नीति को बंद करके एलआईसी आधारित अंशदायी पेंशन योजना शुरू कर दी गई है, जिसके तहत कर्मचारियों को मात्र 500 से 2000 तक की पेंशन मिल रही है, जोकि सामाजिक सुरक्षा पेंशन से भी कम है। सेवानिवृत्ति के पश्चात कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा की कोई भी गारंटी नहीं है। पूरा यौवन अपनी शारीरिक ऊर्जा को सरकारी सेवाओं में लगाने के पश्चात वृद्धावस्था में उनकी सामाजिक सुरक्षा का जिम्मा सरकार का रह जाता है। परंतु सरकारों ने अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ कर उन्हें प्राइवेट एजेंसियों के हवाले कर दिया है, जिससे कर्मचारियों में मायूसी व भविष्य के प्रति गहरी चिंता है।
दरअसल पुरानी पेंशन स्कीम नई पेंशन योजना(NPS) से ज्यादा फायदेमंद है| पुरानी स्कीम में बेनिफिट ज्यादा हैं| इसमें पेंशनर के साथ उसका परिवार भी सुरक्षित रहता है| छूटे कर्मचारियों को अगर पुरानी पेंशन स्कीम (OPS) का बेनिफिट मिलता है तो इससे उनका रिटायमेंट सुरक्षित हो जाएगा| पूरे देश के कर्मचारी लगातर पुरानी पेंशन बहाल करने को लेकर समय समय पर अपना विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।
बता दें कि केंद्र सरकार ने 1 जनवरी 2004 से नई पेंशन योजना (NPS) लागू की है| वहीं कई राज्यों में पहली अप्रैल 2004 से NPS लागू हुआ| लेकिन खास बात यह है कि 15 मई 2003 को न्यू पेशन स्कीम लागू करने वाला हिमाचल प्रदेश पहा राज्य बना था| तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने हिमाचल में इसे 2003 में लागू किया था।
गौरतलब है कि जनवरी 2004 में एनडीए सरकार ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकारी कर्मचारियों के लिए वर्षों से चली आ रही पुरानी पेंशन योजना अर्थात गारंटीड पेंशन योजना की जगह शेयर बाजार आधारित एक नई पेंशन योजना को अध्यादेश के जरिए लागू किया था। जिसका नाम न्यू पेंशन स्कीम दिया गया। 2004 से लेकर 2013 तक अध्यादेश के माध्यम से इस योजना को बनाए रखा गया तत्पश्चात 2013 में यूपीए द्वारा पीएफआरडीए एक्ट पास कर इस योजना को परमानेंट किया गया।
नई पेंशन स्कीम क्या है?
नई पेंशन व्यवस्था यानी राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) 1 जनवरी, 2004 को या उसके बाद केंद्र सरकार (सशस्त्र बलों को छोड़कर) के लिए सभी नई भर्तियों के लिए अनिवार्य योगदान योजना है। कुछेक राज्यों को छोड़कर सभी राज्य सरकारों ने इसे अनिवार्य बना दिया है। 2013 में स्थापित एक स्वतंत्र पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए), एनपीएस को नियंत्रित करता है।
यह अमेरिकी मॉडल पर आधारित योजना है जिसे आम भाषा में निजी पेंशन या पेंशन का निजीकरण कह सकते हैं। यह 2003 में पूर्व एनडीए सरकार द्वारा लागू की गई थी। जबकि पेंशन नियामक की स्थापना के बारे में 2004 में कानून यूपीए द्वारा भाजपा के समर्थन से पारित किया गया था। बड़े पेंशन फंड को इक्विटी और बांडों में निवेश किया जाता है, जिससे बाजार संबंधी जोखिम बढ़ जाता है।
एक निश्चित कट ऑफ तिथि के बाद शामिल होने वाले कर्मचारियों के लिए यह अनिवार्य है, साथ ही उनके वेतन का 10% स्वचालित रूप से निधि में जा रहा है। त्रिपुरा कुछ ऐसे राज्यों में से एक था, जो अपने कर्मचारियों के लिए एनपीएस लागू नहीं कर रहा था और पुरानी पेंशन योजना को जारी रखे हुआ था, यानी जो कर्मचारियों की कड़ी मेहनत से अर्जित किए गई पेंशन को जोखिम में नहीं डालता था लेकिन अब वहां भी भाजपा के शासन में आने के बाद इसे समाप्त कर दिया गया है। और नई पेंशन स्कीम लागू कर दी गई है।
न्यू पेंशन स्कीम का कर्मचारी क्यों कर रहे है विरोध?
न्यू पेंशन स्कीम के तहत कर्मचारियों की बेसिक सैलरी और डीए से 10% हिस्सा काट लिया जाता है और सरकार उस हिस्से के बराबर ही अर्थात 10% रकम मिलाकर तीन कंपनियों में यथा एलआईसी, यूटीआई और एसबीआई में बराबर बराबर निवेश कर देती है फिर यह कंपनियां इस पैसे को अलग-अलग फंड मैनेजर के माध्यम से निवेश करती हैं। जहां यह समस्त रकम कर्मचारी के रिटायरमेंट तक जमा रहती है।
कर्मचारियों के साथ समस्या यह है कि इस संपूर्ण 20% रकम को वे कभी निकाल नहीं सकते हैं। यही नहीं आज 15 साल बीत जाने के बाद भी सरकार ने कर्मचारियों को इस रकम में से केवल अपने हिस्से का अधिकतम 25% विशेष परिस्थितियों में ही निकालने की छूट दी है यह विशेष परिस्थितियां अत्यंत अव्यावहारिक हैं। इस पेंशन स्कीम के लागू होने के बाद से ही कर्मचारियों में भारी गुस्सा है।
यही नहीं 2004 से पहले सेवा में आए कर्मचारी की सेवाकाल के दौरान मृत्यु होने पर उसकी फैमिली को फैमिली पेंशन प्राप्त है जबकि 2004 अर्थात एनपीएस लागू होने के बाद सेवा में आए कर्मचारी की सेवाकाल में मृत्यु होने पर उसकी फैमिली को सरकार तभी फैमिली पेंशन देगी जब उसके एनपीएस अकाउंट की समस्त धनराशि सरकार के खाते में जमा कर दी जाएगी।
कर्मचारी इसे हड़प नीति की संज्ञा दे रहे हैं उनका आरोप है कि सरकार कर्मचारी के हिस्से को किस आधार पर हड़प रही है। यही नहीं निवेश की गई समस्त धनराशि आज ऐसी कंपनियों में जोखिम उठा रही है जहां लगातार घोटाले हो रहे हैं। अभी हाल ही में 15 जनवरी 2019 को आईएल एंड एफएस नामक कंपनी में 92,000 करोड रुपये स्लोडाउन का शिकार हुए जिसमें 16000 करोड़ रुपये कर्मचारियों के पेंशन फंड के थे। जिसके कारण कर्मचारियों की नींद उड़ी हुई है। उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड के कर्मचारियों का कई हजार करोड़ रुपये जो कि एनपीएस में जमा हुआ था घोटाले का शिकार हो गया।
पीएफआरडीए के तहत संपूर्ण राशि का केवल 15% शेयर मार्केट में लगाया जाना था जबकि 85% सरकारी प्रतिभूतियों में लगाया जाना था किंतु आज तक पीएफआरडीए इस बात की पुष्टि नहीं कर सका है कि समस्त धनराशि का 85% कहां लगा है और 15% कहां लगा है, और न ही इस पर अलग अलग रिटर्न मिलता है, यही नहीं इस रकम पर कोई मिनिमम रिटर्न की गारन्टी नही है। कर्मचारियों का कहना है कि इस समस्त धनराशि को कंपनियां शेयर मार्केट में लगा रहे हैं जहां उनका पैसा सुरक्षित नहीं है।
कर्मचारी की सेवानिवृत्ति के पश्चात इसी एनपीएस में जमा हुई रकम के 40% हिस्से से कर्मचारी को पेंशन दी जानी है जबकि 60% रकम सेवानिवृत्ति के बाद कर्मचारी को दे दी जाएगी किंतु इस बात की पुष्टि नहीं हो पा रही है कि जिस तरह पुरानी पेंशन योजना के तहत रिटायरमेंट कर्मचारी को उसकी अंतिम सैलरी का 50% पेंशन के तौर पर डीए मिला कर दिया जाता है और हर छह माह में उसकी पेंशन में डीए की बढ़ोतरी होती रहती है साथ ही साथ हर साल तीन परसेंट का इंक्रीमेंट मिलता है एवं पे रिवीजन की फैसिलिटी भी प्राप्त होती है किंतु एनपीएस के तहत सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारी को अंतिम बेसिक सैलरी का कितने प्रतिशत पेंशन प्राप्त होगी
न्यू पेंशन स्कीम में मिनिमम पेंशन की गारंटी भी नहीं है जबकि पुरानी व्यवस्था में 9000 रुपये की सेवानिवृत्ति के पश्चात मिनिमम पेंशन की गारंटी होती है। आज एनपीएस के तहत रिटायर होने वाले कर्मचारियों को कहीं 100, 200, 500, 800 रुपये की पेंशन मिल रही है जिसके कारण कर्मचारी लगातार विरोध प्रदर्शन करते चले आ रहे हैं।
जहाँ देश में सांसदों या विधायकों को डबल पेंशन लेने का हक है। अगर कोई व्यक्ति पहले विधायक रहा हो और फिर वह सांसद भी बना हो तो उसे विधायकी और सांसदी दोनों की पेंशन मिलती है। वहीँ देश में चपरासी से लेकर सुप्रीम कोर्ट के जज तक को सिर्फ एक पेंशन मिलती है तो फिर सांसद, विधायक और मंत्रियों को एक से अधिक पेंशन देने का नियम क्यों है।
देश के संविधान के मुताबिक सभी को समानता का अधिकार के है। ऐसे में जनप्रतिनिधियों की पेंशन के लिए भी शासकीय सेवकों की तरह गाइडलाइन बनाई जाए। कम से कम पांच साल का कार्यकाल अनिवार्य किया जाए। साथ ही वे अंत में जिस पद पर रहें, उसी की पेंशन उन्हें मिले। मंत्री या निगम-मंडल में अन्य सरकारी पदों पर रहते हुए वेतन के साथ पुराने पदों की पेंशन नहीं दी जाए, क्योंकि सरकार ने मार्च 2005 के बाद नियुक्त होने वाले सरकारी कर्मचारियों की पेंशन ही बंद कर दी है।
केन्द्र सरकार ने 2004 में नई पेंशन योजना लागू की थी| इसके तहत नई पेंशन योजना के फंड के लिए अलग से खाते खुलवाए गए और फंड के निवेश के लिए फण्ड मैनेजर भी नियुक्त किए गए थे| अगर पेंशन फंड के निवेश का रिटर्न अच्छा रहा तो प्रॉविडेंट फंड और पेंशन की पुरानी स्कीम की तुलना में नए कर्मचारियों को रिटायरमेंट के समय भविष्य में अच्छी रकम मिल सकती है| लेकिन कर्मचारियों का कहना है कि पेंशन फंड के निवेश का रिटर्न बेहतर ही होगा, यह कैसे संभव है| इसलिए वे पुरानी पेंशन योजना को लागू करने की मांग कर रहे हैं|
किस राज्य ने कब लागू की नई पेंशन योजना