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राजभाषा बनाम राष्ट्रभाषा

✍️डॉ.प्रवीण ठाकुर, राजभाषा अधिकारी, निगमित निकाय, भारत सरकार

✍️डॉ.प्रवीण ठाकुर, राजभाषा अधिकारी, निगमित निकाय, भारत सरकार

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हिंदी भाषा विश्व की प्राचीनतम भाषाओँ में से एक है, जिसने सदियों से निरंतर दीर्घकालीन यात्रा तय करते हुए अपने वर्तमान स्वरूप को ग्रहण किया है। हिंदी भाषा को यदि प्रवाहमान नदी से उपमित किया जाए तो इसमें कोई संदेह नहीं होगा। जहाँ नदी निरंतर प्रवाहित होते हुए अपने में असंख्या जलस्रोतों को समाहित करते हुए अपने क्षेत्र में निरंतर विस्तार करती है, वहीँ इस क्रम में उसमें गंदले नाले भी जुड़ जाते हैं, जो उसके अस्त्तित्व पर प्रश्नचिह्न तो सर्वथा नहीं लगा पाते किन्तु इसकी परिशुद्धता कलुषित अवश्य कर देते हैं। यही स्थिति आज के समय में हिंदी भाषा की बन चुकी है।

प्राय: यह कहा जाता है कि हिंदी भाषा का अस्तित्व खतरे में है। किन्तु यह सर्वमान्य है कि उक्त तथ्य में आंशिक सत्यता है। विहंगम अवलोकन के उपरांत स्पष्ट होता है कि गत वर्षों से हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार एवं प्रयोग में वृद्धि हुई है। आधुनिक सूचना एवं प्रौद्योगिकी के युग में कम्प्यूटर एवं मोबाइल उपकरण तो हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार के अग्रदूत प्रामाणित हो चुके हैं। वर्तमान में हिंदी टाइपिंग के क्षेत्र में परम्परागत टाइपिंग के साथ-साथ गूगल इनपुट, हिंदी इंडिक यूनिकोड, गूगल अनुवाद, ई-शब्दकोश फ़ोनेटिक टाइपिंग आदि विभिन्न उपकरणों ने हिंदी की लोकप्रियता और हिंदी टाइपिंग में जहाँ तीव्रगति उन्नत की है, वहीँ हिंदी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी एक पहचान विकसित की है।

अगर इतिहास का स्मरण करें तो दो दशक पहले हिंदी साहित्य को पढ़ने और समझने के लिए हिंदी पुस्तकों की पाण्डुलिपियों या भौतिक पुस्तकों पर निर्भर रहना पड़ता था, किन्तु आज ई-पुस्तकालय, ई-बुक, प्रतिलिपि ऐप, फ़ेसबुक, इंस्टाग्राम जैसी आधुनिकता से लैस सुविधाओं ने भौतिक पुस्तकालय को नदारद करते हुए पुस्तकों को पीडीएफ के माध्यम से घरद्वार पर प्राप्ति के लिए सुगम बना दिया है। आधुनिक समय में जहाँ इन सुविधाओं ने जहाँ हिंदी पाठकों की संख्या में बढौतरी की हैं वहीँ समय की बचत भी हुई है। हिंदी भाषा का दायरा आज जितना विकसित हुआ है उतना इससे पहले कभी नहीं हुआ होगा।

आज जहाँ हिंदी भाषा के समक्ष भाषा की परिशुद्धता एक चुनौती के रूप में उभर कर सामने आई है। हिंदी भाषा का स्वतंत्र अस्तित्व आज भी विद्यमान है। हिंदी भाषा में ग्यारह स्वरों और तैंतीस व्यजनों सहित एक विशाल और समृद्ध शब्द भंडार है और जिसका अपना पृथक अस्तित्व है। शायद ही हिंदी में कोई ऐसा अभिवादन, भाव या भावना हो जिसके अनुकूल हिंदी शब्द भंडार में शब्द न हो। अपितु इसके विपरीत हिंदी भाषा का ज्ञानकोश इतना समृद्ध है कि एक भावाभिव्यक्ति के लिए विविध पर्यायवाची शब्द उपलब्ध हैं।

अंग्रेजी सहित अन्य विदेशी भाषा हिंदी भाषा के अस्तित्व में किसी भी प्रकार का व्यवधान उत्पन्न नहीं कर सकती है। उदाहरण के लिए अंग्रेजी भाषा में प्रात:कालीन अभिवादन हेतु “गुड मॉर्निंग” मात्र एक शब्द ही मौजूद है जबकि हिंदी भाषा में इसी अभिवादन के लिए नमस्ते, प्रात:वंदन, प्रणाम, राम-राम, सुप्रभात, चरण स्पर्श या फिर देवतुल्य नमस्कार शब्द प्रचलन में है। यह बात अलग है हम अपने मुखसुख के लिए इन शब्दों को परित्याग करते हुए अग्रेजों की विरासत शब्दावली को ग्रहण किए हुए हैं।

हिंदी भाषा का इतिहास बेहद प्राचीन है। हिंदी भाषा की जननी संस्कृत भाषा रही है और संस्कृत भाषा का शब्द भंडार भी विशाल रहा है। 1500 ई.पू. संस्कृत भाषा सिर्फ वेद-पुराण, उपनिषद और आरण्यक की भाषा थी किन्तु 500 ई.पू. तक आते आते संस्कृत का लौकिक स्वरूप भी सामने आया जिसे आमजन भी समझने लग गया।1000 ई. में जब पालि, प्राकृत और अपभ्रंश होते हुए हिंदी भाषा का उद्भव हुआ तो उस समय हिंदी भाषा का अपना शब्द भंडार या तो तत्सम, तद्भव शब्दावली वाला था या फिर आगत अर्थात अरबी-फारसी, पश्तो, डच या पुर्तगाली भाषा की शब्दावली का था। 19वीं सदी तक आते-आते हिंदी शब्दकोश में जो शब्द आए उनमें आगत शब्दों की संख्या में वृद्धि हुई, जिसका एक मुलभुत कारण भारत का 300 वर्षों से भी अधिक मुस्लिम सल्तनतों और विदेशी शक्तियों के अधीन रहना रहा था। हालाँकि हिंदी भाषा के शब्दकोश में इस प्रकार की शब्दावली का आ जाना हिंदी भाषा के स्वरुप पर भी प्रश्नचिह्न लगा रहा है।

अत: अब समय की आवश्यकता है कि हिंदी भाषा में व्यावहरिक शब्दावली का प्रयोग किया जाए। वर्तमान स्वरुप में भाषा बोझिल नहीं होनी चाहिए। भाषा में और विशेष रूप से हिंदी भाषा में सरलता, स्पष्टता और रोचकता जैसे गुणों होना नितांत अनिवार्य भी है और समय की आवश्यकता भी है। चूँकि इन सभी गुणों के कारण ही हिंदी भाषा लोकप्रिय हो सकती है। वर्तमान समय में “रेल” को “लौहपथ गामिनी”, “क्रिकेट” को “लम्ब दण्ड गोल पिंड धर” और “सिगरेट” को “धूम्रपान दंडिका” कहने की आवश्यकता नहीं है। उन्हें “रेल या ट्रेन”, “क्रिकेट” और “सिगरेट” ही यथावत रखना उचित है।

भाषा बहता नीर होनी चाहिए चूँकि जिस प्रकार रुका हुआ पानी सड़ांध उत्पन्न कर देता है, उसी प्रकार भाषा में अव्यवहारिक शब्दावली का प्रयोग उसमें रुकावट पैदा करने के साथ पाठकों में कमी पैदा करेगा और भाषा मृतप्राय घोषित हो जाएगी। आज हिंदी भाषा के विभिन्न मंचों के माध्यम से राजभाषा हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिए जाने की बात चल रही है। किसी भी भाषा का स्वरूप जब लोकप्रियता और प्रयोग की दृष्टि से राज्य स्तर से ऊपर उठ जाता है तो वह किसी विशेष क्षेत्र, प्रान्त और विशेष जनसमुदाय की भाषा न रहकर सम्पूर्ण देश की भाषा हो जाती है। जहाँ तक हिंदी भाषा का सम्बन्ध है तो हिंदी भाषा हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखण्ड, मध्यप्रदेश, राजस्थान के 60 करोड़ जनसमुदाय द्वारा पहाड़ी, जौनसारी, खड़ी बोली, मारवाड़ी, मगही, मैथली, भोजपुरी, अवधी और ब्रज भाषा के रूप में बोली और समझी भी जाती है। इसके अतिरिक्त वेद, पुराण, गीता, रामचरितमानस, सूरदास के भजन, तुलसीदास का साहित्य, कबीरवाणी, मुंशी प्रेमचंद का रचना संसार तथा रामधारी सिंह दिनकारी, जय शंकर प्रसाद, अज्ञेय, सुमित्रानंदन पन्त, हरिवंशराय बच्चन का काव्य संग्रह हिंदी भाषा की विशेष धरोहरें हैं। भाषा की यह धरोहरें ही समग्र भारत को एकता के सूत्र में पिरो सकती हैं। आज फिजी, थाईलैंड, दुबई,मारसिस के साथ-साथ अमरीका, इंग्लैंड, रूस, जापान और आस्ट्रेलिया जैसे देशों के शोधार्थी हिंदी भाषा और हिंदी साहित्य पर शोध कार्य एवं अनूदित शोध कार्य कर रहे हैं। अकेले अमरीका देश में पच्चीस विश्विद्यालयों में हिंदी भाषा को शिक्षण और शोध से जोड़ा गया है। ये सब तथ्य एक भारतीय होने के नाते हर भारतवासी के लिए गौरव का विषय है। इन सभी तथ्यों से यह ज़रूरी है कि हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया जाना चाहिए। इसके लिए आवश्यक है भारत विविधता में एकता के दृष्टिकोण को अपनाए और “हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई, हैं सब भाई-भाई” की उक्ति को चरितार्थ करें और कश्मीर से कन्याकुमारी को एक राष्ट्र माना जाये। भाषा के नाम पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। राष्ट्रभाषा राष्ट्र के गौरव का प्रतीक होता है और इस विषय पर सभी दलों को एकजुटता भी दिखानी अनिवार्य है। मराठी, तेलगु, कन्नड़, उर्दू, कोंकणी, पंजाबी का सम्मान भी होना चाहिए किन्तु हिंदी को भी उसका स्थान मिलना अनिवार्य है। हिंदी ही एक ऐसी भाषा है जिसे सम्पूर्ण भारत में समझा जाता है। भाषा के नाम पर नेताओं की तुष्टिकरण की राजनीति नहीं होनी चाहिए।

Tek Raj

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