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हिंदी दिवस विशेष पर आलेख: हिंदी हिंदुस्तान की अमिट पहचान

हीरा दत्त शर्मा|
हिंदी विश्व में बोली जाने  वाली प्रमुख भाषाओं में से एक है। विश्व की प्राचीन, समृद्धऔर सरल भाषा होने के साथ हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा भी है। वह दुनिया भर में हमें सम्मान दिलाती है। राष्ट्रीय हिंदी दिवस भारत में हर वर्ष 14 सितंबर को मनाया जाता है। भारत की स्वतंत्रता के बाद 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एकमत से निर्णय लिया कि हिंदी की खड़ी बोली ही भारत संघ की राजभाषा होगी और इसे अनुच्छेद 343 (अ) के अंतर्गत संघ की राजभाषा का सम्मान एवं दर्जा दिया गया।

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इसी महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिंदी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा के अनुरोध पर सन 1953 में संपूर्ण भारत में प्रतिवर्ष 14 सितंबर को राष्ट्रीय हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। हिंदी हिंदुस्तान के हृदय की भाषा है l राष्ट्रभाषा किसी भी देश की पहचान और गौरव होती है। हिंदी हिंदुस्तान को एकता के सूत्र में बांधती है। इसके प्रति अपना प्रेम और सम्मान प्रकट करना हमारी राष्ट्रीय कर्तव्य है। इसी कर्तव्य के निर्वाहन हेतु हम 14 सितंबर को हर वर्ष हिंदी दिवस मनाते हैं।

कश्मीर से कन्याकुमारी साक्षर से निरक्षक तक प्रत्येक वर्ग का व्यक्ति हिंदी भाषा को आसानी से बोल एवं समझ लेता है। वैसे हिंदी भाषा की एक विशेषता यह भी है कि यह वैज्ञानिक एवं तार्किक भाषा है। हिंदी भाषा में जो वर्ण और अक्षर का उच्चारण होता है वैसा ही बोला और पढ़ा एवं लिखा जाता है। यह इसकी विशेषता को इंगित करती है और अन्य भाषाओं की तुलना में यह उसे भिन्न एवं महत्वपूर्ण बनाती है। हिंदी भाषा व्यक्ति को अ से अज्ञानी से आरंभ कर ज्ञ से ज्ञानी बनाती है। यही इस भाषा की निजी पहचान को उजागर करती है एवं विश्व की अन्य भाषाओं की तुलना में उसके महत्वपूर्ण भूमिका को प्रदर्शित करती है।

इसे बोलने एवं समझने में कोई परेशानी नहीं होती। बदलते युग के साथ अंग्रेज़ी भाषा ने भारत की जमीन पर अपने पाँव मजबूती के साथ गड़ा लिए हैं। जिस वजह से आज हमारी राष्ट्रभाषा को हमें एक दिन के नाम से मनाना पड़ रहा है। हिंदुस्तान में हिंदी भाषा की दयनीय एवं उपेक्षित स्थिति हम सब के लिए चिंतन और मनन का विषय बन गया है। पहले जहां स्कूलों में अंग्रेजी का माध्यम नहीं होता था, आज अंग्रेजी भाषा की विश्व पटल पर मांग बढ़ने के कारण बड़े-बड़े स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे हिंदी में पिछड़ रहे हैं। इतना ही नहीं उन्हें हिंदी ठीक ठीक से बोलना एवं लिखना भी नहीं आता।

भारत में रह करके हिंदी भाषा को महत्व ना देना भी हमारी बहुत बड़ी भूल रही है। हिंदी जानने और बोलने वालों को बाजार एवं भारतीय समाज में अनपढ़ एवं गंवार के रूप में या तुछ नजरिए से देखा जाता है। यह तो सच है कि हमें शारीरिक रूप से अंग्रेजों से स्वतंत्रता तो मिल गई परंतु मानसिक रूप से आज भी हम अंग्रेजी भाषा के गुलाम है। अंग्रेजी भाषा के प्रचार- प्रसार एवं उसको बोलने में हम अपनी शान समझते हैं। जबकि विदेशों से जैसे रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग एवं अन्य देशों के शासनाध्यक्ष हमारे देश में विदेशी भ्रमण पर यहां आते हैं तो वह भारत के राष्ट्राध्यक्षों के साथ अपनी राष्ट्रभाषा या मातृभाषा में बात करते हैं ना कि अंग्रेजी भाषा में। ऐसा करके वे अपने राष्ट्र एवं राष्ट्रभाषा के प्रति गर्व एवं सम्मान प्रकट करते हैं। इससे उनका राष्ट्र एवं राष्ट्रभाषा के प्रति अटूट लगाव एवं अगाध प्रेम की झलक देखने को मिलती है परंतु हमारे भारत में राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रति दृष्टिकोण एवं आचरण इसके विपरीत है।

वैसे मेरा अभिप्राय विश्व के किसी भाषा का इस पावन अवसर पर अपमान करना नहीं है, चाहे वह अंग्रेजी भाषा ही क्यों ना हो। अंग्रेजी भाषा का ज्ञान होना अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं एवं स्पर्धा में बने रहने के लिए नितांत आवश्यक है। वैसे भी यह अंतर्राष्ट्रीय भाषा है, परंतु हमें अपनी राष्ट्र भाषा हिंदी को प्रथम प्राथमिकता पर रखना चाहिए। आज हम सभी भारतीय आजादी का जश्न के रूप में आजादी के 75 वर्ष के पूर्ण होने के शुभ अवसर पर आजादी का अमृत महोत्सव के रूप में राष्ट्रीय पर्व मना रहे हैं। उससे हम ज्ञात एवं अज्ञात वीर एवं वीरांगनाओं की अमर गाथा का गायन कर रहे हैं जिन्होंने निस्वार्थ भाव से हमारे भारत को आजाद कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी निसंदेह यह बहुत अच्छी परंपरा है परंतु आज भी ऐसा प्रतीत होता है कि हिंदुस्तान में हिंदी के बजाय राष्ट्र भाषा की कुर्सी पर अंग्रेजी भाषा विद्यमान प्रतीत एवं अनुभव हो रही है।

आज भले ही हम आजादी का 75 वर्ष का जश्न मना रहे हैं परंतु स्वतंत्रता के के 75 वर्ष पूरा होने पर भी आज भी हमें स्वभाषा अर्थात हिंदी नहीं मिल पाई है अर्थात उसे हम पूर्ण रूप से अपने देश में अपने में आत्मसात एवं सम्मान नहीं कर पा सके हैं। जिसके बिना मानसिक स्वतंत्रता की परिकल्पना कदापि नहीं कर सकते या यह कह लीजिए कि हिंदी के राष्ट्रभाषा के सम्मान के अधूरे पन के कारण आज भी स्वतंत्रता अधूरी सी प्रतीत होती है। अतः देश के हर नागरिक को उसकी राष्ट्र भाषा हिंदीकी गरिमा बनी रहे इसके लिए हर हिंदुस्तानी को हिंदी का प्रयोग हर जगह, हर स्तर पर और हर समय करते रहना होगा। आज हर माता-पिता को चाहिए कि वह अपने बच्चों को विदेशी भाषा अंग्रेजी का अंधा अनुकरण छोड़कर कि उसे सिखाने पर इतना ध्यान देने के बजाय सभी भारतीय राष्ट्रभाषा हिंदी को सिखाने और समझाने में लगाए। यही हम सब का देश के प्रति सम्मान और कर्तव्य को प्रकट करता है।

अंत में मैं अपने आलेख को इन शब्दों के साथ विराम देना चाहूंगा:-
सम्मान जो खोया हमने
हमें उसे वापस लौटाना है…
अस्तित्व खों न दे ये अपना
अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी को बचाना है…

Tek Raj

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