तृप्ता भाटिया ✍️
आदमी जो सुनता है, आदमी जो कहता है ज़िंदगी भर वो सदायें पीछा करती हैं।
दूसरे लोगों को कूड़ादान समझना बन्द करें अपनी भावनाओं को फेंका , कंधे से आंसू पोंछे और बदलते वक्त पर हंसी के लम्हें कहीं ऒर तलाश कर लिये। दिन में कोई लम्हा, कभी सालों महीनों में या फिर अंतिम वक़्त पर यह गाने के बोल सब पर चीरतार्थ होते हैं। हम दुनिया से भाग सकते हैं अपने आप से कदापि नहीं। अच्छा किया याद बनकर चेहरे में मुस्कान ला देता है, बुरा किया दर्द का भय की कभी कोई हिसाब होगा तो सज़ा के हकदार होंगे।
कुछ लोग दूसरों का दर्द सुनना भी बोझ समझते हैं और उंन्हे नज़रअंदाज़ करते हैं अगर तुम उनमें से एक हो तो बदल लो खुद को, क्योंकि खुदा हिसाब मांगता है!
कुछ लोग अकेले रह जाने के लिए अभिशप्त होते हैं। वो अपने आस-पास के हर इंसान को इतना समझते हैं कि फिर उन्हें कोई समझ नहीं पाता। उनके आस पास कुछ ऐसे लोगों का घेरा होता है जो अपने आँसू, गम, दर्द तो उसके पास छोड़ देते हैं लेकिन हँसी, खुशी में उस भूल जाते हैं। इसके ठीक उलट वो इंसान अपनी हँसी-खुशी तो किसी से बांट लेता है लेकिन आँसू, दर्द, गम किसी के पास नहीं छोड़ पाता।
हालाँकि वो इस भ्रम में जरूर रहता है कि उससे दर्द बाँटने वाले उसके दोस्त हैं जबकि दोस्त कहे जाने वाले लोग उसका इस्तेमाल सिर्फ भावनात्मक कूड़ेदान की तरह करते हैं। उन्हें जब जब कहीं से चोट लगती है दुख पहुँचता है बस तभी वो उस शख्स के पास आते हैं और अपने स्वार्थ में अंधे होकर कभी सामने वाले ये नहीं पूछते हैं कि ‘तुम कैसे हो?’
मैंने देखा है ऐसा इंसान आखिर इस सबसे थक कर एक दिन फैसला लेता है कि अब कोई उसका दोस्त नहीं कहलाएगा। कोई उसके लिए खास नहीं रहेगा। सब सामान्य बने रहेंगे जैसे दुनिया में हज़ारों लोग हैं जिनके साथ वो औपचारिकता वश कई तरह के फेस मास्क मसलन, खुशमिजाज इंसान का मास्क, सकारात्मक ऊर्जा से भरे इंसान का मास्क, मज़बूत और कभी न हारने वाले इंसान का मास्क इत्यादि लगाकर मिलता है।
वो तय करता है कि अब लोगों को या तो निहायत अपना बनना होगा या खो देना होगा। वो तय करता है वो हमेशा की तरह अपने सॉलिट्यूड को एंज्वॉय करेगा। हम ऐसे इंसानों के खुद के पास लौट आने और खुद के साथ रहने के फैसलों से खुश होते हैं और उनसे प्रेम करते हैं।