किसी भी राष्ट्र के बच्चे कोमल कलियों के जैसे कोमल और भविष्य में खिलने वाले फूल हुआ करते हैं । इसलिए आज और कल उन्हीं का होता है। बच्चे किसी भी राष्ट्र का महत्वपूर्ण अंग होते हैं क्योंकि किसी भी राष्ट्र का भविष्य एवं विकास उस राष्ट्र के बच्चों पर ही निर्भर करता है। इसलिए बच्चों को राष्ट्र का निर्माता भी कहा जाता है। प्राथमिक शिक्षा किसी भी देश के बच्चों के लिए है आधार शिक्षा भी कही जाती है। जिस भवन की नींव जितनी गहरी होती होगी वह वह उतना ही मजबूत होगा।
21 जून को अंतरराष्ट्रीय योगा दिवस विश्व स्तर पर मनाया जाना हम सब भारतीयों के लिए गर्व का विषय है। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी एवं प्रतिस्पर्धा की गला काट युग में हम सभी अपनी मानसिक एवं आत्मिक शांति खोते जा रहे हैं। प्रतिस्पर्धात्मक हताशा और उचित मार्गदर्शन ना मिल पाने के कारण युवा वर्ग नशे की गिरफ्त में पूरी तरह ग्रसित हो गया है। इस कारण कई घर तबाह हो रहे हैं।
युवाओं और किशोरों में नैतिक मूल्यों की कमी साफ तौर पर देखी जा रही है। इस कदर हमारी युवा पीढ़ी का संस्कार विहीन होना समाज के लिए गंभीर चिंता का विषय है। नैतिक मूल्य एवं योग शिक्षा एक ही सिक्के के दो पहलू है। योग शिक्षा से नैतिक मूल्यों को बढ़ावा दिया जा सकता है। इस बात में कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि युवा शक्ति के दिशा विहीन होने एवं शिक्षा की गुणवत्ता में निरंतर गिरावट से वर्तमान सरकार भी स्वयं चिंतित है।
ऐसे में यह विषय हम सभी के लिए विचारणीय हो गया है। प्रदेश में योग शिक्षा के विषय के रूप में स्कूली पाठ्यक्रम में अभिन्न अंग के रूप में सम्मिलित करने का प्रदेश सरकार का निर्णय निसंदेह का सराहनीय एवं दूरगामी सकारात्मक प्रभाव वाला होगा। प्रदेश के स्कूलों में बच्चों को योग शिक्षा के साथ नैतिक मूल्य एवं वैदिक एवं हिमाचल की संस्कृति का पाठ भी पढ़ाया जा रहा है। यह स्वागत योग्य कदम है। समग्र शिक्षा अभियान इस दिशा में अग्रसर है।
नैतिक मूल्यों की शिक्षा प्रदान करने का उद्देश्य आज के स्कूली बच्चों के भविष्य के अच्छे नागरिक बनाने के लिए आवश्यक सभी मूल्यों को उनके आचरण में व्यवहारिक रूप प्रदान करना है। आधुनिक भौतिकता वादी युग की चकाचौंध में नैतिक मूल्यों का निरंतरर, हनन हो रहा है। जबकि शिक्षा का मूलभूत उद्देश्य चरित्र निर्माण एवं नैतिक मूल्यों का विकास करना होता है। स्कूलों में प्रचलित पाठ्यक्रम केवल सूचनाएं प्रदान करता प्रतीत हो रहा है। इससे विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास की इच्छा रखना बेमानी होगा।
आज जरूरत है कि योग एवं नैतिक शिक्षा को पाठ्यक्रम का अभिन्न हिस्सा बनाने के साथ-साथ प्रातः कालीन सभा के साथ योग एवं प्राणायाम अवश्य करवाया जाए। इतिहास के पन्नों को पलट के देखे तो समझ में आता है कि भारत में अंग्रेजों के आगमन से पूर्व हमारी शिक्षा व्यवस्था भारतीय संस्कृति के आदर्श मूल्यों एवं विचारों पर आधारित थी। अंग्रेजों ने अपने लाभ के लिए हमारी इस शिक्षा व्यवस्था से इन मूल्यों को मिटा करके अपनी सुविधा को ध्यान में रखते हुए शिक्षा व्यवस्था को अपने अनुरूप विकसित किया। इसका परिणाम यह हुआ कि आज हम शारीरिक रूप से तो भारतीय हैं लेकिन मानसिक रूप से अंग्रेजी सभ्यता के गुलाम बनकर रह गए हैं।
स्वतंत्रता के बाद हमारे नेताओं ने भी इस व्यवस्था की तरफ विशेष ध्यान नहीं दिया। वर्तमान में जब हर तरफ अपराध, भ्रष्टाचार का बोलबाला है तो ऐसे समय में नैतिक मूल्यों की शिक्षा का महत्व और भी बढ़ जाता है। इसके लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार को मिलकर के संयुक्त रूप से राजनीतिक लाभों से ऊपर उठकर के इस दिशा में कार्य करना होगा। कोई भी समाज निर्धारित नैतिक मूल्यों के बिना अपनी सामाजिक एवं राजनीतिक व्यवस्था को बनाए रखने में सफल नहीं हो सकता।
इन्हीं मूल्यों को आधार बनाकर समाज के नियमों कानूनों का निर्माण किया जाता है। इन नियमों का पालन करना उस समाज के सदस्यों पर निर्भर करता है। इन सद्गुणों को समाज तभी ग्रहण कर पाएगा जब स्कूली स्तर से ही बच्चों में सदाचार के नियम का पालन करने की आदत डाल दी जाए। छात्रों के विकास में योग एक अहम भूमिका निभा सकता है। योग शिक्षा एवं नैतिक शिक्षा का संबंध व्यवहार कुशलता या कार्य कौशल से है, इसके बारे में कहा भी गया है, योगः कर्मसु कौशलम। नैतिक शिक्षा एवं योग शिक्षा विद्यार्थियों को उन निर्धारित मूल्यों को अपने जीवन में अपनाकर जीवन की तमाम समस्या के समाधान के लिए अधिक तत्पर रहकर संघर्ष हेतु सक्षम बनाती है।
योग शिक्षा एवं नैतिक शिक्षा एक साधन है। इस साधन का प्रमुख उद्देश्य व्यक्ति के व्यवहार संबंधी क्रियाओ, कलाओ एवं अध्यात्म का ज्ञान कराना है। नैतिकता के नियमों का पालन करने के लिए राज्य सरकार का दबाव नहीं होता बल्कि इनका पालन आत्म चेतना के द्वारा किया जाता है। आत्म चेतना, आत्मनिरीक्षण आत्मानुभूति, आत्म विश्लेषण एवं आत्म अवलोकन में योग शिक्षा एक सशक्त माध्यम बन सकती है। नैतिकता का आधारभूत सिद्धांत सभी धर्मों में एक समान है। अतः योग, नैतिकता एवं संस्कृति का पाठ विद्यार्थियों को अवश्य पढ़ाया जाना चाहिए। धर्म सदैव नैतिकता से जुड़ा हुआ है। योग किसी धर्म विशेष का प्रचार नहीं करता अपितु हमें जीवन को कैसे जिया जाए यह सिखाता है। योग शिक्षा एवं नैतिक शिक्षा विद्यार्थियों के चौमुखी विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।