डिजटल इंडिया
आज कल कैसलेस इंडिया की बात हो रही है! स्यापा तो तब होता है जब कार्ड स्वेप कर के एकाउंट से डेबिट तो हो जाता है पर पेमेंट दूसरे एकाउंट तक नहीं पहुंचती। अब कई बार अच्छी खासी रकम हवा में फस जाती है! आप तुरंत अपने बैंक जिसके ग्राहक हैं फोन करना शुरू कर देते हैं। फिर आपको वहां से सुनने को मिलता है हम कुछ नहीं कर सकते, आप कस्टमर केअर पर फ़ोन कर के अपनी कंप्लेंट दर्ज करवायें। बार-बार माथा पीटने के बाद भी कहीं जाकर मुश्किल से उनका नम्बर मिलता है, अब आप पहले उनकी तसली करवाते हैं फिर जा के यह सुनते हैं कि मैक्सिमम 45 डेज और मिनिमम 5 डेज में रिफंड हो जायेगा। उस समय अचानक गालियों की डिक्सनरी आपकी आंखों के आगे खुल जाती है। शब्दावली इतनी स्ट्रांग हो जाती है कि सुनने वालों के कानों से धुआं निकले! तैश में आकर अगर अपने ऊपर नियंत्रण खो देते हैं तो आप गैरजिमेदार, बतमीज़, अनपढ़ और गवार हैं, भले ही चाहे आपका बच्चा हॉस्पिटल में बीमार हो, बच्चे की फीस जमा करवानी हो, या किसी परिजन की BP की दवाई ले जानी हो! आप एक महीने में डिज़िटल इंडिया में इतना योगदान देते हैं कि आपको भी पता नहीं पैसे कट किस बात के रहे हैं!
अब किसी ने हमसे पैसे लिये और सैम केस की तरह हवा में फंस गये! हमने बोला भैया! पैसे नहीं आये, स्क्रीनशॉर्ट भेजो कहीं गलत एकाउंट नंबर में तो नहीं चले गये! अब सामने से बोल रहा है कि भरोसा करो? अब इसका भी सबूत चाहिये? कैसे करें? लेने देन है भैया! मोहब्बत थोड़ी है जो महसूस कर लूं!
उस समय तो लगता है डिस्टल इंडिया * झुगियों में रहने वाले जो इसका मतबल तक नहीं समझते हैं* वो बाण की बनी खाट पर चैन की नींद सो रहे होते हैं! मेरी तरह ज़िन्दगी की कसमकस में तो शायद नहीं! जिसका पैसा ऑनलाइन 45 डेज के लिये हॉलीडेज पर गया है।
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