अरे ओ झंड मंच के कलाकारों सोनिया स्मृति हो गया हो तुम्हारा तो कभी किसी मर्द के सहारे भी राजनीति करो या काबिल नहीं हो। तुम्हारी प्रॉब्लम पता क्या है? तुम्हारे खानदान में किसी औरत ने तरकी नहीं कि होगी, शायद औरत चाहते न चाहते हुए भी कितना कुछ बन गयी। शायद कर्मचारी, अच्छे ओहदे पर नहीं होंगी या फिर राजनीति में नहीं इसलिए जलन होती है। अब बोलेंगे हमारे परिवार की महिलाएं तो ऐसी हैं नहीं, अपने मंजे के नीचे झाड़ू मारो तो। बहुत सी महिलाएं अपनी-अपनी पार्टी के लोगों पर भी उंगली उठा चुकी हैं। तब इनके होंठ सील जाते कुछ बोलने को, मुझे तो देखकर यकीन हो गया था कि यह लोग सिर्फ ड्रामेबाज़ हैं यह अपना घर भी नहीं संभाल सकते। तुम्हारी अपनी-अपनी पार्टी के लोग ही फिल्म रिलीज कर देते सोशल मीडिया पर। बात वही करना जो अपने घर में माँ बहन बेटी के बीच बैठ के कर सकते हो।
गलती उन औरतों की भी हैं जो राजनीति को सर्वोपरि मानती हैं और विरोध नहीं करती। औरत को तय करना होगा कि उसके समर्थक किसी के विरोध में इतना न गिर जायें की उसे अपने ही समर्थक की किसी पोस्ट पर कॉमेनेट पढ़ते शर्म आये।
तुम सर्वोपरि हो क्योंकि तुम सड़क के किनारे खड़े होकर शुशु कर सकते हो, तुम कमीज़ उतार सकते हो यह तुम्हारे लिये अहंकार की बात है जो बॉडी कैप्सूल खाकर बनाई है उसका प्रदर्शन करना। बस दिक्कत तो वहाँ हैं जहाँ किसी महिला ने डीप गले का कुर्ता पहना हो वहाँ तुम्हारे संस्कार तुम्हे सामाजिक और मर्यादित होने को मजबूर कर देते हैं।
बात किसी पुरुष ने की हो तो भी उसकी माँ या बहन को बीच में ले आओ क्योंकि उनका सहारा लिये बिना तुम कोई लड़ाई लड़ ही नहीं सकते और गलती से किसी महिला का विरोध करना हो तो लिख दीजिये उसके शरीर के अंगों की गणना करते हुए गालियाँ। क्योंकि उसके शरीर के अंग उसकी कमज़ोरी हैं और तुम्हारे ताकत।
बचपन में तो तुझे बहुत शर्म आती थी जब दूध आंखे बंद करके पिता था अब कहाँ गयी वो शर्म लिहाज। अरे अपनी उत्तपत्ति जहाँ से हुई उसकी क्या व्याख्या करता है ….वाह! अपनी शेखी मेरा सम्बन्ध तो इतनी के साथ रहा भले ही वो झूठ अपनी मर्दानगी को साबित करने के लिए चार लोगों में बोल दे और महिला कहे कि प्रेम है तो वो मर्यादावहीन और तुम मर्यादित।
अरे! मूर्खो शरीक सरंचना आपकी माँ बहन बेटी की भी वही है जिसपर ध्यान न जाते हुये तुम लोग दूसरों को टिपणियां करते हो। पढ़ाई कभी अपना लिखा हुआ अपनी पत्नी, अपनी बेटी को जो तुम लोग सोशल मीडिया पर परोस रहे हो। खुद से नज़रें नहीं मिला सकोगे कियोंकि हर घर के मर्दों की सोच अलग हो सकती है पर माँ बहन बेटियों की नहीं।
एक तरह से अप्य लोगों ने सोशल मीडिया औरतों के लिए कबिरिस्तान बना दिया है जहाँ उसकी रोज़ इज़्ज़त दफनाते हो।