मन जब दुखी होता है तो अपने आप ही “आह” या बद्दुआ निकल जाती है और ऐसा भी शांत मन साफ दिल लोग ही कर पाते हैं जो प्रतिशोध ले नहीं पाते या अच्छा होने की बजह से लेना नहीं चाहते। बार-बार अपनी आंखों के आंसू पोंछकर सिर्फ इतना कह पाते हैं कि सब भगवान देख रहा है।
असल मे भगवान कितना देख रहा ये तो पता नहीं पर कुछ टूटा हुआ सीने में जब चुभता है तो आह निकलना एक सामान्य प्रक्रिया का ही हिस्सा है। लगाव ही घाव देते हैं, दोस्त ही दुश्मन बनते हैं और जो अच्छा बनकर टूट चुका होता है वही बहुत बुरा बनता है। हर मनुष्य इस परिस्थिति से कभी न कभी गुज़रता है मैं भी तुम भी।
बस एक दुआ करिये कि यह “आह” ज़ोर से सांस लेने पर दब जाये वरना दुआ बदुआ कबूल होने में समय जरूर लगता है पर होती ज़रूर है। या फिर इंसान जब दुःखी हो, अन्दर से टूटा हुआ हो, तो उन लोगों पर भी प्यार बरसाने लगता है, जिन्हें सामान्य हालात में वह दुत्कारता आया है। जब आप कमज़ोर होते हैं, तो एक तरह की उदारता अपने आप ही जन्म ले लेती है।
मन जब दुखी होता है तो अपने आप ही “आह” या बद्दुआ निकल जाती है
