मेरी जिमेबारी कलम से प्रहार करना है और आपकी नियत पर निर्भर है कि आपकी क्या है?
आप दुनिया के सारे मुद्दे शिक्षा गरीबी रोज़गार अर्थव्यवस्था को छोड़कर बलात्कार को सरकार बनाने या गिराने का हथियार समझ लेते हैं। फिर लड़ने वालों का यह मजमा बलात्कार जैसे मुद्दे पर भी समर्थकों विरोधियों और कुछ ख़ामोश जुबानों में बंट जाता है। लड़ने वालों से गुजारिश है कि बलात्कार के खिलाफ लड़िये पर चुनाव जीतने की तर्ज़ पर मत लड़िये। सरकार के समर्थकों से कहना है कि सरकार से सवाल करना सरकार के ख़िलाफ़ खड़े होना नहीं है। सवाल करिए। इसलिए नहीं कि वो बलात्कार के जिम्मेदार हैं इसलिए कि उनकी जिम्मेदारी बनती है।
सवाल कीजिए ताकि इस लड़ाई में संसद भवन के स्तंभों को शामिल किया का सके। लोकतंत्र में हैं तो सवाल करिए। अपने इलाके के हारे-जीते हर नेता, शहर के चौकी इंचार्ज, एसपी डीएम, एमपी एमएलए, गली के लड़कों ..सबसे पूछिए की यह इलाका इंसानों के रहने के लिए अनुकूल है? पूछिए कि क्या इस शहर में कोई लड़की/बहन/बेटी/बहू बीती रात घर से अकेले बाहर निकलने के लिए सुरक्षित है? अगर नहीं तो क्यों ? और हां तो किस-किस जगह कितने बजे से कितने बजे तक। क्यूंकि तानाशाही और लोकतंत्र के बीच का फर्क सिर्फ सवालों के कद में हैं। ये सवाल भले मामूली हैं पर चुनाव के दिन आपकी उंगली पर लगने वाली, मिट चुकी स्याही को ज़िंदा रखने के लिए काफ़ी हैं। वोट देते हैं, नेता चुनते है, जैसे ढकोसलों में लोकतंत्र को परिभाषित करना खत्म कर दीजिए अब।
याद कीजिये वोट देते वक्त आपकी उंगली पर स्याही लगी थी जो बहुत दिनों तक मिटी नहीं थी।