✍️डॉ.सुरेन्द्र शर्मा । शिमला, हिमाचल प्रदेश
समुद्र के गर्भ में छिपे सीप की कोख में पलते मोती की नैसर्गिक चमक, बंद कोंपलों में खिलते फूल का मादक यौवन या फिर तपती धरती पर नीले नभ से गिरी बारिश की पहली बूँद की शीतलता … ये सभी सृजन के रूप हैं … प्रकृति ने यही वरदान स्त्री को भी दिया है। उसकी कोख से जन्मी बेटियाँ ही इस वरदान को पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ाती हैं।
माता-पिता के घर में जब बेटी का जन्म होता है तो उस घर में लक्ष्मी का आवागमन हुआ माना जाता है। वो घर सुख-सम्पदा व समृद्धि से परिपूर्ण हो जाता है। बेटी अपने भावी जीवन की नींव का निर्माण करती है, यह नींव मजबूत हो गयीं तो वह आदर्श नारी में रूपान्तरित होकर समुन्नत परिवार, श्रेष्ठ व आदर्श समाज का सुदृढ़ सांचा बन जाती है।
बेटी देवत्व की मूर्तिमान प्रतिमा है, वह दया करुणा, सेवा सहयोग, ममता, वात्सल्य, प्रेम और संवेदना की जीती जागती तस्वीर होती है, अपने परिवार व आसपास के परिवार में उसकी जीवनचर्या में अपनाये जाने वाले क्रम को देखकर सहज ही इस बात को अनुभव किया जा सकता है, बेटों में साहस, पराक्रम, बल, शौर्य आदि गुण प्रधान होता है परन्तु बेटी संवेदना प्रधान होती है। बेटी ईश्वर की अनुपम कृति है, रचना है जो संसार में प्रेम दिव्यता, संवेदना, ममता, करुणा का संचार करती है, वह मातृत्व व वात्सल्य की विलक्षण विभूति है, जो ईश्वर का प्रतिनिधित्व करती है, उसकी मूल प्रवृत्ति आध्यात्मिक होती है, उसमें आत्मिक शक्तियों की बहुलता के कारण वह दिव्य शक्ति की अधिक अधिकारिणी बनी है।
आज वह दौर बीत गया जब बेटियों के जन्म पर शोक छा जाता था। आज तो बेटियाँ वो पावन दुआएँ हैं, जो हर क्षेत्र में अपनी सफलता के लिए आदर्श बन रही हैं। आज की नारी इन सभी पुराने अंधविश्वासों व रूढ़ियों पर विजय पाकर अपनी श्रेष्ठता का प्रतिपादन कर रही है। आज हर नारी को अपने कन्या रूप में जन्म लेने पर शर्म नहीं बल्कि गौरव महसूस होता है।
आज महिला सशक्तिकरण के दौर में महिलाएँ हर क्षेत्र में लड़कों के बराबर या यूँ कहें कि लड़कों से दो कदम आगे है। कल तक पिछड़ेपन का पर्याय माने जाने वाले ग्रामीण लोग भी बदलाव के इस दौर में अपने घर बेटी के पैदा होने की दुआएँ करते हैं। यह सब लड़कियों की कामयाबी व काबिलियत का परिणाम है। एक शास्त्रोंक्त कथन है :-
पुत्रीति जाता महती हि चिन्ता,
कस्मै प्रदेयति महान वितर्कः।
दत्वा सुखं प्राप्स्यति वावनेति,
कन्या पितृत्वं खलु नाम कष्टम् ।।
इस कथन में दिए भाव एवं अर्थ आज स्वमं बेटियों ने बदल दिए हैं। यदि वह आकाश में अपनी सफलता की उड़ान भरकर उसके स्वत: स्फूर्त सशक्तिकरण का इंद्रधनुष बिखेर सकती है तो यह भी उसी के वश में है कि वह एक कामकाजी महिला होने के बाद भी पारिवारिक/सामाजिक दायित्वों को बखूबी निभा सकती है। वह अब केवल घर, परिवार और समाज ही नहीं बल्कि राष्ट्र निर्माण की धूरी है।
आज की बेटी जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ रही है चाहे वो क्षेत्र खेल हो या राजनीति, घर हो या उद्योग। राष्ट्रमण्डल खेलों के गोल्ड मैडल हो या मुख्यमंत्री और राष्ट्रपति के पद पर आसीन होकर देश सेवा करने का काम हो सभी क्षेत्रों में बेटियां समान रूप से भागीदारी ले रही हैं। उपर्युक्त कथन से तो यही बात स्पष्ट हो जाती है कि आज की नारी को स्वयं के कन्या रूप में जन्म लेने पर गर्व है। वो चाहती है कि हर जन्म में वो मादा भ्रूण के रूप में ही जन्म ले तथा नारी वर्ग व समाज के उत्थान के लिए अपना सहयोग प्रदान करे। अंत में यह कहने में बेटी का हर पिता गौरवान्वित महसूस करेगा कि :-
जिंदगी के अलंकारों में अनुप्रास हैं बेटियां।
सम्वेदनाओं का स्पर्शीय अहसास हैं बेटियां II
सब के नसीब में कहाँ होती हैं बेटियां I
भगवान को जो घर पसन्द आये वहाँ होती हैं बेटियां II
राष्ट्रीय बालिका दिवस पर सभी बेटियों को हार्दिक बधाई एवं उज्ज्वल भविष्य की मंगलकामनाएं..!!!