जो लोग लंबे लेख नहीं पढ़ पाते समय होते हुए भी उनकी मानसिकता केवल “मैं”होती है उनको जहाँ लगता कि जब मेरी तरीफ या बात ही नहीं होगी तो क्यों पढ़ें। बहुत कुछ छिपा होता है कभी पढ़िए तो!😊
क्या आपने कभी नोटिस किया है कि आपके सोशल मीडिया पर आपसे वैसे ही लोग जुड़े हुए हैं जो समाज के उसी आर्थिक तबके से हैं, जिससे आप आते हैं? अब तक नहीं नोटिस किया था तो अब चेक कर लीजिए. क्या हमारी लिस्ट में वे ग़रीब लोग हैं जिनके टिकटॉक वाले वीडियो हम सोशल मीडिया पर घूमते हुए दिखते हैं?
वैसे तो जिस सोसायटी में हम असल ज़िंदगी में रहते हैं, सोशल मीडिया पर भी हमारी वही सोसायटी है।
हम आर्थिक, समाजिक,राजनीतिक हैसियत को देखते हुई ही अपनी अपनी फ्रेंड लिस्ट में जगह देते हैं। कोई किस की पोस्ट उसके विचारों के मुताबिकअच्छी लगती है तो लाइक कर देतें , कोई ओहदे कद में बड़ा होता है तो उसकी पोस्ट लायक पर होड़ मच जाती है। किसी ओहदे में बड़े ने कुछ लिखा हो तो खुद को टिपण्णी करने से कोई रोक नहीं पता। यकीन मानिए आपको सबसे ज्यादा वही जान सकता है जो आपकी तरह है।
विरोध, लानत भी इसलिए मत जताइए की आपके चहेतों को वो पसन्द नहीं है, अपने दिल दिमाग से अच्छे बुरे की पहचान कीजिये। कुछ लोगों के दिमाग मे अक्सर चला रहता है कि मैं जिस ओहदे पर हूं सामने वाला ज्यादा फ्रेंडली होने की हिमाकत भी न करे। यह मेरा अपना अनुभव रहा है, जबकि मुझे लगता है किसी की गर्दन जरूरी नहीं आपके आगे झुके हो सकता है उसने दिल ही आपके कदमों में रखा है। खैर छोड़िए मेरे लिखने से क्या होता है? मेरी भी हैसियत का एहसासबहुत लोग मुझे करवा के चले जाते हैं।
अगर हम ये सोच रहे हैं कि हमारे लेखन से कुछ बदल गया है तो उस पर दोबारा सोचिए. मैं मानती हूँ कि लेखन से बहुत कुछ बदलता है लेकिन क्या हम वैसा लिख रहे हैं? कहीं अपने स्वार्थ, राजनीति और अतिशयोक्ति का घालमेल करके तो नहीं लिख रहे? हम क्या प्रभाव चाहते हैं अपने लेखन का? जो प्रभाव आप चाहते हैं, यक़ीन मानिए आपका लेखन वैसा ही होगा. आपको अपने बारे में भी समझ आएगा कि आप कर क्या रहे हैं।