सृष्टि के निर्माण काल से ही भाषा का संबंध मानव समाज से रहा है। मानव जीवन में भाषा एक अभिन्न अंग है, जिसके बिना मानव गूंगा है। जब कोई राष्ट्र अपने गौरव में वृद्धि करता है तो वैश्विक दृष्टि से उसकी प्रत्येक विरासत महत्त्वपूर्ण हो जाती है। परम्पराएँ, नागरिक दृष्टिकोण और भावी संभावनाओं के केन्द्र में ‘भाषा’ महत्त्वपूर्ण कारक बनकर उभरती है, क्योंकि अंततः यही संवाद का माध्यम भी है। भाषा अभिव्यक्ति का साधन होती है। भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम होती है। हमारी भावनाओं को जब शब्द-देह मिलता है, तो हमारी भावनाएं चिरंजीव बन जाती है। इसलिए भाषा उस शब्द-देह का आधार होती है। भारतेंदु हरिश्चन्द्र जी का कथन दृष्टव्य है :-
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।
विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार।
सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार।।
हिन्दी भारोपीय परिवार की प्रमुख भाषा है। यह विश्व की लगभग तीन हजार भाषाओं में अपनी वैज्ञानिक विशिष्टता रखती है। मान्यता है कि हिंदी शब्द का सम्बन्ध संस्कृत के ‘सिंधु’ शब्द से माना जाता है। सिंधु का तात्पर्य ‘सिंधु’ नदी से है। यही ‘सिंधु’ शब्द ईरान में जाकर ‘हिन्दू’ , ‘हिंदी’ और फिर ‘हिन्द’ हो गया और इस तरह इस भाषा को अपना एक नाम ‘हिन्दी’ मिल गया । हिन्दी के विकास के अनेक चरण रहे हैं और प्रत्येक चरण में इसका स्वरूप विकसित हुआ है। वैदिक संस्कृत, संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश और उसके पश्चात् विकसित उपभाषाओं और बोलियों के समुच्चय से हिन्दी का अद्यतन रूप प्रकट हुआ है, जो अद्भुत है।
किसी भी देश की भाषा उसकी संस्कृति की विरासत की संवाहक होती है। हमारा भारत देश भाषाओं की दृष्टि से अत्यन्त समृद्ध देश है। यहां अनेक भाषाएं प्रयोग में लाई जाती हैं और हमारी सभी भाषाएं साहित्यिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध भी हैं। आज न केवल हिन्दी हमारे देश को एकता के सूत्र में पिरोने वाली भाषा बन चुकी है अपितु विश्व भाषा बनने की ओर भी अग्रसर है। हिन्दी चूंकि सहज एवं सरल भाषा है और इसमें अन्य भाषाओं के शब्दों को अपना लेने की अद्भुत क्षमता विद्यमान है इसलिए यह सर्वग्राह्य है। उद्धरण दृष्टव्य है। यथा-
सुन्दर है, मनोरम है, मीठी है, सरल है,
ओजस्विनी है और अनूठी है ये हिन्दी।
यूं तो भारत देश में कई भाषाएं हैं,
पर राष्ट्र के माथे की बिन्दी है ये हिन्दी।।
पूरे विश्व को एक सूत्र में पिरो कर रखने वाली हम सब की भाषा ‘हिन्दी’ सम्पूर्ण भारत की जन भाषा, राष्ट्रभाषा और राजभाषा है। हिन्दी हमारी शान है, हिन्दी हमारा गौरव है । यह जन-जन की आशा और आकांक्षाओं का मूर्त्त रूप है और हमारी पहचान है । जब भी बात देश की उठती है तो हम सब एक ही बात दोहराते हैं, “हिन्दी हैं हम, वतन है हिंदोस्तां हमारा’’। यह पंक्ति हम हिंदुस्तानियों के लिए अपने आप में एक विशेष महत्व रखती है। हिन्दी अपने देश हिंदुस्तान की पहचान है। रविंद्रनाथ टैगोर का कथन है – ‘‘आधुनिक भारत की संस्कृति एक विकसित शतदल के समान है जिसका एक-एक दल, एक-एक प्रांतीय भाषा और उसकी साहित्य संस्कृति है। किसी एक के मिटा देने से उस कमल की शोभा नष्ट हो जाएगी। हम चाहते हैं कि भारत की सब प्रांतीय बोलियां जिनमें सुन्दर साहित्य की सृष्टि हुई है, अपने-अपने घर में रानी बनकर रहें और आधुनिक भाषाओं के हार के मध्य-मणि हिन्दी भारत-भारती होकर विराजती रहे।’’
हिन्दी केवल एक भाषा ही नहीं हमारी मातृभाषा है। यह केवल भावों की अभिव्यक्ति मात्र न होकर हृदय स्थित सम्पूर्ण राष्ट्रभावों की अभिव्यक्ति है। हिन्दी हमारे अस्मिता का परिचायक , संवाहक और रक्षक है। सही अर्थो में कहा जाए तो विविधता वाले भारत अपने को हिन्दी भाषा के माध्यम से एकता के सूत्र में पिरोये हुए है। भारत विविधताओं का देश है। यहां पर अलग-अलग पंथ, जाति और लिंग के लोग रहते हैं, जिनके खान-पान, रहन-सहन,भेष-भूषा एवं बोली आदि में बहुत अंतर है। भारतेंदु हरिश्चंद का कथन ‘चार कोस पर पानी बदले, आठ कोस पर वाणी / बीस कोस पर पगड़ी बदले, तीस कोस पर धानी’ आज भी चरितार्थ होता है। लेकिन फिर भी अधिकतर लोगों द्वारा देश में हिन्दी भाषा की बोली जाती है। हिन्दी भाषा हम सभी हिन्दुस्तानियों को एक-दूसरे से जोड़ने का काम करती है। वास्तव में, हिन्दी हमारे देश की राष्ट्रीय एकता, अखंडता एवं समन्वयता का भी प्रतीक है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का कथन दृष्टव्य है – ‘‘किसी देश की राष्ट्रभाषा वही भाषा हो सकती है, जो वहां की अधिकांश जनता बोलती हो। वह सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र में माध्यम भाषा बनने की शक्ति रखती हो। वह सरकारी कर्मचारियों एवं सरकारी कामकाज के लिए सुगम तथा सरल हो। जिसे सुगमता और सहजता से सीखा जा सकता हो। जिसे चुनते समय क्षणिक, अस्थायी और तात्कालिक हितों की उपेक्षा की जाए और जो संपूर्ण राष्ट्र की वाणी बनने की क्षमता रखती हो। बहुभाषी भारत में केवल हिन्दी ही एक भाषा है, जिसमें ये सभी गुण पाए जाते हैं।’’
हिन्दी की लिपि-देवनागरी की वैज्ञानिकता सर्वमान्य है। लिपि की संरचना अनेक मानक स्तरों से परिष्कृत हुई है। यह उच्चारण पर आधारित है, जो उच्चारण-अवयवों के वैज्ञानिक क्रम- कंठ, तालु, मूर्धा, दंत, ओष्ठ आदि से निःसृत हैं। प्रत्येक ध्वनि का उच्चारण स्थल निर्धारित है और लेखन में विभ्रम की आशंकाओं से विमुक्त है। अनुच्चरित वर्णों का अभाव, द्विध्वनियों का प्रयोग, वर्णों की बनावट में जटिलता आदि कमियों से बहुत दूर है। पिछले कई दशकों से देवनागरी लिपि को आधुनिक ढंग से मानक रूप में स्थिर किया है, जिससे कम्प्यूटर, मोबाइल आदि यंत्रों पर सहज रूप से प्रयुक्त होने लगी है। स्वर-व्यंजन एवं वर्णमाला का वैज्ञानिक स्वरूप के अतिरिक्त केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय द्वारा हिन्दी वर्तनी का मानकीकरण भी किया गया, जो इसकी वैश्विक ग्राह्यता के लिए महत्त्वपूर्ण कदम है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी की पंक्तियां दृष्टव्य है:-
है भव्य भारत ही हमारी मातृभूमि हरी-भरी । हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा और लिपि है नागरी ।।
भारतीय धर्म, संस्कृति, संगीत, साहित्य और साधना की अवधारणा ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ अर्थात् विश्व एक परिवार है। हिन्दी की भूमिका इसी पथ पर गतिमान है। भारत में ही नहीं विश्व के अनेक देशों में हिन्दी की पताका फहरा रही है। युवा पीढ़ी को वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के लिए हिन्दी की भूमिका लोकप्रिय भाषा के रूप में सिद्ध हो रही है। हिन्दी और विश्व भाषा के प्रतिमानों का यदि परीक्षण करें तो न्यूनाधिक मात्रा में यह भाषा न केवल खरी उतरती है, बल्कि स्वर्णिम भविष्य की संभावनाएँ भी प्रकट करती है। आज हिन्दी का प्रयोग विश्व के सभी महाद्वीपों में प्रयोग हो रहा है। आज भारतीय नागरिक दुनिया के अधिकांश देशों में निवास कर रहे हैं और हिन्दी का व्यापक स्तर पर प्रयोग भी करते हैं, अतः यह माना जा सकता है कि अंग्रेजी के पश्चात् हिन्दी अधिकांश भू-भाग पर बोली अथवा समझी जाने वाली भाषा है।
वर्तमान दौर में भाषाओं और संस्कृतियों के सम्मुख उनके अस्तित्व का संकट उत्पन्न हो रहा है, जिसके फलस्वरूप विश्व की अनेक बोलियां विलुप्त हो रही है। अब भाषाओं को रोजी-रोटी से जोड़कर, देखा एवं परखा जाने लगा है। इस चुनौती पर हिन्दी को भी खरा उतरना है। वैज्ञानिक आविष्कारों, तकनीकी का विकास, वैश्वीकरण, उदारीकरण, बहुराष्ट्रीय कंपनियां, विश्व बाजारवाद, मीडिया, अनुवाद, विज्ञापन, कम्प्यूटर नेटवर्क, जनसंचार, वाणिज्य-व्यापार, फिल्म उद्योग और सूचना प्रौद्योगिकी के कारण मानवता की एकता, विश्व शांति और वैश्विक सांस्कृतिक एकता में हिन्दी की भूमिका बड़ी सहायक सिद्ध हो रही है।
वैश्वीकरण का पर्याय में आने जाने वाले Google पर हिन्दी उपस्थित है। यानी वैश्वीकरण प्राप्त करने की ओर अग्रसर। आज हिन्दी में भी वह तमाम सामग्री, लगभग सभी विषयों से सम्बंधित साहित्य सब कुछ हिन्दी भाषा में भी उपलब्ध है। यह वैश्वीकरण की ओर एक सशक्त , सार्थक कदम है। 21वीं सदी में हिन्दी भाषा विश्व की सर्वाधिक प्रचलित भाषाओं की प्रतियोगिता में प्रवेश कर गई है तथा प्रयोजनमूलक और रोजगारोन्मुख (जॉब ओरियेन्टेड) होने से हिन्दी में रोजगार की अपार सम्भावनाएँ दृष्टिगोचर होती है। अनेक देशों में प्रिंट मीडिया और इलैक्ट्रोनिक मीडिया में हिन्दी की लोकप्रियता निरंतर जारी है। सोशल मीडिया में हिन्दी की भूमिका बड़ी तेजी से बढ़ रही है। इसी उपयोगिता के कारण हिन्दी के क्षेत्र में निरंतर वृद्धि हो रही है।
हिन्दी विश्व की एक प्रधान भाषा के रूप में आज अपना स्थान बना चुकी है। उसके अखिल भारतीय एवं विश्वव्यापी स्वरूप के अनेक संदर्भ आज सहज दिखाई पड़ते हैं। इंटरनेट हो या हिंदी फिल्में, कलात्मक सिनेमा हो या मीडिया के विभिन्न माध्यम, सभी जगहों पर आज हिंदी को विकसित अवस्था में देखना-सुनना सुखद अनुभूति है। टीवी और रेडियो के कार्यक्रमों एवं विज्ञापनों में अंग्रेजी का प्रतिशत कम हुआ है। प्रादेशिक और अखिल भारतीय प्रसारणों में हिन्दी के कार्यक्रमों और विज्ञापनों का प्रतिशत आज पहले से कहीं अधिक बढ़ गया है। हिन्दी के समाचार पत्रों की प्रसार संख्या बीते दशक में तेजी से बढ़ी है। इनका प्रसार दूरदराज के गांवों तक हो चुका है। स्मार्टफोन और इंटरनेट ने हिन्दी में उपलब्ध व्यापक सामग्री को जनसामान्य तक सुगमता से पहुंचाने में प्रभावी भूमिका निभाई है। हिन्दी, इंटरनेट और कंप्यूटर के अनुकूल बन गई है। ताजे आंकड़ों के अनुसार इंटरनेट और फेसबुक पर हिन्दी का प्रयोग निरंतर बढ़ रहा है। सच कहा जाये तो आज उसी भाषा को लोग आत्मसात करते हैं, जो तकनीक के अनुकूल हो साथ ही साथ कारोबार व विज्ञान के विकास में सहायक हो। हिंदी, विज्ञान व प्रौद्योगिकी एवं कारोबार के विकास की वाहक बन रही है। आज विज्ञान और कारोबार से जुड़ी किताबों का हिंदी में अनुवाद किया जा रहा है। हिन्दी में बिजनेस अखबार प्रकाशित हो रहे हैं, जिनमें बिजनेस स्टैंडर्ड और इकनॉमिक टाइम्स सबसे महत्वपूर्ण है। विदेशों में भी हिन्दी में अखबार निकाले जा रहे हैं। वहाँ कई हिन्दी पोर्टलों का भी संचालन किया जा रहा है। लचीलेपन के कारण हिन्दी नियमित तौर पर नये शब्दों को गढ़ रही है और आमजन उनका बोलचाल में प्रयोग कर रहे हैं। एक समय था जब विश्व के अन्य देशों में भारत के संदर्भ में शोध और अध्ययन केवल भारतीय विद्वान ही करते थे। परंतु आज उभरती हुई विश्व शक्ति के नाते अधिकांश देशों के सामान्य नागरिकों में भी भारत और भारतीयता को जानने-समझने में अभिरुचि बढ़ी है। लोग भारतीय समाज, सभ्यता और संस्कृति के साथ तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था और उसकी भाषा के बारे में जानने को जिज्ञासु हैं।
हिन्दी आज अनिवासी भारतीयों की मदद से पंख फैलाकर उड़ रही है। संचार माध्यमों में जो हिन्दी प्रयोग में लाई जा रही है, उसका स्वरूप अब वह नहीं है जो हम अरसे से सुनते-पढ़ते आए थे। आज की हिन्दी वस्तुतः दूसरी परंपरा की हिन्दी है, जो साहित्यकारों द्वारा प्रयोग होने वाली साहित्यिक-परिनिष्ठित हिन्दी से बहुत आगे निकल चुकी है। वह वैश्विक भाषा बनने की ओर अग्रसर है, जिसमें उसका सरोकार बाजार और तकनीक से जुड़ता है। बाजार और तकनीक से जुड़कर आज वह रोजगार की भाषा बन चुकी है। अपनी समस्याओं को अपने ढंग से सुलझाने के लिए सक्षम बनने में उसे किसी भाषाई पंडित की आवश्यकता भी नहीं हुई। दैनिक बतकही में शामिल होने से उसमें अंग्रेजी समेत अनेक भारतीय भाषाओं के शब्दों की आवाजाही बढ़ी है। उसके वाक्य-विन्यास और शब्द-प्रयोग में भी परिवर्तन हुए हैं। तभी वह अरबों रुपये के मनोरंजन उद्योग की सबसे बड़ी माध्यम-भाषा के रूप में भी विकसित हो सकी। यदि साहित्य, पत्रकारिता, बाजार और प्रशासन की अलग-अलग रंगत वाली हिन्दी के रूपों को मिला लिया जाए तभी हम समग्र रूप में हिन्दी की बात कर सकेंगे। वैश्विक स्तर पर हिन्दी प्रयोग की बेहतर स्थिति का एक प्रमुख कारण हिंदी भाषियों में अपनी भाषा के प्रति स्वाभिमान का जगना है। यह जागरण ही व्यापक जनसमुदाय को हिन्दी प्रयोग हेतु प्रेरित करते हुए हिन्दी को भारतीयता से वैश्विकता की प्रखर वैचारिक संपदा की अभिव्यक्ति की भाषा बनाता है।
भारत से बाहर विश्व के सैकड़ों विश्वविद्यालयों में हिन्दी की विधिवत शिक्षा दिया जाना इसका एक प्रमाण है। भारत के बाहर हिन्दी जानने वाले अब केवल उन्हीं देशों में नहीं हैं जहां बड़ी संख्या में प्रवासी भारतीय रहते हैं, बल्कि दक्षिण-पूर्वी एशिया के सभी देशों के साथ अमेरिका, इजराइल, फ्रांस, जर्मनी, सऊदी अरब, रूस आदि देशों में भी हिन्दी की स्थिति में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है। वैश्वीकरण की गति में शामिल होते हुए वह वैश्विक अभिव्यक्ति की भाषा बनी है। आज विश्व हिन्दी सम्मेलन भारत के बाहर फिजी, मारीशस और त्रिनिदाद में ही नहीं होते, बल्कि लंदन, न्यूयार्क और दक्षिण अफ्रिका में भी आयोजित हो रहे हैं। विश्वभर में आयोजित होने वाले इन सम्मेलनों ने बदलते युग में हिन्दी के विस्तार और विश्वव्यापी प्रगति के लिए अनेक सार्थक उपाय सुझाए हैं। हिन्दी भाषी क्षेत्रों के बाहर कलकतिया हिन्दी, हैदराबादी हिन्दी और बंबईया हिन्दी से भी हिन्दी समृद्ध हुई है।
हिन्दी आज राष्ट्रभाषा, राजभाषा, संपर्क भाषा ही नहीं, बल्कि बाजार की भाषा भी है। भूमंडलीकरण के पश्चात उपभोक्तावादी संस्कृति ने विज्ञापनों को जन्म दिया जिससे न केवल हिन्दी का अनुप्रयोग बढ़ा, बल्कि युवाओं को रोजगार के नये अवसर भी मिले। हिन्दी लगभग डेढ़ हजार वर्ष से भी अधिक पुरानी है किंतु इक्कीसवीं सदी में हिन्दी का विकास बीसवीं शताब्दी से कई गुना तीव्र गति से हो रहा है। मोबाइल क्रांति एवं विज्ञान एवं तकनीक के सहारे पूरी दुनिया वैश्विक बाजार बन चुकी है। हिन्दी अब विश्व भाषा बनने की ओर अग्रसर है, जिसका कारण हिन्दी भाषा का लचीलापन है। अनुकूलन की क्षमता के कारण यह सभी भाषाओं के शब्दों को अपने अंदर समेट लेती है। सहजता और सरलता हिन्दी को प्रसारित करने के योग्य बनाती है, और इसी से यह तकनीकी भाषा के रूप में स्वीकृत होती जा रही है। वैश्विक पटल पर हिन्दी संपर्क, प्रचार के साथ वैश्विक बाजार की भाषा बनती जा रही है। अमेरिका की भाषा नीति में दस नई विदेशी भाषाओं को जोड़ा गया है, जिनमें हिंदी भाषा भी शामिल है। मॉरीशस एवं ब्रिटेन में भी हिन्दी का वर्चस्व बढ़ा है। कुछ समय पहले संयुक्त राष्ट्र ने भी हिन्दी न्यूज बुलेटिन की शुरु आत की थी। भारत के बाहर 260 से भी अधिक विश्वविद्यालयों में हिन्दी की पहुंच है। हिन्दी भाषी लोग 137 से अधिक देशों में हैं। जहां भी भारतीय बसे हैं, वहां पर हिन्दी है। विदेशों में 35 से अधिक पत्र-पत्रिकाएं लगभग नियमित रूप से हिन्दी में प्रकाशित हो रही हैं।
विश्व भाषा बनने की ओर हिन्दी के बढ़ते कदम भारत के लिये एक बड़ी उपलब्धि है। हिन्दी विश्व भाषा बनने की समस्त अर्हताएं एवं विशेषताएं स्वयं में समाये हुए है। हिन्दी स्वयं में अपने भीतर एक अन्तर्राष्ट्रीय जगत छिपाये हुए हैं। आर्य, द्रविड, आदिवासी, स्पेनी, पुर्तगाली, जर्मन, फ्रेंच, अंग्रेजी, अरबी, फारसी, चीनी, जापानी, सारे संसार की भाषाओं के शब्द इसकी विश्वमैत्री एवं वसुधैव कुटुम्बकम वाली प्रवृत्ति को उजागर करते हैं। विश्व में हिन्दी भाषी करीब 70 करोड़ लोग हैं। यह तीसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। विश्व में हिन्दी का विकास करने और इसे प्रचारित-प्रसारित करने के उद्देश्य से विश्व हिन्दी सम्मेलनों की शुरुआत की गई । प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन 10 जनवरी 1975 को नागपुर में आयोजित हुआ था इसीलिए इस दिन को ‘विश्व हिन्दी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 10 जनवरी 2006 को प्रति वर्ष विश्व हिन्दी दिवस के रूप मनाये जाने की घोषणा की थी। उसके बाद से भारतीय विदेश मंत्रालय ने विदेश में 10 जनवरी 2006 को पहली बार विश्व हिन्दी दिवस मनाया था। उस समय से हर साल 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य हिंदी को अंतर्राष्टीय स्तर तक आगे बढ़ाकर उसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिलाना और प्रचार प्रसार करना है। यह दिन भारतीयों के लिए बेहद खास होता है। इसका उद्देश्य विश्व में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिये जागरूकता पैदा करना तथा हिन्दी को अन्तरराष्ट्रीय भाषा के रूप में पेश करना है। विदेशों में भारत के दूतावास इस दिन को विशेष रूप से मनाते हैं। सभी सरकारी कार्यालयों में विभिन्न विषयों पर हिन्दी में व्याख्यान आयोजित किये जाते हैं। विश्व हिन्दी दिवस का उद्देश्य विश्व में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिये जागरूकता पैदा करना, हिन्दी को अन्तरराष्ट्रीय भाषा के रूप में पेश करना, हिन्दी के लिए वातावरण निर्मित करना, हिन्दी के प्रति अनुराग पैदा करना, हिन्दी की दशा के लिए जागरूकता पैदा करना तथा हिन्दी को विश्व भाषा के रूप में प्रस्तुत करना है।
वर्तमान में हिन्दी को संविधान के द्वारा राजभाषा का पद मिला हुआ है, इस हेतु संवैधानिक प्रावधानों व विभिन्न आयोगों की सिफारिशों को क्रियान्विति का प्रयत्न हुआ है, किन्तु राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी अभी तक समुचित अधिकार प्राप्त नहीं कर पाई है, जो विचारणीय है। उन कारकों का अध्ययन किया जाना चाहिए, जो कि हिन्दी को राष्ट्रभाषा पद पर अधिष्ठित कर सके। हिन्दी को राष्ट्रभाषा के गौरव से विभूषित करने हेतु हमें एकजुट होना होगा । आइए, हम हिन्दी के प्रसार के लिए कृतसंकल्प होकर एक स्वर से कहें कि ‘हिन्दी हमारे माथे की बिन्दी है’। हमें यह प्रण भी लेना होगा कि हम हिन्दी को अपने उस शीर्षस्थ स्थान पर प्रतिष्ठित कर दें कि हमें हिन्दी-दिवस मनाने जैसे उपक्रम न करने पड़ें और हिन्दी स्वतःस्फूर्त भाव से मूर्द्धाभिषिक्त हो ।
हिन्दी अप्रतिम जीवनी-शक्तिवाली और संघर्षशील भाषा के रूप में उभरती हुई अपना मुक़ाम तय कर रही है । हमें अपनी भाषा से प्रेम और आत्मीयता विकसित करते हुए इसके सही उपयोग के प्रति सचेष्ट रहना चाहिये । यदि हमारी प्रतिबद्धता निरंतर सजग और उत्साही बनी रही तो वह दिन दूर नहीं, जब हमारी भाषा ‘हिन्दी’ विश्व में सिरमौर होगी ।
✍ – डॉ. सुरेन्द्र शर्मा
शिमला, हिमाचल प्रदेश