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सत्ताधारी सरकार के खिलाफ चुनाव से पहले विपक्ष की चार्जशीट महज “पॉलिटिकल ड्रामा”

सत्ताधारी सरकार के खिलाफ चुनाव से पहले विपक्ष की चार्जशीट महज "पॉलिटिकल ड्रामा"
  • चार्जशीट…! ” एक पॉलिटिकल ड्रामा “

प्रजासत्ता ब्यूरो|
हिमाचल प्रदेश के नेताओं और फ़िल्मी अभिनेताओं में फर्क करना मुश्किल होता जा रहा है। नेता आज क्या कहेंगे और कल क्या कहेंगे इसका भरोसा नहीं रहा है। नेतागण ऐसा अभिनय करते हैं कि नाट्य मालिकाएं भी फीकी फड़ जाएं। हमारी राजनीति का यह संक्रमण काल बड़ा दु:खद है। प्रदेश की सियासत के इस पॉलिटिकल ड्रामें में सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ही शामिल है।

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हिमाचल की राजनीति में पिछले दो दशकों से ऐसा ही चलता आ रहा है जिसे देख कर लगता है कि ये सभी पॉलिटिकल ड्रामेबाज एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। दरअसल हिमाचल प्रदेश में पिछले दो दशकों की सियासत में विधानसभा चुनाव से पहले सत्तासीन सरकार के खिलाफ विपक्ष द्वारा चार्जशीट सौंपने का रिवाज बना हुआ है। रिवाज भी ऐसा है कि चुनाव से ठीक पहले इसे पूरी शिद्दत से निभाया जाता रहा है, और सत्ता में बैठते ही उसे भुला दिया जाता है।

हिमाचल में मुख्य तौर कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों की सरकारें रही है। दोनों ही दलों के नेताओं ने चार्जशीट सौंपने की इस प्रथा को बरक़रार रखते हुए पूरी शिद्दत के साथ और समय समय पर निभाया है। सत्ताधारी पार्टी के नेताओं के खिलाफ चार्जशीट पेश करने वाले विपक्षी दल के नेता, जनता को ऐसा भरोसा दिलाते है कि बस सत्ता में बैठते ही सत्ताधारी पार्टी के भ्रष्ट नेताओं को सलाखों के पीछे भिजवा देंगे। यह नेता इतने बड़े अदाकार होतें हैं की भोली भली जनता इनके दिखावे और बहकावे में फंस जाती है।

दरअसल हम जिस चार्जशीट की बात कर रहें हैं, वह ऐसा दस्तावेज हैं जिसमे विपक्षी दल के नेता सत्तासीन सरकार की कमियों और सरकार में बैठे नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार सहित कई संगीन आरोपों की एक लंबी लिस्ट बना कर हस्ताक्षरों सहित माननीय राज्यपाल या किसी संवैधानिक पद पर बैठे लोगों को कार्रवाई के लिए पेश की जाती है। इस दौरान मीडिया में भी नेताओं द्वारा खूब प्रचार प्रसार किया जाता है। इन्ही मुदों को चुनाव प्रचार में भी खूब भुनाया जाता है लेकिन सत्ता में बैठते ही सब कुछ भुला दिया जाता है।

अगर हिमाचल की राजनीति में पिछले दो दशकों की बात करें तो पूर्व धूमल सरकार के खिलाफ विपक्षी दल कांग्रेस ने और उसके बाद स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के खिलाफ विपक्षी दल भाजपा ने तथा उसके बाद जयराम के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के खिलाफ विपक्षी दल कांग्रेस ने गंभीर आरोपों सहित लंबी चार्जशीट पेश की है। लेकिन यह ऐसा दस्तावेज है जिसे कार्रवाई के लिए सौंपा तो जाता है लेकिन महज एक पॉलिटिकल ड्रामा तैयार करने के लिए और चर्चाओं व मीडिया की सुर्ख़ियों में आने के लिए। अगर गलती से किसी मामले में नेताओं के खिलाफ जाँच शुरू होती होती भी है तो उसे सत्ता बदलते ही बंद कर दिया जाता है, या मामले को राजनितिक षड्यंत्र करार दे दिया जाता है।

बहरहाल कार्रवाई के नाम पर वर्षों से चार्जशीट की यह फाइलें कहीं किसी ऑफिस के कोने की अलमारी या रेक में धुल में लिपटी हुई होंगी। लेकिन इसी चार्जशीट के दम पर पॉलिटिकल ड्रामेबाज सत्ता की कुर्सी को हथिया कर उसका मजा लूट कर चले गए और चले जाएंगे। भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरैन्स का दावा करने वाली सरकारें अभी तक चुनाव के दौरान जारी की गई चार्जशीटों को विजिलेंस को नहीं भेज पाई है। इससे व्यवहारिक तौर पर यह संदेश जाता है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ कारवाई करना अब तक की सरकारों के एजेंडा में ही नहीं है। महज बारी-बारी सत्ता का सुख भोगना ही प्राथमिकता है।

Tek Raj

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