प्रजासत्ता ब्यूरो|
शिमला संसदीय क्षेत्र से सांसद सुरेश कश्यप और उनकी पार्टी भाजपा, चंबा में दलित युवक मनोहर की निर्मम हत्या पर मौजूदा सरकार को कानून व्यवस्था को लेकर सार्वजनिक मंचों पर घेर रहे हैं। उनका ऐसा करना एक तरह से सही भी है, प्रदेश में विपक्ष में रहते हुए वर्तमान सरकार को कानून व्यवस्था के लिए आईना दिखाना उनका ही काम है। क्योंकि इस समय में उनकी पार्टी हिमाचल में विपक्ष में मौजूद है।
सांसद सुरेश कश्यप एक दलित नेता भी हैं और आरक्षित शिमला संसदीय क्षेत्र से मौजूदा समय में सांसद भी हैं। ऐसे में दलितों के अधिकारों के प्रति उनका आवाज उठाना भी स्वाभाविक है। लेकिन सोच विचार करने का विषय यह है कि, क्या सांसद पहले भी इस तरह के दलित उत्पीडन मामलों में उनके हितों के लिए आवाज़ बुलंद करते नज़र आएं हैं या उनका दलित प्रेम हाल ही में जागृत हुआ है। ऐसे में जब उनकी पार्टी हिमाचल में सत्ता से बाहर हैं।
बता दें कि पूर्व भाजपा सरकार के समय जब सिरमौर जिला के शिलाई में एक दलित नेता केदार सिंह जिंदान की भी निर्मम हत्या कर दी गई थी। वर्ष 2019 में जब प्रदेश में भाजपा की सरकार थी उस समय सिरमौर जिला के शिलाई विधानसभा में दलित नेता और आरटीआई एक्टिविस्ट केदार सिंह जिंदान को तथाकथित उच्च जाति के दबंगों ने बकरास गांव में क्रूरता के साथ पीट-पीट कर मार डाला था और सबूत को छुपाने के लिए उसको एक्सीडेंट में तब्दील कर दिया था। लाश को सड़क पर डाल कर उस पर स्कार्पियो गाड़ी चढ़ाई गई और बुरी तरह से कुचल दिया था। यह केवल जातीय उत्पीड़न का मामला नहीं था बल्कि यह मामला दलितों में बढ़ती चेतना और कोई केदार न उभरने देने का भी प्रयास था।
शिमला संसदीय क्षेत्र से सांसद सुरेश कश्यप उस समय भी सांसद थे। लेकिन प्रदेश में भाजपा की सरकार होने के कारण दलित नेता और आरटीआई एक्टिविस्ट केदार सिंह जिंदान के लिए अपनी आवाज उठा न सके। शायद उस समय पार्टी में दबाव के चलते वहा अपनी आवाज़ दबाने का मजबूर हो गए। काश उस समय भी सांसद सुरेश कश्यप ने जिंदान हत्या मामले को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति व जनजाति आयोग के समक्ष उठाया होता।
हालांकि इस मामले में जिंदान के परिवार, स्थानीय लोगों और पुलिस के प्रयासों से दोषियों को सजा भी हो गई है। लेकिन जिस तरह से दलित युवक मनोहर की निर्मम हत्या पर भाजपा और सांसद सुरेश कश्यप का दलित प्रेम जागृत हुआ है वह केवल राजनीति से प्रेरित नज़र आता है। उनका चंबा के मनोहर हत्याकांड मामले को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति व जनजाति आयोग के समक्ष भी उठाने की बात मीडिया में करना भी इसी का हिस्सा हो सकता है।
बहरहाल दोनों हत्या के मामलों में कुछ समानताएँ हैं और कुछ असमानताएँ है। समानताएँ यह थी कि दोनों ही मामलों में मृतक दलित थे। दोनों की निर्मम हत्या की गई। दोनों ही हिमाचली थे। लेकिन अगर कुछ असमानताएँ थी रो वह यह कि पहले हत्याकांड के आरोपी हिंदू (राजपूत) थे, जबकि दुसरे मामले में हत्यारे मुस्लिम। जिंदान की हत्या के समय प्रदेश में भाजपा की सरकार थी मनोहर हत्याकांड के समय प्रदेश की सत्ता पर कांग्रेस की सरकार है। जिंदान सिरमौर जिला का दलित नेता था जबकि मनोहर चंबा का एक दलित मजदूर। ऐसे में सोचने वाली बात यह है कि सिरमौर के दलित नेता जिंदान की हत्या पर सांसद सुरेश कश्यप की चुप्पी क्यों थी,जबकि चंबा के मनोहर हत्याकांड पर एकाएक उनका दलित प्रेम जागृत हो गया।
हमारे नजरिए से इस तरह के मामलों में दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। ऐसी घटनाएँ समाज और वर्ग में द्वेष की भावना पैदा करती है। जिसमे कई राजीनीतिक दल अपनी रोटियां सेंकना चाहते हैं। ऐसे में नियम और कानून लागु करने वाली संस्थाएं इन मामलों में निष्पक्षता से कार्रवाई करे और दोषियों को सजा दिलाएं।