(कश्यप)|पट्टा महलोग
भारत माता की रक्षा के लिए अपने प्राणों की सर्वोच्च आहूति देने में हिमाचल के वीर सपूत हमेशा आगे रहे हैं। कारगिल युद्ध मे भी हिमाचल के जवानों ने शहादत का ऐसा इतिहास लिखा है जो हमेशा याद रखा जाएगा। कारगिल युद्ध जीतने में हिमाचल के सपूतों का बड़ा योगदान रहा है। कारगिल में 52 हिमाचली जवानों ने देश पर प्राण न्योछावर किये थे। इस युद्ध मे जिला सोलन के जिन वीर सपूतों ने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया है, उनमें महलोग क्षेत्र के गांव बुघार के सिपाही शहीद धर्मेंद्र सिंह सुपुत्र नरपत राम का नाम हमेशा अमर रहेगा।
कसौली उप मण्डल के तहत ग्राम पंचायत बुघार कनैता के शहीद धर्मेंद्र सिंह के पिता नरपत राम वर्मा ने बताया कि धर्मेंद्र मात्र 20 वर्ष की उम्र में ही देश सेवा करते हुए कारगिल युद्ध में 30 जून 1999 को शहीद हो गए थे,उन्होंने बताया कि उनका बेटा 3-पंजाब बटालियन में सिपाही था और उस समय कारगिल में ही तैनात था।30 जून 1999 को यह वीर सिपाही विजय कार्यवाही के दौरान दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हो गया था व उस समय पंजाब रेजीमेंट के नायक कुलदीप सिंह व अन्य जवान शहीद का पार्थिव शरीर उनके घर बुघार छोड़ने आए थे व शहीद के परिजनों से बात करते हुए उन्होंने बताया था कि बटालिक सेक्टर 3 पंजाब रेजिमेंट में घुसपैठियों ने धावा बोला था, इसी दौरान पोजीशन बदलते वक्त गोली धर्मेंद्र की छाती में लगी थी। 3 जुलाई 1999 को उनका पार्थिक शरीर गंभर नदी के किनारे पूरे राजकीय और सैनिक सम्मान के साथ पंचतत्व में विलीन हो गया था व हजारों लोगों ने नम आंखों से उन्हें अंतिम विदाई दी थी।
कारगिल से पाक फौज को खदेड़ने के बाद सीने में गोली खाकर शहादत का जाम पीने वाले शहीद धर्मेंद्र के नाम पर आज तक कुछ घोषणाएं पूरी नहीं हो सकी है, जिसका शहीद के परिवार को आज भी मलाल है। महज 20 वर्ष में ही उन्होंने अपनी जिंदगी वतन के नाम लिख दी। हालांकि घुमारवीं में उनके नाम का पेट्रोल पंप और स्थानीय विद्यालय का नाम उनके नाम को गौरवान्वित कर रहा है, लेकिन उनके पैतृक गांव बुघार कनैतां में आयुर्वेदिक स्वास्थ्य केंद्र खोलने और भाट की हट्टी कुठाड़ संपर्क मार्ग का नाम शहीद के नाम पर रखने की घोषणा पूर्ण नहीं हो सकी है।
गांव के लोग पिछले 22 वर्षों से शहीद धर्मेंद्र के नाम से आयुर्वेदिक स्वास्थ्य केंद्र खोलने की मांग कर रहे है लेकिन अभी तक किसी भी सरकार ने इस पर गौर नही किया है। नरपत राम ने बताया कि सरकार कोई भी रही हो उन्हें केवल आश्वासन ही मिले हैं उन्होंने कहा कि शहीदों को सम्मान दिल से दिया जाना चाहिए न कि दिखावे के लिए। शहीदों के सम्मान से सेना का मनोबल बढ़ता है और युवा पीढ़ी को इससे देश सेवा की प्रेरणा मिलती है।उन्होंने यह भी बताया कि उनका परिवार सैनिक पृष्ठभूमि वाला है। चार बेटों में सबसे बड़े बेटे धर्मेंद्र की शहादत के बाद उनका दूसरा बेटा जोगिंदर सिंह भी सेना में भर्ती हो गया था वो भी 18 वर्ष की सेवा के बाद सेवानिवृत्त होकर घर आ गया है।
शहीद धर्मेंद्र राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय दुर्गापुर धारड़ी में शहीद का स्टेचू उनके परिवार द्वारा स्थापित किया गया है। विद्यालय प्रशासन द्वारा प्रतिदिन विद्यालय प्रारंभ होने से पूर्व इस स्टेचू पर माल्यार्पण व इनके बलिदान को याद करता है। शहीद धर्मेंद्र का जन्म 26 जनवरी 1979 को हुआ था। प्रतिवर्ष इन के जन्मदिन पर विद्यालय में ध्वजारोहण किया जाता है तथा देश भक्ति से संबंधित सांस्कृतिक कार्यक्रम किए जाते हैं। वहीं कृष्णगढ़ क्रिकेट क्लब द्वारा हर वर्ष शहीद की याद में क्रिकेट स्पर्धा का आयोजन कर उनके परिजनों को भी सम्मानित किया जाता है।
शहीद का परिवार व स्कूल प्रशासन मिलकर हर वर्ष इनका जन्मदिन भी मनाता है। ग्रामीणों का कहना है कि सरकार को जन सुविधा के लिए शहीद के नाम पर की गई घोषणा के अनुरूप बुघार में एक डिस्पेंसरी खोल देनी चाहिए व सड़क का नामकरण शहीद के नाम कर देना चाहिए। यही वीर सपूत के लिए एक सच्ची श्रद्धांजलि होगी। शहीद के परिजनों ने एक बार फिर प्रदेश के मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर व स्वास्थ्य मंत्री डॉ राजीव सैजल से बुघार में आयुर्वेदिक डिस्पेंसरी खोलने की मांग की है।