पालमपुर|
हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री शांता कुमार ने कहा कि प्रातःकाल अखबार के प्रथम पृष्ठ पर पहली खबर को पढ़ते-पढ़ते ही कुछ सोचने लगा। सोचते-सोचते सिर शर्म से झुक गया।
उन्होंने कहा कि खबर थी कि आई.पी.एल. नीलामी में भारत की कोई बेटी सबसे अधिक डेढ करोड़ में बिकी, कोई बेटी 40 लाख रू में बिकी, कोई बेटी नीलामी में बहुत सस्ती बिकी और कोई बेटी बहुत मंहगी बिकी। आई.पी.एल. खेलों के लिए इसी प्रकार हर वर्ष नीलामी लगती है और देश के बहादुर खिलाड़ी खरीदें और बेचे जाते हैं।
सच्चाई यह है कि उस अर्थ में न तो कोई नीलामी होती है और न ही कोई खरीदा व बेचा जाता है। वास्तव में कोई संस्था खेलने के लिये किसी खिलाड़ी को धन से सम्मानित करती हैं। अच्छे खिलाड़ियों को सम्मानित करने के लिये संस्थाओं का आपिस में मुकाबला होता है।
शांता कुमार ने कहा भाषाएं इतनी दिवालिया नहीं हुई हैं कि इस गौरवपूर्ण कार्य के लिए अच्छे शब्द न मिलें। मुझे समझ नही आता नीलामी में खिलाड़ियों का लाखों करोड़ों में खरीदा और बेचा जाना क्यों लिखा जाता है। और वस्तुएं खरीदी और बेची जाती है। दुर्भाग्य से भारत में कभी-कभी नेताओं की भी नीलामी होती है वे भी खरीदे और बेचे जाते है। परन्तु इन्ही शब्दो का प्रयोग भारत के बहादुर खिलाडियों के लिए बिलकुल नही किया जाना चाहिए। भारत के खिलाड़ियों को भी इस शब्दो के प्रयोग का विरोध करना चाहिए।
उन्होंने भारत सरकार के खेल मंत्री अनुराग ठाकुर से विशेष आग्रह किया है कि इन शब्दों का प्रयोग न किया जाए। ये खिलाड़ी किसी संस्था के लिए खेलते है। कोई संस्था इन खिलाड़ियों को खेलने के लिए लाखों करोड़ो से सम्मानित करती है। उन्होंने कहा मुझे विष्वास है कि हिमाचल के योग्य युवा नेता अनुराग ठाकुर इस महत्वपूर्ण विषय पर निर्णय लेकर एक ऐतिहासिक काम करेंगे।