हिमाचल प्रदेश में चुनाव का दिन नजदीक आता जा रहा है। हालांकि कई दल मैदान में है लेकिन मुख्य जंग सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्षी दल कांग्रेस में है। ऐसे में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दल पूरी तरह से चुनाव प्रचार में जुटे हुए है। दोनों ही दल एक-दूसरे पर जमकर निशाना साध रहे हैं।
कांग्रेस को हिमाचल के रिवाज और सरकार के प्रति मतदाताओं की नाराजगी का सहारा है जबकि भाजपा का दावा है कि 5 साल उन्होंने प्रदेश में बहुत विकास किया और बेहतर सरकार चलाई है। इसलिए भाजपा सरकार फिर से सत्ता में वापस लौटेगी और हिमाचल में रिवाज बदलेगी। लेकिन भाजपा के नेता चुनाव में सुरक्षित खेल ही खेलते नज़र आ रहे हैं, और कांग्रेस नेताओं की घेराबंदी नहीं कर पाए।
सत्ता में बैठी भाजपा हिमाचल मैं मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के नेतृत्व बहुत विकास के दावे कर रही है। चुनाव जयराम ठाकुर के नाम पर ही लड़ा जा रहा है। लेकिन जयराम ठाकुर खुद ही सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। लेकिन इससे पहले के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की बात करें तो वह अपने विरोधियों को चौकाने के लिए जाने जाते थे, और विपक्ष के मजबूत किले पर सीधे निशाना साधते थे। राजनीति और युद्ध का एक बड़ा नियम है कि यदि आप अपनी रणनीति से विरोधी को चौंका देते हैं तो आपको जीतने के लिए शुरुआती बढ़त मिल जाती है।
लेकिन इस बार के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी इसमें चूक गई है और पार्टी के बड़े नेता चाहे वह मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर हो राजीव बिंदल हो कैबिनेट मंत्री विरेंद्र कंवर, राजीव सैजल, गोविंद सिंह ठाकुर विक्रम ठाकुर हो कोई भी बड़ा नेता कांग्रेस के गढ़ में नहीं उतर पाया। हालांकि भाजपा हाईकमान ने दिग्गज मंत्री सुरेश भारद्वाज और राकेश पठानिया की सीटों में जरूर बदलाव किया है। दोनों ही नेताओं में नाराजगी है।
पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल का चुनाव क्षेत्र हमीरपुर की जगह सुजानपुर से मैदान में उतारकर विरोधियों को चौंकाने की कोशिश की थी,और वह इसमें कामयाब भी रहे थे। भाजपा की जीत हुई, लेकिन धूमल खुद चुनाव हार गए थे।
इसके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र की बात करें तो वह अपना विधानसभा क्षेत्र बदलकर चुनाव लड़ते थे रोहड़ू ,रामपुर, जुब्बल कोटखाई, शिमला ग्रामीण ,और अर्की से अलग अलग समय पर मुश्किल सीट से चुनाव लडा और जीते। वीरभद्र सिंह ने लोकसभा चुनाव भी मंडी से लड़ा था और इसमें वह जीते भी थे।
पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह हमेशा चुनौतीपूर्ण सीट से चुनाव लड़ते थे। इस रणनीति से बीजेपी हमेशा ही बैकफुट पर रहती थी। विपक्ष को चौंकाने वाली यह रणनीति अब तक कामयाब रही है। लेकिन विपक्ष के किले में इस बार सीधी चुनौती देने की हिम्मत न तो भाजपा का कोई नेता कर पाया न तो खुद सीएम जयराम ठाकुर।