हिमाचल की सुक्खू सरकार द्वारा 6 मुख्य संसदीय सचिवों (सीपीएस) की नियुक्ति पर कांग्रेस और भाजपा में सियासी तकरार पैदा हो गई है। नेता प्रतिपक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने सोमवार को शिमला में एक पत्रकार वार्ता में सीपीएस की नियुक्ति पर सरकार को घेरते हुए कहा कि सत्ता परिवर्तन नहीं, व्यवस्था परिवर्तन की बात मुख्यमंत्री लगातार कर रहे हैं, लेकिन वही मुख्यमंत्री व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर लगातार प्रदेश के खजाने पर खर्च का बोझ बढ़ा रहे हैं।
जयराम ठाकुर ने कहा कि असम में सीपीएस की नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट से रद्द हो चुकी है। मणिपुर व दिल्ली में भी सीपीएस की नियुक्तियों को अदालती आदेशों के बाद सरकारों ने रद्द कर दिया। भाजपा की पूर्व सरकार ने प्रदेश में सीपीएस की नियुक्ति नहीं की। असम में सीपीएस की नियुक्ति रद्द करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह संविधान के अनुच्छेद 164 (1) (ए) की मूल भावना के खिलाफ है।
माना जा रहा है कि विपक्षी दल भाजपा ने सीपीएस की नियुक्तियों पर कानूनी राय ले रही है। कानूनविदों की राय के बाद भाजपा इसे अदालत में चुनौती दे सकती है।
वहीं कैबिनेट मंत्री अनिरुद्ध सिंह और विक्रमादित्य सिंह ने पूर्व मुख्यमंत्री एवं नेता प्रतिपक्ष जय राम ठाकुर को चर्चा में बने रहने के लिए आधारहीन एवं बेतुकी बयानबाजी से दूर रहने की सलाह दी है।
दोनों मंत्रियों ने कहा कि मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति के बारे में पूर्व मुख्यमंत्री के आरोप भी गैर-जिम्मेदाराना हैं। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री को याद दिलाते हुए कहा कि पूर्व सरकार के कार्यकाल में विभिन्न बोर्डों एवं निगमों में अध्यक्ष तथा उपाध्यक्षों की बड़े स्तर पर नियुक्तियां की गई थीं। उन्होंने कहा कि सभी हारे और नकारे हुए दूसरी पंक्ति के नेताओं को उस समय अध्यक्ष और उपाध्यक्ष बनाकर मलाईदार पदों पर सुशोभित किया गया था। ऐसे में भाजपा नेताओं को प्रदेश सरकार के निर्णयों पर टिप्पणी करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है।