हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में विशेष पॉक्सो अदालतों को कई निर्देश जारी किए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जांच या मुकदमे के दरमियान पीड़ित बच्चे की पहचान का खुलासा न हो सके। जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने भारतीय दंड संहिता की धारा 363, 366, 376 और पोक्सो एक्ट की धारा 4 के तहत एक आरोपी को बरी करने के खिलाफ राज्य सरकार की ओर से दायर अपील पर विचार करते हुए ये निर्देश जारी किए।
अभियुक्त के पक्ष में बरी करने के आदेश को बरकरार रखते हुए, अदालत ने मामले में निचली अदालत के समक्ष कार्यवाही के तरीके पर गहरी चिंता प्रकट की। अदालत ने कहा कि फैसले में पीड़िता की मां के नाम का उल्लेख किया गया है और मामले की कार्यवाही कैमरे पर नहीं की गई थी, जो कि पॉक्सो अधिनियम की धारा 37 के तहत अनिवार्य है। कोर्ट ने कहा, “मामले में 4 जुलाई, 2016 से पारित आदेश पत्र के अवलोकन से, जब तक कि अभियुक्तों के खिलाफ दलीलें नहीं सुनी गईं, पता चलता है कि कार्यवाही “कैमरा” पर कभी नहीं की गई। यहां तक कि पीडब्लू-1, जो शिकायतकर्ता और पीड़िता की की मां है, और पीडब्लू-3, जो पीड़िता है, के साक्ष्य रिकॉर्डिंग करते समय भी पोक्सो अधिनियम की धारा 33(7) के अनिवार्य प्रावधानों का पालन नहीं किया गया। बल्कि कैजुअल तरीके से, शिकायतकर्ता, उसकी बेटी (पीड़िता) का पूरा पता, उनकी पहचान प्रदर्शित की गई।”
ऐसे में कोर्ट ने निम्नलिखित निर्देश जारी किए:-
(i) स्पेशल जज (जजों) और पुलिस को यह सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए कि जांच या ट्रायल के दरमियान पीड़ित बच्चे की पहचान का खुलासा न किया जाए, जब तक कि यह बच्चे के हित में न हो।
(ii) पोक्सो अधिनियम की धारा 37 के अनुसार मामले की सुनवाई कैमरे पर होनी चाहिए।
(iii) बयान दर्ज करते समय, विशेष न्यायाधीश यह सुनिश्चित करें कि पीड़ित बच्चे की पहचान, साथ ही उसके परिवार, स्कूल, रिश्तेदारों या पड़ोस की पहचान या कोई अन्य जानकारी जिसके द्वारा उसकी पहचान उजागर हो सके, उसका खुलासा नहीं किया जाएगा। (iv) पीड़ित बच्चे, उसके रिश्तेदारों के बयान दर्ज करते समय, विशेष जज (जजों) को उन्हें एक काल्पनिक नाम देने की स्वतंत्रता होगी और ऐसा करने से पहले, विशेष जज (जजों) दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 173(2) के तहत बच्चे के साथ-साथ गवाहों की पहचान के बारे में खुद को संतुष्ट करने के लिए स्वतंत्र है। ऐसी संतुष्टि को मामले की कार्यवाही में दर्ज किया जाना चाहिए।
(v) हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा जारी निर्देश संख्या एचएचसी/प्रशासन/निर्देश/2018-33, 12 जुलाई, 2018 के अनुसार, जिला न्यायालयों की वेबसाइट पर सभी निर्णयों को अपलोड किया जाएगा। इस प्रकार, पॉक्सो अधिनियम के तहत मामलों का निस्तारण कर रहे विशेष जजों को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित किया जाता है कि वे अपने निर्णयों में वे विवरण शामिल न करें जिनसे बच्चे की पहचान का पता लगाय जा सके, जैसा कि धारा 33( 7) POCSO अधिनियम के तहत अनिवार्य
(vi) पोक्सो अधिनियम के तहत मामलों को देखने वाले विशेष जजों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे पॉक्सो अधिनियम के प्रावधानों का अक्षरश: पालन करेंगे। कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि विधायिका ने POCSO अधिनियम के तहत कुछ सुरक्षा उपायों को शामिल करके बाल पीड़ितों के हितों की रक्षा की है। उन सुरक्षा उपायों को अधिनियम में शामिल इसलिए भी किया गया है कि पीड़िता के साथ-साथ उसके परिवार को जोखिम से बचाया जा सके)
-ख़बर इनपुट लाइव लॉ-