प्रजासत्ता ब्यूरो|
फेसबुक पर भगवान शिव और नंदी (शिव की सवारी) के बारे में अपमानजनक टिप्पणी पोस्ट करने के आरोपी एक डॉक्टर को हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया।
दरअसल, भगवान शिव और भगवान नंदी (भगवान शिव का बैल वाहन) के खिलाफ अपमानजनक फेसबुक कमेंट करने के आरोप में आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत डॉक्टर के खिलाफ FIR दर्ज हुई। आरोपी डॉक्टर ने अग्रिम जमानत की मांग करते हुए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी।
न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह ने कहा कि आरोपी कोई सामान्य व्यक्ति नहीं बल्कि एक शिक्षित व्यक्ति था जो अपने कथित पोस्ट और टिप्पणियों के संभावित प्रभाव के बारे में पूरी तरह से सचेत था।
कोर्ट ने कहा कि समाज में दूसरों की धार्मिक मान्यताओं का सम्मान करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है।
कोर्ट ने कहा, “समाज में रहते हुए, समाज के अन्य सदस्यों की धार्मिक आस्था को उचित सम्मान देना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर लक्ष्मण रेखा को पार नहीं किया जाना चाहिए।”
कोर्ट ने कहा कि जमानत याचिका को अनुमति देने से समाज में गलत संकेत जाएगा और दूसरों को ऐसी टिप्पणियां करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा जिससे अन्य धर्मों के अनुयायियों में नाराजगी पैदा हो, जो देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने के लिए अच्छा नहीं है।
इसलिए, कोर्ट ने नेत्र रोग विशेषज्ञ नदीम अख्तर की अग्रिम जमानत की याचिका खारिज कर दी।
बता दें कि नदीम अख्तर के खिलाफ दायर शिकायत में आरोप लगाया गया है कि उन्होंने शिवलिंग और नंदी के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी पोस्ट की थी। शिकायत में कहा गया है कि वह आदतन ऐसे पोस्ट करता है और उसके कृत्य से धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं। अदालत को बताया गया कि उनके पोस्ट से आसपास के गांवों के लोगों में नाराजगी के साथ-साथ बड़े पैमाने पर प्रदर्शन भी हुए।
इसलिए, अख्तर के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 295-ए (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना) के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज की गई थी। बाद में, अख्तर के खिलाफ शिकायत में आईपीसी की धारा 153 ए (शत्रुता को बढ़ावा देना) और 505 (2) (सार्वजनिक शरारत) के तहत आरोप भी जोड़े गए।
जांच के दौरान, पुलिस को अख्तर के फेसबुक पेज से स्क्रीनशॉट के प्रिंट-आउट मिले, जिसमें कथित अपमानजनक पोस्ट थे। अदालत के समक्ष एक स्थिति रिपोर्ट भी प्रस्तुत की गई, जिसमें अख्तर के फेसबुक प्रोफाइल पर पाए गए आपत्तिजनक पोस्टों का विवरण दिया गया था।
इस बीच, अख्तर ने कहा कि उनका फेसबुक अकाउंट हैक कर लिया गया था और विवादास्पद पोस्ट किसी और ने किए थे।
हालाँकि, कोर्ट ने बताया कि उन्होंने अपने अकाउंट के कथित तौर पर हैक होने के बारे में पुलिस से कोई शिकायत नहीं की है। इसके अलावा, अदालत ने कहा कि, स्थिति रिपोर्ट के अनुसार, ऐसा प्रतीत होता है कि अख्तर ने इंटरनेट डेटा को हटाने और ऑनलाइन टिप्पणियों को संशोधित करने के तरीके के बारे में Google पर खोज की थी।
इस पहलू पर भी विचार करते हुए कोर्ट ने अख्तर की जमानत याचिका खारिज कर दी।
कोर्ट ने कहा, “आवेदक का समाज में रुतबा है और इस तरह उस पर अधिक जिम्मेदारी है। कथित तौर पर टिप्पणी करने या अपने फेसबुक अकाउंट पर पोस्ट डालने से पहले उसे अधिक सावधानी बरतनी चाहिए थी।” न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि उसकी टिप्पणियों को अख्तर के खिलाफ मामले की योग्यता पर अभिव्यक्ति के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, और केवल जमानत के प्रश्न पर निर्णय लेने के लिए किया गया था।