Bhunda Maha Yagya 2025: हिमाचल प्रदेश के रोहड़ू के दलगांव में चल रहे ऐतिहासिक भुंडा महायज्ञ में आज महत्वपूर्ण बेड़ा की रस्म निभाई गई। ऐतिहासिक भुंडा महायज्ञ में शनिवार को शाम के वक्त बेड़ा रस्म पूरी की गई। इस महायज्ञ में सूरत राम ने मौत की घाटी को घास से बनी रस्सी से पार किया। इसे देखने के लिए हजारों की संख्या में दलगांव में भीड़ उमड़ी। हिमाचल की देव संस्कृति और आस्था से जुड़ा यह महायज्ञ आकर्षण का केंद्र रहता है।
हालांकि पहले दिव्य रस्सी बांधते हुए एक कोने से टूट गई। ऐसे में कुछ समय के लिए तैयारियों में व्यवधान पड़ा और बाद में मंदिर कमेटी ने दूरी को कम करते हुए रस्म को पूरा किया। इससे पहले पूरे विधि-विधान के साथ देवता के रथ में सवार होकर सूरत राम सफेद पोशाक में बेड़े की रस्म करने के लिए तय स्थान पर पहुंचे।
Bhunda Maha Yagya 2025: नौंवी बार पार की मौत की घाटी
बता दें कि सूरत राम (65 साल) नौवीं बार बेड़ा बनकर रस्सी के सहारे मौत की घाटी को पार की। साल 1985 में बकरालू महाराज के मंदिर में इससे पहले भुंडा हुआ था, वहां भी सूरत राम (तब 21 साल के थे) ने ही इस रस्म को पूरा किया था। सूरत राम प्रदेश में अलग अलग स्थानों पर होने वाले भुंडा महायज्ञों में 8 बार बेड़ा की भूमिका निभा चुके हैं।
मान्यताओं के अनुसार भुंडा महायज्ञ में घास से बनी यह रस्सी को नाग का प्रतीक के रूप में माना जाता है। यह प्रदर्शन भुंडा महायज्ञ का अहम हिस्सा है। यह यज्ञ रामायण महाभारत काल मे नरमेघ का स्वरूप माना जाता था। बेड़ा के नियम कठोर बेड़ा एक विशेष जाति के लोग होते हैं। वहीं इस दैवीय कार्य करते हैं। इसके लिए चुने गए व्यक्ति को कई कठोर नियमों का पालन करता पड़ता हैं।
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