Khushwant Singh Litfest 2nd Day: खुशवंत सिंह लिटफेस्ट के दूसरे दिन की शुरुआत पंडित नवीन गंधर्व के मधुर प्रदर्शन “द सिंगिंग स्ट्रिंग्स ऑफ द बेलबहार” से हुई, दुसरे दिन के सत्र में भारत-चीन संबंध, वन्यजीव संरक्षण और ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर जैसे मुद्दों पर सहित्यकारों और मशहूर हस्तियों ने अपने विचार रखे और चर्चा की।
एमके रंजीत सिंह और गार्गी रावत के साथ “वाइल्ड वर्ल्ड” पर पहला सत्र हुआ। जहां पूर्व आईएएस अधिकारी रणजीत सिंह ने 70 साल बाद चीतों को भारत वापस लाने में मदद की, वहीं रावत ने पर्यावरण रिपोर्टिंग में महत्वपूर्ण योगदान दिया। सारा जैकब के साथ उनकी बातचीत ने सभी का ध्यान सत्र पर केंद्रित किया। अन्य सत्रों में विशेषज्ञों ने भारत के आंतरिक और बाहरी संघर्षों पर भी चर्चा की।
भारत-चीन संबंधों की पुनर्स्थापना की आवश्यकता
‘भारत की चीन चुनौती’ विषय पर चर्चा में कांति बजपेयी, आनंद कृष्णन और एलेक्स ट्रावेल्ली ने सुहासिनी हैदर के साथ विचार साझा किए। भारत-चीन संबंधों पर एक शानदार सत्र में यह बात स्पष्ट की गई कि भारत को चीन के साथ कूटनीतिक संबंधों को सुधारने का समय आ गया है और एक नए मित्रता और विकास का अध्याय लिखना चाहिए। सत्र में यह आम सहमति थी कि भारत को चीन के साथ एक नया रिश्ता विकसित करना चाहिए, जो दोनों पक्षों पर नवीकरण और स्थायित्व का संयोजन हो। यह भी माना गया कि दोनों पक्षों से कुछ गलतियाँ हुई हैं, लेकिन अब समय है कि हम अतीत को छोड़कर वर्तमान गतिरोध से कुछ नया सीखें।
संघर्ष के समय में लोकतंत्र
“संघर्ष के समय में लोकतंत्र” विषय पर प्रसिद्ध विदुषी राधा कुमार ने व्याख्यान दिया। उन्होंने स्वतंत्रता के दौर से लेकर वर्तमान समय तक राष्ट्रीयता के विकास की चर्चा की। डॉ. कुमार ने अतीत और वर्तमान की राष्ट्रीयता के बीच स्पष्ट तुलना की। उन्होंने विभाजनकारी बयानबाजी और समकालीन भारत में लोकतांत्रिक मूल्यों के क्षय पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने “बुलडोज़र न्याय,” भीड़ द्वारा हत्या, और जेल से बाहर बलात्कारी व्यक्तियों की महिमा पर चर्चा की।
डॉ. कुमार ने भारत के लोकतांत्रिक स्तंभों की कार्यप्रणाली पर भी चिंता व्यक्त की और उनके पुनर्जीवित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने मीडिया के प्रभाव पर भी प्रकाश डाला, जो झूठी जानकारी और प्रचार के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। डॉ. कुमार ने चुनावी प्रणाली में प्रस्तावित परिवर्तनों और विविधता वाले देश भारत में एक राष्ट्रीय भाषा की विचारधारा पर भी चिंता व्यक्त की। उनका व्याख्यान भारतीय लोकतंत्र के सामने चुनौतियों और संकट के समय में उसके मूल्यों की रक्षा करने की आवश्यकता को उजागर करता है।
महिलाओं की आवाज़
“शब्दों को प्रयोग करने वाली महिलाएँ” (Women Who Wield the Words) विषय पर सत्र में प्रसिद्ध कवयित्री अरुंधति सुब्रमण्यम और रक्षंदा जलिल ने साहित्य, आध्यात्मिकता और पहचान में महिलाओं की आवाज़ों की खोज की। अरुंधति सुब्रमण्यम ने 14वीं शताब्दी की दलित कवियित्री सोयराबाई के एक उद्धरण से सत्र की शुरुआत की: “यदि मासिक धर्म का रक्त मुझे अशुद्ध बनाता है, तो बताओ, कौन है जो इस रक्त से पैदा नहीं हुआ?” इसने साहित्य, आध्यात्मिकता और समाज में महिलाओं की भूमिका पर एक विचारोत्तेजक चर्चा की।
सुब्रमण्यम, जो संस्कृति और आध्यात्मिकता पर अपने लेखन के लिए जानी जाती हैं, ने अपनी नवीनतम पुस्तक ‘वाइल्ड विमेन’ के बारे में चर्चा की। यह पुस्तक विभिन्न जीवन के चरणों में महिलाओं के चित्रण का अन्वेषण करती है—”बौद्धों” और “भक्तों” से लेकर “ननों” और “तांत्रिकों” तक। इस सत्र ने न केवल महिलाओं की शक्ति को उजागर किया, बल्कि साहित्य में उनके महत्वपूर्ण योगदान को भी रेखांकित किया।
मीडिया ट्रायल जाँच को करती है प्रभावित, जाँच अधिकारीयों पर रहता है दबाव
खुशवंत सिंह लिटफेस्ट के “Bad Girls Go Everywhere” सत्र में महाराष्ट्र कैडर में पहली महिला आईपीएस मीरां चड्ढा ने संवाद किया। इस सत्र में उनके साथ नुसरत जाफरी और डॉ. कल्पना शंकर भी उपस्थित थीं, जबकि वार्ताकार के रूप में सारा जैकब शामिल रहीं। यह सत्र विभिन्न क्षेत्रों में बाधाओं को तोड़ने वाली महिलाओं की प्रेरणादायक यात्राओं पर केंद्रित था।
मीरां चड्ढा ने अपनी किताब ‘मैडम कमिश्नर’ के कई महत्वपूर्ण हिस्सों पर चर्चा की। उन्होंने बच्चियों से आपराधिक मामलों, और उन पर राजनितिक प्रभाव,और न्याय प्रक्रिया पर भी अपने विचार रखे। उन्होंने इस बात पर भी विचार रखे कि मामलों में कार्रवाईयां तो होती है लेकिन न्याय प्रक्रिया में लंबा ट्रायल इसे प्रभावित करता है। उन्होने उधारण देते हुए कहा कि कुछ मामले ऐसे होते हैं जिसमे 10 साल से अधिक समय में ट्रायल पूरा होता है। उन्होंने आगे कहा कि “21वीं सदी में न्यायिक प्रणाली को मजबूत करने की आवश्यकता है।
महिलाओं से जुड़े आपराधिक मामलों में मीडिया ट्रायल पर मीरां चड्ढा ने कहा को कुछ भी लिखने से पहले अच्छी तरह सोच विचार करना चाहिए। ऐसे मामलों में मीडिया ट्रायल से जांच प्रभावित होती है, और इन मामलों में जाँच अधिकारी जो कि सब इंस्पेक्टर और इंस्पेक्टर सत्र के होते है पर भारी दबाब रहता है जिससे जांच प्रभावित होकर कई बार दिशाहीन हो जाती है।
मीरां चड्ढा ने पूर्व मंत्री बाबा सिद्दीकी की हत्या पर भी विचार साझा करते हुए कहा कि इस घटना ने उन्हें उस समय की याद दिला दी, जब अपराध सिंडिकेट महानगर में लोगों को आतंकित करता था। उन्होंने बताया कि इस विषय पर उनका लेख प्रकाशित हुआ था, जिसके बाद उन्हें धमकी भरे फोन आए। हालांकि, उन्होंने यह स्पष्ट किया कि “मैं सच्चाई लिखने से डरने वाली नहीं हूं।”।
इस सत्र ने न केवल महिलाओं की संघर्ष की कहानियों को उजागर किया, बल्कि समाज में बदलाव लाने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया। सत्र के बाद उन्होंने कहा, “द लॉरेंस बिश्नोई जैसे लोगों का कोई भविष्य नहीं है। युवाओं को इनसे प्रभावित नहीं होना चाहिए। केवल री तिलक लगाने से कुछ नहीं होता; इसे अपने जीवन में उतारना भी पड़ता है।”
राजनीति हमारे जीवन को प्रभावित करती है: नुसरत जाफरी
सत्र के बाद सिनेमाटोग्राफर से लेखक बनीं नुसरत जाफरी ने बातचीत में कहा कि कहा कि राजनीति कैसे हमारे जीवन को प्रभावित करती है, इसका स्पष्ट उदाहरण बाबरी विवाद के दौरान देखने को मिला। उस समय हमें यह महसूस होने लगा कि मैं मुस्लिम हूं और वह हिंदू। नुसरत ने इस दौर की घटनाओं को अपनी किताब ‘दिस लैंड वी काल होम’ (This Land We Call Home) में बखूबी लिखा है।
उन्होंने कहा कि उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि वे अपने परिवार की यादों को सहेजकर रख सकें, खासकर अपनी मां के अनुभवों को। नुसरत ने कहा कि उनके लेखन में शोध और अनुभव का मिश्रण है। उन्होंने गंगा-जमुनी तहजीब पर भी चर्चा की और बताया कि यह संस्कृति आज भी जीवित है। नुसरत ने भारत की धार्मिक विविधता पर भी बात की। उन्होंने कहा कि धर्म अब राजनीतिक पहचान बन गया है, लेकिन हमें अपनी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखना चाहिए। वे आशावादी हैं कि समाज में प्यार और एकता की भावना फिर से जगाया जा सकता है जिसके लिए हम सभी को प्रयासरत्त है।
60 के दशक में विलेन के डायलाग भी शालीन होते थे: इम्तियाज अली
सत्र के अंत में बॉलीवुड स्टार्री सेवेंटीज’(Bollywood Starry Seventies) सत्र में फिल्म निर्देशक इम्तियाज अली, निरुपमा कोटरू और सथ्या सरन पैनल में शामिल हुए, जबकि वार्ताकार के रूप में लेखक बालाजी विट्ठल ने सत्र का संचालन किया। इम्तियाज अली ने कहा कि 60 के दशक में विलेन के डायलाग भी काफी शालीन होते थे। इस लिटफेस्ट में पंजाबी गायक काका भी श्रोता के रूप में उपस्थित रहे।
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