Himachal News: हिमाचल प्रदेश में शादी-विवाहों, सामाजिक और धार्मिक आयोजनों में परंपरागत रूप से गांवों में टोर के पत्तों से बनी पत्तलों, डोनों और खावों का उपयोग किया जाता था। लेकिन आजकल इन आयोजनों में रेडीमेड डिस्पोजल थालियां, डोने और गिलास आसानी से बाजार में मिल रहे हैं, जिससे हाथ से बनी पत्तलों का रिवाज कम होता जा रहा है। टोर के पत्तलों में खाना खाने का आनंद और स्वाद अलग होता है, और ये औषधीय गुणों से भी भरपूर होते हैं। जबकि डिस्पोजल का उपयोग सेहत के लिए हानिकारक है और प्रदूषण बढ़ाता है, टोर के पत्तले खाना खाने के बाद पशुओं के चारे के काम आते हैं और खाद के रूप में भी प्रयोग होते हैं, जिससे प्रदूषण नहीं फैलता।
जब डिस्पोजल का चलन नहीं था, तब टोर के पत्तलों का ही इस्तेमाल किया जाता था। प्रदेश के निचले गर्म जिलों में टोर की बेलें प्रचुर मात्रा में पाई जाती हैं। बेल से निकलने वाले हरे पत्तों से टोर के पत्ते बनाए जाते हैं। पहले छोटे से छोटे आयोजनों में भी टोर की पत्तलों का प्रयोग होता था। आवश्यकता अनुसार ग्रामीण महिलाएं खाली समय में 20-20 पत्तों की बीड़ी बनाकर बेचकर घर का गुजारा करती थीं। लेकिन डिस्पोजल बाजार में आने के बाद टोर की पत्तलों का रिवाज काफी कम हो गया है।
जिला शिमला में टोर के पत्तलों की परंपरा को पुनर्जीवित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। जिला ग्रामीण विकास प्राधिकरण के अधीन राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत सुन्नी खंड में कार्य कर रहे सक्षम क्लस्टर लेवल फेडरेशन बसंतपुर इस परंपरा को पुनर्जीवित करने में सक्रिय है। इस संगठन ने शिमला उपायुक्त अनुपम कश्यप के सहयोग से टोर के पत्तलों की परंपरा को पुनर्जीवित करने का बीड़ा उठाया और शिमला जिले के सभी मंदिरों में पत्तलों पर लंगर परोसने की योजना बनाई। तारादेवी मंदिर में 14 जुलाई 2024 से इस परंपरा की शुरुआत की गई। इसके बाद संकट मोचन मंदिर में 1 सितंबर को हरी टोर की पत्तल में श्रद्धालुओं को लंगर परोसा गया। श्री हनुमान मंदिर जाखू में भी पत्तलों में लंगर परोसने की योजना बनाई गई है।
सक्षम क्लस्टर लेवल फेडरेशन बसंतपुर के प्रतिनिधियों ने बताया कि फेडरेशन द्वारा तारादेवी मंदिर को हर सप्ताह शुक्रवार को 4000 पत्तल दिए जा रहे हैं और अब तक 18 हजार पत्तल प्रदान किए जा चुके हैं। संकट मोचन मंदिर में भी हर सप्ताह 4000 पत्तल दिए जाएंगे, जो महिलाओं की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने में सहायक होंगे। इस पहल से पत्तलों की मांग काफी बढ़ गई है, और आसपास के क्षेत्रों में विवाह और अन्य समारोहों के लिए भी ऑर्डर मिलने लगे हैं। नवरात्र, श्राद्ध और अन्य शुभ आयोजनों के लिए भी एडवांस ऑर्डर प्राप्त हो रहे हैं, जिससे ग्रामीण महिलाओं को स्वरोजगार के अवसर मिलेंगे और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होगा।
बसंतपुर में एक संगठन है, जिसमें 2942 महिलाएं पत्तल बनाने का कार्य करती हैं। उन्हें आकार, फिनिशिंग और गुणवत्ता को लेकर प्रशिक्षण दिया जाता है। संगठन के तहत कई उत्पाद तैयार किए जाते हैं, जैसे कोहलू से तेल निकालना, देसी घी तैयार करना, आटा चक्की चलाना, पशु चारा और अचार बनाना और उनकी पैकेजिंग व लेबलिंग भी की जाती है। इन उत्पादों की बिक्री प्रमुख मेलों, हिम ईरा शॉप और ऑनलाइन माध्यम से की जाती है।
पत्तलों की परंपरा को पुनर्जीवित करने से जरुरतमंद महिलाओं को मिलेगा स्वरोजगार
जिला मंडी में भी टोर के पत्तलों की परंपरा को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। गांधी चौक चौहट्टा बाजार के सामने पीपल पेड़ के नीचे ताजा पत्तल, डोने और खावों को बेचने वाले स्थानीय लोग इस परंपरा को जारी रखे हुए हैं। राजू, बलदेव, तीलक राज और मान सिंह जैसे परिवार इस रोजगार पर निर्भर हैं। आधुनिकता की दौड़ में बाजार में रेडीमेड डिस्पोजल मिलने से उनका रोजगार कम हो गया है और परिवार का गुजारा मुश्किल हो गया है।
राजू का कहना है कि वे अपनी संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखने के लिए प्रयासरत हैं। प्रशासन और संबंधित विभाग से आग्रह है कि मण्डी जिला के मंदिरों में भी टोर के पत्तलों में लंगर परोसने की परंपरा को पुनर्जीवित किया जाए। इससे न केवल प्रदूषण कम होगा, बल्कि ग्रामीण महिलाओं को रोजगार के अवसर मिलेंगे और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। शिमला में किए जा रहे प्रयास से हमें एक नई उम्मीद की किरण दिख रही है, और हम उम्मीद करते हैं कि प्रशासन और संबंधित विभाग इस दिशा में सहयोग प्रदान करेंगे।
-प्रताप अरनोट-
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