प्रजासत्ता |
Himachal Political Crisis : हिमाचल में चल रहे सियासी संकट के बीच कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और नेता राहुल गांधी की विदेश दौरे से वापसी हो गई है। भारत पहुंचने पर उनकी नज़र हिमाचल में हुए सियासी हंगामे पर रहेगी। क्योंकि उत्तर भारत के एक मात्र राज्य हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की पूर्ण बहुमत की सरकार है। ऐसे में उनकी सबसे बड़ी चुनौती सरकार को बचाने की है।
सबसे बड़ा सवाल यही है कि, क्या राहुल गांधी हिमाचल सरकार में खुलकर सामने आए इस गतिरोध के बीच हिमाचल की सरकार को बचा पाएंगे…? अगर वह सरकार को बचा पाते हैं तो ये उनके लिए बहुत बड़ी बात है। क्योंकि हिमाचल का सियासी संकट राहुल गांधी के राजनीतिक कौशल ( Rahul Gandhi’s Political Skills ) की बड़ी परीक्षा है। बीते कुछ महीनों से जो हिमाचल में चल रहा है भाजपा ने उसी सियासी संकट का लाभ उठा कर बहुमत न होने के बाबजूद राज्यसभा चुनाव में जीत दर्ज की।
उसके बाद से हिमाचल में जो सियासी संकट चल रहा है, कांग्रेस सरकार अभी तक उससे बाहर निकल पाने में पूरी तरह से सफल नहीं हुई है। कांग्रेस ने अपने बागी हुए 6 विधायकों को निष्कासित कर जो रणनीति सरकार को बचाने के लिए चली है। वह अभी तक पूरी तरह से सफल नहीं हुई है। अभी भी लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित सिंह और उसके परिवार की तरफ से जो उठक बैठक चल रही है। उसको देखते हुए सियासी जानकारों के अनुसार उनका पार्टी को छोड़कर जाना तय माना जा रहा है।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यदि पूर्व सीएम और हिमाचल के छः बार के सीएम स्वर्गीय राजा वीरभद्र सिंह का परिवार राजनीतिक पार्टी में बदलाव करता है तो उनके खास चुने हुए विधायक जो अभी सुक्खू सरकार में हैं वह अपने पद और प्रतिष्ठा छोड़ वीरभद्र सिंह के साथ ही रहेंगे। जानकारों का मानना है कि इन नेताओं का वीरभद्र सिंह परिवार के बिना अपनी विधानसभा में इनका कोई अस्तिव नही है। ऐसे में वह ऐसी भूल नही करेंगे जिससे भविष्य उनको चुनाव लडने में समस्याओं का सामना न करना पड़े। अगर ऐसा होता है तो कांग्रेस के कम से कम 10 विधायक सीएम सुक्खू के खिलाफ हो जाएंगे।
अगर ऐसा होता है तो कांग्रेस की सरकार अल्पमत में आ जाएगी, हालांकि कांग्रेस इससे बचने के लिए 6 बागी विधायकों की ताज पर अन्य पर भी एंटी डिफेक्शन लॉ के तहत कार्रवाई कर सकती है। ऐसे में कुछ समय के लिए कांग्रेस की सरकार बची रहेगी। लेकिन अगर बागी विधायक पार्टी की विधायकी छोड़ देतें है तो हो सकता है लोकसभा चुनाव के साथ इन 10 सीटों पर उपचुनाव हो जाए। इसके अलावा बागी विधायकों को एंटी डिफेक्शन लॉ के तहत कार्रवाई से बचने के लिए पार्टी के चुने हुए विधायकों में से दो तिहाई विधायकों का समर्थन जरुरी है। ऐसा जानकारों का मानना है।
अब देखने वाली बात यह रहेगी इन सबके बीच कांग्रेस का हाईकमान और नेता राहुल गाँधी किस तरह से इस विवाद को संभाल पाते हैं या फिर भाजपा द्वारा बुने गए इस सियासी तानेबाने में कांग्रेस उलझ कर रह जाती है। हालांकि सरकार और बागियों में जुबानी जंग अभी भी जोरों पर है। कोई सियासी काले नाग की संज्ञा दे रहा है, तो कोई किसी को गद्दार कह रहा है। कोई किसी को ओच्छ्यो यानि ओवर स्मार्ट बता रहा है विवाद बड़ा है तो जुबानी हमले भी बड़े देखने को मिलेंगे।
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