प्रजासत्ता|
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को राइट टू रिजेक्ट के मुद्दे पर दायर हुई याचिका के बाद केंद्र सरकार और इलेक्शन कमीशन (EC) को नोटिस जारी किया है| सुप्रीम कोर्ट ने ‘राइट टू रिजेक्ट’ पर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग से जवाब मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी नेता और अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई करते हुए ये नोटिस जारी किया। अश्विनी कुमार उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा है कि यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र में ‘नोटा’ के पक्ष में अधिक वोट पड़े हैं, तो चुनाव आयोग को चुनाव परिणाम रद्द करने और नये चुनाव कराने के लिए निर्देशित किया जाएं।
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यन की बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए ने कानून मंत्रालय और चुनाव आयोग को ये नोटिस जारी किया। बीजेपी नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय याचिका के जरिये कोर्ट से यह भी अनुरोध किया गया है कि जिस निर्वाचन क्षेत्र में ‘नोटा’ के पक्ष में सबसे अधिक वोट पड़े हैं। उस चुनाव में खड़े हुए उम्मीदवारों को दोबारा कराये जा रहे चुनाव में खड़ा होने पर रोक लगायी जाए।
मुख्य न्यायाधीश एस.ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक प्रश्न प्रस्तुत किया कि यदि किसी प्रभावशाली राजनीतिक दल के कई उम्मीदवारों को ‘अस्वीकृत’ कर दिया जाता है तो इतने सारे रिक्तियों की पृष्ठभूमि में संसद के लिए कार्य करना मुश्किल होगा। पीठ ने कहा कि ‘यह एक संवैधानिक समस्या है।’ साथ पीठ ने अपना प्रश्न दोहराया कि ‘यदि आपका तर्क स्वीकार किया जाता है, और सभी उम्मीदवार खारिज कर दिए जाते हैं और संबंधित निर्वाचन क्षेत्र में कोई प्रतिनिधि नहीं रहते हैं, तो कैसे एक वैध संसद का गठन किया जाएगा?’ पीठ ने कहा कि इन सुझावों को स्वीकार किया जाना मुश्किल है, हालांकि यह याचिका के सार को पूरी तरह से समझता है।
वहीं याचिका में तर्क दिया गया कि अस्वीकार करने का अधिकार भ्रष्टाचार, अपराधीकरण, जातिवाद सांप्रदायिकता, क्षेत्रवाद आदि पर शिकंजा कसेगा, जो लोकतंत्र के लिए खतरा हैं। साथ ही, राजनीतिक दल ईमानदार उम्मीदवारों को टिकट देने के लिए मजबूर होंगे। याचिका में कहा गया है कि अस्वीकार करने और नए उम्मीदवार को निर्वाचित करने का अधिकार लोगों को सशक्त बनाएगा और लोकतंत्र में उनकी भागीदारी बढ़ाएगा क्योंकि वे प्रतिशोध के भय के बिना कम गुणवत्ता वाले उम्मीदवारों को लेकर अपना असंतोष दर्ज कर सकते हैं।
साथ ही याचिका में कहा गया है कि ‘यह अंतत: चुनाव प्रक्रिया की पवित्रता को बढ़ावा देगा ताकि पार्टियों को बेहतर उम्मीदवारों को क्षेत्र में मजबूर किया जा सके और इस तरह अपराधीकरण को नियंत्रित किया जा सके।’ उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि वह निर्वाचन आयोग को यह निर्देश जारी करे कि अगर किसी विशेष निर्वाचन क्षेत्र में नोटा के पक्ष में अधिकतम वोट पड़े हैं तो आयोग चुनाव परिणाम को रद्द करने और नए चुनाव कराने के लिए अनुच्छेद 324 के तहत प्रदत्त अपनी पूर्ण शक्ति का उपयोग करे।
नोटा का मतलब क्या
बता दें कि नोटा का मतलब None Of The Above होता है| जब चुनाव में वोटर को कोई भी कैंडिडेट पसंद ना हो तो वह किसी भी उम्मीदवार को वोट दिए बिना वोटिंग कर सकता है| यानी NOTA को वोट दे सकता है| जिससे उसको अपने नापंसद उम्मीदवार को भी नहीं चुनना पड़ता है और वह अपने मताधिकार का इस्तेमाल भी कर पाता है|
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