प्रजासत्ता नेशनल डेस्क |
Supreme Court On Electoral Bonds :चुनावी बॉन्ड योजना (Electoral Bonds) की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बृहस्पतिवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपना फैसला सुनाया है। चुनावी बॉन्ड योजना को सुप्रीम कोर्ट द्वारा चुनावी साल में अंसवैधानिक करार देना, केंद्र सरकार को बड़ा झटका है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि काले धन पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से सूचना के अधिकार का उल्लंघन उचित नहीं है। चुनावी बांड योजना सूचना के अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन है। राजनीतिक दलों के द्वारा फंडिंग की जानकारी उजागर न करना उद्देश्य के विपरीत है।
केंद्र सरकार की चुनावी बॉन्ड योजना की कानूनी वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ का कहना है कि दो अलग-अलग फैसले हैं – एक उनके द्वारा लिखा गया और दूसरा न्यायमूर्ति संजीव खन्ना द्वारा और दोनों फैसले सर्वसम्मत हैं।
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि चुनावी बांड के माध्यम से कॉर्पोरेट योगदानकर्ताओं के बारे में जानकारी का खुलासा किया जाना चाहिए क्योंकि कंपनियों द्वारा दान पूरी तरह से बदले के उद्देश्य से है।
मामले पर फैसला सुनाते हुए सीजेआई ने कहा, “काले धन को रोकने के लिए इलेक्ट्रोल बॉन्ड के अलावा भी दूसरे तरीके हैं. हमारी राय है कि कम से कम प्रतिबंधात्मक साधनों से परीक्षण संतुष्ट नहीं होता। उस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए चुनावी बॉन्ड के अलावा अन्य साधन भी हैं।
इलेक्ट्रॉनिक हस्तांतरण और चुनावी ट्रस्ट के अन्य माध्यमों से योगदान अन्य प्रतिबंधात्मक साधन हैं। इस प्रकार काले धन पर अंकुश लगाना चुनावी बांड का आधार नहीं है। काले धन पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से सूचना के अधिकार का उल्लंघन करना उचित नहीं है। संविधान इस मामले में आंखे बंद कर के नहीं रख सकता, केवल इस आधार पर की इसका गलत उपयोग हो सकता है। ”
सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड योजना को अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन और असंवैधानिक माना है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड योजना को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द करना होगा।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने यह फैसला सुनाया। इस पीठ में जस्टिस संजीव खन्ना, बीआर गवई, जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा भी शामिल हैं।
चीफ जस्टिस ने कहा कि राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले फंड के बारे में मतदाताओं को जानने का अधिकार है। राजनीतिक दलों को फंडिंग के बारे में जानकारी होने से लोगों के लिए अपना मताधिकार इस्तेमाल करने में स्पष्टता मिलती है।
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