Supreme Court Verdict: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि बिल्डर्स और व्यवसायी दिवालिया कार्यवाही (इनसॉल्वेंसी प्रोसीडिंग्स) के बहाने उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन पर लगाए गए जुर्माने से बच नहीं सकते। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसी अनुमति देने से उपभोक्ताओं का विश्वास कमजोर होगा और घर खरीदारों की पहले से ही नाजुक स्थिति और खराब हो जाएगी, जो पहले ही घरों के कब्जे में देरी और अनुबंध उल्लंघन से परेशान हैं।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस पीबी वराले की पीठ ने जोर देकर कहा कि उपभोक्ता अदालतों द्वारा लगाए गए जुर्माने एक नियामक कार्य करते हैं और इन्हें इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (आईबीसी) के तहत “कर्ज” (डेट) नहीं माना जा सकता। पीठ ने कहा कि दिवालिया कार्यवाही के बहाने नियामक जुर्माने पर रोक लगाने से उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (सीपीए) का उद्देश्य ही समाप्त हो जाएगा और गलत तरीके से काम करने वाले बिल्डर्स को दिवालिया कार्यवाही के जरिए जिम्मेदारी से बचने का रास्ता मिल जाएगा।
पीठ ने कहा, “घर खरीदार, जिनमें से कई अपने जीवनभर की कमाई आवासीय इकाइयों में निवेश करते हैं, पहले ही कब्जे में देरी और अनुबंध उल्लंघन के कारण नाजुक स्थिति में हैं। ऐसी अनुचित प्रथाओं के खिलाफ निवारक के रूप में काम करने वाले जुर्माने पर रोक लगाने से उपभोक्ता संरक्षण तंत्र अप्रभावी हो जाएगा और नियामक ढांचे में विश्वास कमजोर होगा।”
