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कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas): आज करगिल वॉर को पूरे 24 साल पूरे हो गए हैं। आज के ही दिन 26 जुलाई 1999 को कारगिल की पहाड़ियों में घुसपैठ कर चुके 5000 पाकिस्तानी सैनिकों को मार भगाया था। इस युद्ध के दौरान 550 भारतीय सैनिकों ने अपने जीवन का बलिदान दिया और 1400 के करीब घायल हुए थे।
वैसे तो पाक ने कारगिल युद्ध की शुरुआत 3 मई 1999 को ही कर दी थी, जब उसने ऊंची पहाड़ियों पर 5,000 सैनिकों के साथ घुसपैठ कर कब्जा जमा लिया था। इस बात की जानकारी जब भारत सरकार को मिली तो सेना ने पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ने के लिए ‘ऑपरेशन विजय’ चलाया। इस मौके पर पूरा देश शहीदों को श्रद्धांजलि दे रहा है और भारतीय सेना के शौर्य और पराक्रम को नमन कर रहा है।
आपको बता दें कि साल 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध लड़ा गया था। पाकिस्तानी सेना ने नियंत्रण रेखा को पार कर भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की थी तथा रणनीतिक तौर पर अहम चौटियों पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद भारत ने ‘ऑपरेशन विजय’ चला कर उन्हें खदेड़ दिया था। इसकी शुरुआत हुई थी। 8 मई 1999 से जब पाकिस्तानी फौजियों और कश्मीरी आतंकियों को कारगिल की चोटी पर देखा गया था। पाकिस्तान इस ऑपरेशन की 1998 से तैयारी कर रहा था। एक बड़े खुलासे के तहत पाकिस्तान का दावा झूठा साबित हुआ कि करगिल लड़ाई में सिर्फ मुजाहिद्दीन शामिल थे। बल्कि सच ये है कि यह लड़ाई पाकिस्तान के नियमित सैनिकों ने भी लड़ी। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के पूर्व अधिकारी शाहिद अजीज ने यह राज उजागर किया था।
26 जुलाई 1999 को जब भारतीय सेना के आगे पाकिस्तान ने घुटने टेक दिए थे। सीमा पर युद्ध की शुरुआत करने वाले पाकिस्तान के पास भारत के सामने हथियार डालने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था। भारतीय जवानों के साहस, वीरता और जज्बे के सामने आतंक के पनाहगाह पाकित्सानी सेना हार मान चुकी थी। करीब दो महीने तक चलने वाले इस युद्ध में भारत को मिली। साथ ही दुनिया ने भारत की ताकत का सबूत भी देखा। जब भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को बुरी तरह से खदेड़ना शुरू कर दिया तब जीतने के लिए जनरल मुशर्रफ परमाणु हथियार का इस्तेमाल करना चाहते थे, लेकिन सभी ओर से बने दबाव के कारण वह ऐसा नहीं कर सके। 26 जुलाई 1999 को भारतीय सेना ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को पूरी तरह से सीमा से खदेड़ने की घोषणा की और करगिल युद्ध खत्म हुआ। भारत ने विजय प्राप्त की।
पाकिस्तानी सेना के एलओसी के इस पार घुस आने के पता तब चला था जब सीमा के पास एक चरवाहे ने पाक के देखे। चरवाहे ने सेना को इसकी सूचना दी, जिसके बाद सबसे नजदीकी सेना की पोस्ट को इसकी जांच के लिए भेजा गया। 05 मई 1999 को कैप्टन सौरभ कालिया सहित छह जवान वहां पहुंचे, लेकिन उन्हें पाकिस्तानी सेना ने घेर लिया। इसके बाद सभी के क्षत-विक्षत शव भारतीय सेना को मिले। पाकिस्तानी सैनिकों ने बेरहमी से टॉर्चर देते हुए कैप्टन सौरभ को मार दिया था।
इस अमानवीय घटना के बाद करगिल का युद्ध शुरू हो गया। भारत के लिए इसे जीतना मुश्किल था, क्योंकि सीमा में लगभग सभी ऊपरी पोस्टों पर पाकिस्तानी सेना का कब्जा था। लेकिन भारतीय सेना ने झुकने और रुकने से इंकार कर दिया। उन्होंने पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देना शुरू किया। पाकिस्तानी सेना ने भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने से पहले वहां के वायुसेना कमांडर को इसकी सूचना नहीं दी थी। इस वजह से जब पाकिस्तान की थल सेना को मदद की जरूरत पड़ी तो वायुसेना ने साफ इंकार कर दिया।
करगिल वॉर के दौरान वायुसेना में ग्रुप कैप्टन के.नचिकेता इकलौते युद्धबंदी थे। पाकिस्तान सेना ने उन्हें उस वक्त पकड़ लिया था जब उनका MiG-27L मिसाइल के हमले में क्रैश हो गया था। कैप्टन नचिकेता समय रहते विमान से इजेक्ट हो गए थे, लेकिन नीचे आने के कुछ देर बाद ही वह पाक सेना के पकड़ में आ गए।
रिपोर्ट्स की मानें तो इस घटना से पहले ही पाकिस्तान इससे भी बड़ा हमला करना चाहता था, जिसके लिए परवेज मुशर्रफ करीब 5000 सैनिकों का इस्तेमाल करना चाहते थे, लेकिन बनजीर भुट्टो ने इस पर आपत्ति जता दी थी। यह भी कहा जाता है कि जनरल मुशर्रफ ने करगिल युद्ध से पहले वहां के तत्कालीन प्रधानमंत्री शरीफ को भी इसकी जानकारी नहीं दी थी। उन्हें भी युद्ध शुरू होने के बाद इस बारे में पता चला।