Rajasthan News: राजस्थान की भजनलाल सरकार द्वारा नौ जिलों को रद्द करने के फैसले का कांग्रेस ने कड़ा विरोध किया है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सरकार के फैसले को अदूरदर्शी एवं राजनीतिक प्रतिशोध करार दिया। बता दें कि गहलोत शासन के दौरान ही इन जिलों के गठन का निर्णय किया गया था, लेकिन भजनलाल की सरकार ने शनिवार को पूर्व सरकार के फैसले के खिलाफ नौ जिलों को रद्द करने का ऐलान किया है।
न्यूज़ एजेंसी एएनआई से बात करते हुए पूर्व सीएम और कांग्रेस के आला नेता अशोक गहलोत ने कहा कि “राजस्थान कैबिनेट बैठक में नवगठित जिलों में से 9 जिले और 3 संभाग खत्म करने के निर्णय पर राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने कहा, “प्रदेश सरकार ने ये निर्णय लेने में 1 साल का समय लगा दिया। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस काम को लेकर उनके मन में कितना कंफ्यूज़न रहा… राजस्थान देश का सबसे बड़ा प्रदेश है…
अशोक गहलोत ने आगे कहा कि “अगर तीन संभाग बनाए गए थे तो कुछ सोच-समझकर बनाए गए… इससे परिवेदनाओं का निपटारा जल्दी होता क्योंकि छोटे जिले होने पर प्रशासनिक अधिकारियों को काम का निपटारा जल्द करना पड़ता है… तमाम तरह से छोटे जिले ही जनता के लिए लाभदायक है। गुजरात आबादी के मामले में हमसे(राजस्थान) कम आबादी वाला प्रदेश है लेकिन फिर भी वहां 33 जिले हैं… मैं नहीं जानता कि यह फैसला क्या सोच-समझकर लिया गया है लेकिन हमने सुशासन के लिए यह फैसला लिया था, ये मैं कह सकता हूं…”
इससे पहले अशोक गहलोत ने सोशल साइट एक्स पर ट्वीट कर कहा कि” हमारी सरकार द्वारा बनाए गए नए जिलों में से 9 जिलों को निरस्त करने का भाजपा सरकार का निर्णय अविवेकशीलता एवं केवल राजनीतिक प्रतिशोध का उदाहरण है। हमारी सरकार के दौरान जिलों का पुनर्गठन करने के लिए वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी रामलुभाया की अध्यक्षता में 21 मार्च 2022 को समिति बनाई गई थी जिसको दर्जनों जिलों के प्रतिवेदन प्राप्त हुए। इन्हीं प्रतिवेदनों का परीक्षण कर समिति ने अपनी रिपोर्ट दी जिसके आधार पर नए जिले बनाने का निर्णय किया गया। मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़ के अलग होने के बाद राजस्थान देश का सबसे बड़ा राज्य बन गया परन्तु प्रशासनिक इकाइयों का पुनर्गठन उस अनुपात में नहीं हुआ था।
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हमारी सरकार द्वारा बनाए गए नए जिलों में से 9 जिलों को निरस्त करने का भाजपा सरकार का निर्णय अविवेकशीलता एवं केवल राजनीतिक प्रतिशोध का उदाहरण है।
हमारी सरकार के दौरान जिलों का पुनर्गठन करने के लिए वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी रामलुभाया की अध्यक्षता में 21 मार्च 2022 को समिति बनाई गई…
— Ashok Gehlot (@ashokgehlot51) December 28, 2024
राजस्थान से छोटा होने के बाद भी मध्य प्रदेश में 53 जिले हैं। नए जिलों के गठन से पूर्व राजस्थान में हर जिले की औसत आबाादी 35.42 लाख व क्षेत्रफल 12,147 वर्ग किलोमीटर था (हालांकि त्रिपुरा राज्य का क्षेत्रफल 10,492 वर्ग किलोमीटर, गोवा राज्य का क्षेत्रफल 3,702 वर्ग किलोमीटर, दिल्ली केन्द्र शासित प्रदेश का क्षेत्रफल 1,484 वर्ग किलोमीटर है) जबकि नए जिले बनने के बाद जिलों की औसत आबादी 15.35 लाख व क्षेत्रफल 5268 वर्ग किलोमीटर हो गया था। जिले की आबादी व क्षेत्र कम होने से शासन-प्रशासन की पहुंच बेहतर होती है एवं सुविधाओं व योजनाओं की बेहतर डिलीवरी सुनिश्चित हो पाती है। छोटी प्रशासनिक इकाई होने पर जनता की प्रतिवेदनाओं का निस्तारण भी शीघ्रता से होता है। भाजपा सरकार द्वारा जिन जिलों को छोटा होने का तर्क देकर रद्द किया है वो भी अनुचित है। जिले का आकार वहां की भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर होता है।
हमारे पड़ोसी राज्यों के जिले जैसे गुजरात के डांग (2 लाख 29 हजार), पोरबंदर (5 लाख 85 हजार) एवं नर्बदा (5 लाख 91 हजार), हरियाणा के पंचकुला (5 लाख 59 हजार) एवं चरखी दादरी (लगभग 5 लाख 1 हजार), पंजाब के मलेरकोटला (लगभग 4 लाख 30 हजार), बरनाला(5 लाख 96 हजार) एवं फतेहगढ़ साहिब (6 लाख) जैसे कम आबादी वाले जिले हैं। कम आबादी वाले जिलों में सरकार की प्लानिंग की सफलता भी ज्यादा होती है। छोटे जिलों में कानून व्यवस्था की स्थिति को बहाल रखना भी आसान होता है क्योंकि वहां पुलिस की पहुंच अधिक होती है। परिस्थितियों के आधार पर जिलों की आबादी में भी अंतर होना स्वभाविक है जैसे उत्तर प्रदेश में प्रयागराज जिले की आबादी करीब 60 लाख है जबकि चित्रकूट जिले की आबादी 10 लाख है।
परन्तु सरकार के लिए प्रशासनिक दृष्टि से छोटे जिले ही बेहतर लगते हैं। सरकार की तरफ से एक तर्क यह दिया जा रहा है कि एक जिले में कम से कम 3 विधानसभा क्षेत्र होने चाहिए जबकि भाजपा द्वारा 2007 में बनाए गए प्रतापगढ़ मे परिसीमन के बावजूद भी केवल दो विधानसभा क्षेत्र हैं। सरकार द्वारा जहां कम दूरी का तर्क दिया जा रहा है वो भी आश्चर्यजनक है क्योंकि डीग की भरतपुर से दूरी केवल 38 किमी है जिसे रखा गया है परन्तु सांचौर से जालोर की दूरी 135 किमी एवंअनूपगढ़ से गंगानगर की दूरी 125 किमी होने के बावजूद उन जिलों को रद्द कर दिया गया। हमारी सरकार ने केवल जिलों की घोषणा ही नहीं की बल्कि वहां कलेक्टर, एसपी समेत तमाम जिला स्तरीय अधिकारियों की नियुक्ति दी एवं हर जिले को संसाधनों के लिए बजट भी दिया। हम भाजपा सरकार द्वारा उठाए गए इस अदूरदर्शी एवं राजनीतिक प्रतिशोध के कारण लिए गए निर्णय की निंदा करते हैं।”
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