Tripta Bhatia
दिल पर बड़ी चोट हूँ मैं….हाँ… एक फटा नॉट हूँ मैं…
फट्टा नोट हूँ मैं
सबने अपनी ज़िंदगी मे मुझे अलग से रखा है, जिनकी जेबें भरी हुई हैं। ऐसा नहीं है कि मेरी याद नहीं आती उनको, बस उंन्हे पता है मेरी कोई बुक्कत नहीं है। कई बार उनके मन में मुझे डस्टबिन में फैंकने का ख्याल आया, मुझे जेब से निकाला और वापिस रख दिया। एक अधूरा सा जज्बात का रिश्ता रहा होगा शायद फैंकने की हिम्मत ही नहीं हुई होगी। मुझे अलग थलग रख दिया गया सब नोटों से क्योंकि सारे रंगीन, कड़क से थे और मैं नाजुक सा, हाथ लगते ही डरा सा होता था मुझे की कहीं और टूट न जाऊं। जब कोई कुछ लेने जाता तो कुछ देर के लिए मुझे हरेभरे नोटों के बीच रख दिया जाता यह सोचकर कि शायद निकल जाऊं। पर पारखी नज़रें मुझे वहां से गाली देते हुए निकल देती और वापिस लेने वाला मुझे घुमा फिरा के फिर अलग से रख देता। कभी घर जा कर इधर उधर फैंक देते। मैंने वर्षों तक बटुये में अकेले साथ निभाया, चाह कर भी बहुत से लोग फैंक नहीं पाये। एक दिन किसी ने गुस्से में मुझे गिरा दिया और बहुत गरीब ने उठा लिया उसे बहुत खुशी हुई । उससे ज्यादा खुशी मुझे तब हुई जब उसने मैली सी जेब मे रखा और हर दस मिनट के बाद हाथ जेब पर जाता कि मैं हूँ या नहीं हूँ ।
उस वक़्त ध्यान आया छोटे लोग टूटे फटे हाल में भी रख लेते हैं! यह सोच कर मजबूरी में शायद चल जाये।
फटा सा नोट हूँ मैं, जो रखते न बनता है न फैंकते।