
वर्ष 1985 में प्रतिबन्ध लगने के बाद, सिरमौर जिले में चूनापत्थर के उत्खनन का व्यापार पुरे जोरो से चलने लगा। अत्यधिक उत्खनन के कारण इस जिले के जलाशयों का पानी प्रदूषित होने लगा, खेती की ज़मीन ख़राब होने लगी और जंगल कम होने लगे। किंकरी देवी, जो खुद अनपढ़ थी, वह इस जिले के आस पास उत्खनन के विरोध में आवाज़ उठाने और लोगो का प्रदुषण के प्रति जागरूक बनने के पीछे का मुख्य कारण बनी।उन्होंने अपनी लडाई की शुरुआत निम्न स्तर से की और 1987 में उन्होंने एक स्वयं सेवी संस्था ‘पीपल्स एक्शन फॉर पीपल इन नीड’ (People’s action for people in need) की मदद से शिमला के उच्च न्यायालय में एक पी.आई.एल दर्ज किया। यह मुकदमा वहाँ के 48 खदान के मालिको के खिलाफ था जो इस चुनापत्थर के उत्खनन के लिए ज़िम्मेदार थे। जब इस पी.आई.एल पर कोई कार्यवाई नहीं हुई तो किंकरी देवी खुद शिमला गयी और कोर्ट के आगे भूख हड़ताल पर बैठ गयी।
उच्चतम न्यायलय में इस केस को दुबारा खुलवाया गया किन्तु वहा भी किंकरी देवी के पक्ष में ही फैसला सुनाया गया। इसके बाद किंकरी देवी को एक प्रख्यात पर्यावरण रक्षक के रूप में पहचान मिली। 1995 में उन्हें बीजिंग के अन्तराष्ट्रीय महिला सम्मलेन में बुलाया गया जहाँ हिलेरी क्लिंटन ने उदघाटन का दीप, किंकरी देवी के हाथो से प्रज्वाल्लित करवाया । 1999 में उन्हें ‘झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई स्त्री शक्ति पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।
किंकरी देवी ने संगडाह गाँव में डिग्री कॉलेज खोलने के लिए भी आन्दोलन चलाया, जहा उन्होंने अपने जीवन के कई साल बिताये थे। 2006 में आखिरकार यहाँ एक कॉलेज खोल गया। 82 वर्ष की आयु में किंकरी देवी इस दुनिया से विदा हो गई लेकिन अपने पीछे एक स्वच्छ वातावरण की धरोहर छोड़ गईं।