Muscular Dystrophy Treatment in Himachal: सोलन जिला के कोठों स्थित इंटीग्रेटेड मस्कुलर डिस्ट्रॉफी रिहैबिलिटेशन सेंटर (IMDRC), मानव मंदिर में शुक्रवार को मस्कुलर डिस्ट्रॉफी एवं अन्य आनुवंशिक विकारों पर राष्ट्रीय स्तर की कार्यशाला का आयोजन किया गया। यह कार्यशाला इंडियन एसोसिएशन ऑफ मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (IAMD) द्वारा भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के सहयोग से आयोजित की गई।
कार्यशाला की अध्यक्षता कर रहीं आईएएमडी की अध्यक्ष संजना गोयल ने बताया कि इसका मुख्य उद्देश्य मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से पीड़ित बच्चों के लिए जीवनशैली, आहार, और पुनर्वास से जुड़ी आधुनिक रणनीतियों पर चर्चा करना था। उन्होंने बताया कि कार्यशाला में विशेष रूप से जीएनई मायोपैथी के उपचार में हो रही प्रगति, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के नए उपचार विकल्प, और दुर्लभ आनुवंशिक रोगों को लेकर सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों पर गहन विमर्श हुआ।
कार्यशाला में देशभर के प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थानों से विशेषज्ञ शामिल हुए। इसमें AIIMS दिल्ली, भोपाल, बिलासपुर, जोधपुर, PGIMER चंडीगढ़, SIR GANGA RAM HOSPITAL, CHG बैंगलुरु, CDFD हैदराबाद, GROW LAB, आशिका विश्वविद्यालय, स्वावलम्बन फाउंडेशन राजस्थान, और भरथ एमडी फाउंडेशन जैसे संस्थानों के डॉक्टरों ने शिरकत की।

भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा देशभर के विभिन्न राज्यों से ऐसे संस्थानों को चुना जा रहा है, जिन्हें “सेंटर ऑफ एक्सीलेंस” के रूप में मान्यता दी जा सके। यह पहल रेयर डिजीज पॉलिसी 2021 के अंतर्गत की जा रही है। अब तक देशभर में 13 सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बनाए जा चुके हैं, और यह संख्या लगातार बढ़ाई जा रही है। हर राज्य से अपेक्षा की गई है कि वे अपने यहां के किसी उपयुक्त संस्थान को नामांकित करें। राज्य का डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ सर्विसेज (DHS) इस नामांकन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाता है।
“मानव मंदिर”: मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (Muscular Dystrophy) रोगियों की उम्मीदों का केंद्र
उल्लेखनीय है कि हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले स्थित ‘मानव मंदिर‘ मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से जूझ रहे रोगियों के लिए एक “नई आशा की किरण” बनकर उभरा है। जहाँ हिमाचल प्रदेश ही नहीं बल्कि अन्य देश के अन्य राज्यों के अलावा विदेशों से भी मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से पीड़ित उपचार का लाभ लेने के लिए पहुँच रहे हैं। बता दन कि मस्कुलर डिस्ट्रॉफी एक ऐसी बीमारी है, जो व्यक्ति को धीरे-धीरे कमजोर बना देती है और उसका दैनिक जीवन कठिन हो जाता है। ऐसे रोगियों की देखभाल एक सेवा-भावना की मांग करती है, और सोलन का ‘मानव मंदिर’ इस भावना का सजीव उदाहरण है।
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