मेले का पहला सप्ताह देशी तथा दूसरा सप्ताह पहाड़ी संगत के नाम रहता है।
पट्टा मेहलोग।
Historic Joharji Mela: उत्तर भारत का प्रसिद्ध ऐतिहासिक जोहड़जी (मेहलोग) मेला इस वर्ष 2 अप्रैल से पूरी धार्मिक मान्यता और श्रद्धा के साथ आयोजित किया जाएगा। विकास खंड पट्टा मेहलोग के तहत बाड़ियाँ पंचायत के अधीन मेहलोग क्षेत्र में 2 सप्ताह तक लगने वाला यह मेला जिला सोलन का सबसे बड़ा मेला है।
श्री जोहड़ जी साहिब धार्मिक स्थल हिमाचल के अलावा उत्तर भारत के पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़,उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड व दिल्ली के लाखों श्रद्धालुओं की अगाध आस्था का प्रतीक है। हिंदू- सिख एकता के प्रतीक इस पावन स्थल को प्रथम गुरु श्री गुरु नानक देव की चरण छू प्राप्त है। गुरु नानक देव जी भाई बाला तथा मरदाना जी के साथ यहां कौड़ा राक्षस का उद्धार करने आए थे। श्रद्धालुओं व पर्यटकों का मन मोहने वाला यह स्थल सोलन जिले के महलोग क्षेत्र में स्थित है, जहां पर हर तीसरे वर्ष (एक वर्ष छोड़कर) दो सप्ताह तक चलने वाला मेला लगता है। यह जिले का सबसे बड़ा मेला है।
जोहड़ जी साहिब की प्रबंधक बीबा ऊँकार प्रीत कौर जी के अनुसार इस वर्ष यह मेला 20 चैत्र (2 अप्रैल को) से होना निश्चित किया गया है। मान्यता है कि श्रीगुरु गंगा दास जी, गुरु खड़क सिंह जी और गुरु जवाहर सिंह जी की शक्ति से यह पवित्र स्थान भरपूर है। मेले का पहला सप्ताह देशी तथा दूसरा सप्ताह पहाड़ी संगत के नाम रहता है।
2 से 5 अप्रैल तक इस मेले में पंजाब तथा हरियाणा के साथ-साथ अन्य राज्यों के श्रद्धालू माथा टेकेंगे। 6-7 अप्रैल को संगत हिंडूर नालागढ़, 8-9 अप्रैल को अर्की बाघल व 10 से 14 अप्रैल तक संगत महलोग, कुठाड़, पटियाला और बाकी सभी पहाड़ी इलाके के श्रद्धालु अपनी मन्नते लेकर बाबा जी के दरबार जोहड़जी पहुंचेंगे। वैशाखी के दूसरे दिन कौड़ा राक्षस जिसे स्थानीय लोग पडियार देवता के नाम से पूजते है की पूजा अर्चना के साथ संगत द्वारा माथा टेकने के उपरांत मेला हरिपुर साहिब में सम्पन्न होगा।
ऐसी मान्यता है कि 15वीं शताब्दी में इस स्थल पर एक बहुत बड़ा खूंखार कौड़ा नामक राक्षस रहता था, जिसने पूरे क्षेत्र में आतंक मचा रखा था। वह मनुष्यों को गर्म तेल के कड़ाहे में भूनकर खा जाता था। एक बार गुरु नानक देव जी के दो प्रिय शिष्य बाला और मरदाना इस क्षेत्र में विचरण कर रहे थे, तो एक शिष्य को राक्षस ने बंदी बना लिया। राक्षस मनुष्यों को भूनने से पहले कड़ाहे की परिक्रमा करवाता था। मरदाना ने परिक्रमा करते समय गुरु नानक देव जी का ध्यान किया, तो वे वहां प्रकट हो गए। इस पर राक्षस और भी खुश हुआ कि उसे दो-दो शिकार प्राप्त हुए हैं। राक्षस ने गुरु नानक देव जी को भी परिक्रमा करने को कहा।
इस पर गुरु जी ने कहा कि उन्हें परिक्रमा नहीं आती तथा वह स्वयं ऐसा करके बताए। राक्षस ने परिक्रमा करनी शुरू की, तो गुरु नानक देव जी ने जैसे ही उसे हाथ लगाया राक्षस गर्म तेल के कड़ाहे में गिर गया। अपना अंतिम समय निकट देखकर गुरु जी से प्रार्थना करने लगा कि उसकी मृत्यु के पश्चात उसे भी याद रखा जाए। इस प्रकार उस खूंखार राक्षस का अंत हो गया। इस महिमा को सुनकर बाबा कर्म चंद जो इससे पूर्व पपलोगी में रहते थे, वहां पहुंचे तथा यहां आकर बस गए और जिस स्थान पर राक्षस का उद्धार किया गया था, वहां पर बाबा जी ने अपना निशान साहिब स्थापित किया। जहां पर राक्षस का कड़ाहा था, वहां पर बाबा जी ने अपने बैठने का स्थान बनाया और जहां गुरु नानक देव जी ने राक्षस को मारने के बाद विश्राम किया था, वहां पर साधु-महात्माओं के ठहरने के लिए जगह बनाई। तभी से हर तीसरे वर्ष गुरु नानक देव जी की फतेह की याद में बहुत बड़ा मेला लगता है।
यह पवित्र स्थल समुद्र तल से 4800 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। कसौली तथा सुबाथू से यह स्थल 35 किमी., शिमला से 80 किमी., सोलन व चंडीगढ़ से बराबर 60 किमी. व बद्दी से 30 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां से शिमला, कसौली, सुबाथू व दूर हिमाचल की हिमाच्छादित पहाड़ियों व मौसम साफ होने चंडीगढ़ व ट्राइसिटी के दृश्य देखे जा सकते है। यहां पहुंचने के अब चार मार्ग हैं। एक मार्ग पट्टा से कासल, बडैहरी, होकर 9 किमी. है, दूसरा मार्ग पट्टा गोयला सड़क से घियांन तक है तथा वहां से आगे सीधा चढ़ाई वाला रास्ता पैदल तय करना पड़ता है। बीच में पपलोगी नामक स्थान के दर्शन भी हो जाते हैं। तीसरा रास्ता गोयला रावण की जोहड़ी ढकरियाना सुआ से होकर तथा बद्दी से घरेड होकर कच्ची सड़क से ब्रागु होकर जा सकते हैं। जोहड़जी साहिब में प्रबंधको द्वारा बहुत बड़ी सराय जिसमे दस हजार से अधिक लोगों के ठहरने की व्यवस्था है।समस्त परिसर व पार्किंग स्थल में इंटरलॉकिंग टाइलें व लाइटें लगाई गई है और अन्य स्थानों पर भी बिजली पानी की व पार्किंग का पर्याप्त प्रबंध है। बढ़ते ट्रैफिक को देखते हुए अब आवश्यकता है तो बरोटीवाला-हरिपुर-पट्टा मेहलोग-जोहड़जी रोड को डबल लेन करने की नितांत आवश्यकता है।