Solan: जल ही जीवन है। इसे प्रत्येक प्राणी समझता है, मगर ऐसे बिरले ही होते हैं, जो इसके मोल को समझते हैं और इसे व्यर्थ बहने से बचाते हैं। ऐसे ही एक इंसान हैं, जिन्होंने न केवल इसके मोल को पहचाना, बल्कि इसे व्यर्थ होने से बचाने के लिए ऐसी तकनीक विकसित की, जिससे वर्षा के जल को बेकार बहने से बचाकर इसका सदुपयोग किया जा सके।
कसौली तहसील की ग्राम पंचायत जंगेशु के गाँव ठारुगड़ के सुंदरलाल ने कृषि वैज्ञानिकों से प्रेरणा लेकर वर्षा के जल को बचाने के लिए एक तकनीक विकसित की है, जिससे दैनिक जीवन के क्रियाकलापों के लिए इस जल का प्रयोग किया जा सकता है। अपने अनुभवों को साझा करते हुए सुंदरलाल बताते हैं कि जल का संकट दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है और यह संकट कम होने के बजाय और बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि वनों का अत्यधिक कटान होना और खाली जगहों में वृक्षारोपण न करना, साथ ही वनों में आग लगना, इसकी मुख्य वजह है।
उन्होंने कहा कि आज समय आ गया है कि हम पानी की एक-एक बूंद का संरक्षण करें, तभी इस समस्या से निजात पा सकते हैं। सुंदरलाल ने बताया कि जो वर्षा का पानी मकान की छतों से बहकर व्यर्थ चला जाता है, उसे अगर हम टैंक बनाकर इकट्ठा कर लें, तो उसे जरूरत के समय पर काम में लाया जा सकता है। उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों से सीख लेकर अपने खेतों में वर्षा का पानी एकत्र करने के लिए एक तकनीक अपनाई है।
उस तकनीक के बारे में सुंदरलाल का कहना था कि ढलानदार जगहों से नदी-नालों और वर्षा का पानी इकट्ठा कर बड़े-बड़े टैंक बनाकर उसमें जमा किया जा सकता है। पॉलिथीन की चादर (तरपाल) से उस टैंक को पूरी तरह से ढककर उसमें पानी इकट्ठा किया जा सकता है। यह पानी बहुत लाभदायक पाया गया है, जिसे कृषि और बागवानी के लिए कभी भी इस्तेमाल किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि पक्के टैंक के मुकाबले यह बहुत ही सस्ता है और जब यह पानी इस्तेमाल के लिए लिया जाए, तो पॉलिथीन को दूसरे कामों में प्रयोग किया जा सकता है।
जहाँ सीमेंट के बने टैंक के फटने या खराब होने की अधिक संभावना रहती है, वहीं पॉलिथीन का टैंक न तो फटता है और न ही सड़ता है। इसे बनाने में भी कम समय लगता है। इसे खेतों में खाली जगह पर पाँच-छह फुट गहरा गड्ढा खोदकर ऊपर से खुला रखकर बीच में पॉलिथीन की चादर बिछा दी जाती है। इससे पूर्व इस गड्ढे को कंकड़-पत्थर से पूरी तरह साफ कर देना चाहिए। अगर यह पूरी तरह से साफ नहीं होगा, तो कंकड़-पत्थर उस चादर को खराब कर सकते हैं। इस तरीके से हम पानी इकट्ठा कर सकते हैं।
उन्होंने बताया कि बरसात में छोटे नालों से जो पानी बहता है, उसे हम इस तरह से एकत्र कर सकते हैं और बाद में सिंचाई के लिए प्रयोग में ला सकते हैं। सुंदरलाल ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों से वह इसी तरह वर्षा के पानी को व्यर्थ होने से बचा रहे हैं। इस पानी का उपयोग करके वे बेमौसमी सब्जियाँ तैयार करते हैं। इसके साथ-साथ बगीचों में मौसमी फलों की फसल से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। उन्होंने जानकारी देते हुए कहा कि आजकल मनरेगा योजना के तहत ऐसे टैंक बनाने में सरकारी आर्थिक मदद लोग आसानी से प्राप्त कर सकते हैं।
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